अध्यापकवर्ग शुद्ध हिन्दी लिखने के प्रति स्वभाव बनाये

‘सर्जनपीठ’, प्रयागराज की ओर से आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के जन्म-दिनांक १५ मई के अवसर पर एक आन्तर्जालिक राष्ट्रीय परिसंवाद का आयोजन किया गया था, जिसमे देश के प्रतिष्ठित अध्यापिका और अध्यापकों की प्रभावकारी भूमिका रही।

उपशिक्षा-निदेशक एवं प्राचार्य, मथुरा डाइट महेन्द्र सिंह ने बताया, “शुद्ध हिन्दी-प्रयोग का स्वभाव बनाने के लिए अध्यापक-वर्ग मे सीखने और सुधार करने की ललक होनी चाहिए। अध्यापक भी प्रथमत: एक विद्यार्थी होता है। अपने उच्चारण की ग़लतियों को खोजकर किसी सुयोग्य शिक्षक से शुद्ध उच्चारण का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। अध्यापक को इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि किस वर्ण का कौन-सा वर्ग है तथा उसका उच्चारण कैसे होगा।”

डी० ए० वी० मॉडल स्कूल, दुर्गापुर, पश्चिमबंगाल के हिन्दी-प्रवक्ता पंकज दुबे का मानना है, “सर्वप्रथम किसी भी अध्यापक को शब्दकोशप्रेमी बनना आवश्यक है। इसके पश्चात् अपने उच्चारण पर ध्यान देने की आवश्यकता है। दूरदर्शन, समाचारपत्र अथवा पुस्तकों में दिखनेवाली ग़लतियों को तुरंत तत्संबंधी अधिकारी की नज़र में लाये और उस पर बहस करे। व्याकरणिक रूप से अपनी बात को स्पष्ट करे। अपने विद्यार्थियों को ग़लत शब्द-प्रयोग अथवा वाक्य-गठन से परिचित कराये, एवं उसके व्याकरण-सम्मत रूप से अवगत कराये। स्वयं ग़लत पढ़ने और लिखने से बचे। हर मंच से हर स्तर पर ग़लत को ग़लत और सही को सही कहने की हिम्मत अपने अंदर रखे।”

विद्यार्थी इण्टरमीडिएट कॉलेज, जगदीशपुर, बरडीहा, कुशीनगर की सहायक अध्यापक वृन्दा पाण्डेय ने कहा, “भाषा का विशुद्ध ज्ञान होना और कराना अध्यापकवर्ग की महती जिम्मादारी है, इसलिए विद्यालयीय कार्यसंस्कृति में विशुद्ध हिन्दी का प्रयोग किया जाना चाहिए। हिन्दीभाषी क्षेत्र में किसी भी संस्था में क्षेत्रीय भाषा/बोली के प्रभाव से बचना भी जरूरी है। जैसे हम लेखन में विशुद्धता के प्रति आग्रही होते हैं, वैसे ही सामान्य बोलचाल में भी सचेत होकर क्षेत्रीय बोलियों के प्रभाव से बच सकते हैं। अक्षर ज्ञान कराते समय से ही इसका ध्यान रखा जाना चाहिए। अध्यापक-अध्यापिका सतत अध्ययनशील रहकर अपने शब्द कोश को समृद्ध करें, ताकि अध्ययन-अध्यापन में हिन्दी का सहज, सरल और विशुद्ध प्रयोग कर सकें।”

परिसंवाद-आयोजक भाषाविज्ञानी आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने बताया, “प्रत्येक अध्यापक-अध्यापिका को सबसे पहले स्वयं को हर पल विद्यार्थी की भूमिका मे रहना होगा। यदि उसका विद्यार्थी वाचन और लेखनस्तर पर शुद्ध और उपयुक्त है तथा सम्बन्धित अध्यापक-अध्यापिका का ज्ञान अशुद्ध है तो उन्हें उस विद्यार्थी का अनुकरण करना होगा। सीखने के लिए कोई निर्धारित अवधि नहीं होती। किस स्वर और व्यंजन का किस रूप मे उच्चारण करना है; वाक्य का गठन कैसे करना है; अशुद्ध शब्दों और वाक्यविन्यासों को शुद्धता के स्तर पर लाने के लिए किन-किन व्याकरणीय नियमो का बोध होना चाहिए, इसका संज्ञान करना अपरिहार्य है। प्रत्येक अध्यापक-अध्यापिका के पास भारतीय-अभारतीय मानक शब्दकोश का होना अनिवार्य है। यदि आस-पास हिन्दीभाषा और व्याकरण के पण्डित हों अथवा वे किसी आयोजन मे आये हों तो उनका विनम्रतापूर्वक एक सामान्य विद्यार्थी के रूप मे सान्निध्य-ग्रहण करना उचित रहेगा।”

हरदोई के वरिष्ठ पत्रकार राघवेन्द्र कुमार त्रिपाठी ‘राघव’ का मत है, “सर्वप्रथम ग़ैर-सरकारी संघटनो और राजनीतिक दलों के स्वयंसेवकों की भाँति हिन्दीसेवकों का जत्था तैयार किया जाये और इन्हीं के सहारे विद्यालयों मे कार्यरत भाषा-शिक्षकों के भाषा-दोष को ठीक किया जाये। भाषा-संस्कार के प्रति जागरूकता के विचार को आन्दोलन बनाया जाये। अशुद्ध वाचन और लेखन को हतोत्साहित करने के लिए विज्ञजन अपने-अपने स्तर पर प्रयासरत रहें।”

  प्राथमिक पाठशाला, प्रतापपुर,कोथावाँ, हरदोई के सहायक अध्यापक आदित्य त्रिपाठी ने कहा, "भाषा को सरल, सर्वग्राह्य और वैज्ञानिक बनाकर इसकी श्री मे वृद्धि करना होगा। प्राथमिक विद्यालयों से ही भाषाशुद्धि के अभियान को शुरू करना  हितकारी होगा।"

कानपुर विद्यामन्दिर महिला महाविद्यालय की प्राध्यापक डॉ० सोनम सिंह ने बताया, “भाषा-विशेषज्ञों द्वारा भाषा-संबंधी प्रशिक्षण एवं भाषिक कर्मशाला का आयोजन समय-समय पर किया जाना चाहिए। इसके साथ ही साथ व्यक्तिगत प्रयास सबसे महत्त्वपूर्ण है। अध्यापकवर्ग को भी भाषा-संबंधी अशुद्धियों के प्रति सावधान एवं शब्द-बोध और भाषा-बोध के प्रति जागरूक होना चाहिए; साथ ही भाषिक-अशुद्धियों को दूर करने के लिए प्रयासरत होना चाहिए। सीखे हुए भाषा-ज्ञान को बार-बार दैनिक व्यवहार और अभ्यास द्वारा और अधिक पुष्ट करना चाहिए।”

प्रबोध विद्यालय, विश्वनाथ, असम के अध्यापक संतोष महतो ने कहा, “अध्यापकवर्ग को कोई भी विषयवस्तु समझाने के लिए अन्य भाषा का व्यवहार न करके, हिन्दी भाषा का प्रयोग करना चाहिए।”