ज़रा एक बार मोहब्बत की दहशत फैलाकर आज़माइए

अफ़ग़ानिस्तानी-हिंदुस्तानी संस्कृति की कड़ी

सौन्दर्या नसीम-


ख़बर सुन रही हूँ कि तीन दहशतगर्द हिंदुस्तान में घुस आए हैं, जो अफ़ग़ानिस्तान की ज़मीन से वास्ता रखते है और मेरी तरह पश्तो ज़बान बोलते हैं। पाकिस्तान में उन्हें ट्रेनिंग दी गई है। 26 जनवरी उनका टारगेट है। अगर यह ख़बर सच है तो ख़ुद को सँभालने में लगी अफ़ग़ानिस्तान की नई उमर के लिए के लिए ख़तरे और होशियार हो जाने वाली बात है। यों, एक आम अफ़ग़ान के दिल में हिंदुस्तान के लिए काफ़ी मोहब्बत होती है, पर यह भी सच है कि वे गुज़रे ज़माने में कश्मीर पर हुकूमत कर चुके हैं और हैवानियत दिखा चुके हैं। अपनी पर आ जाए तो एक अफ़ग़ान के लिए किसी का सिर काट देना गाजर-मूली से ज़्यादा मायने नहीं रखता। लगता है पाकिस्तान एक बार फिर बेरोज़गारी और मुफ़लिसी के मारे अफ़ग़ान नौजवानों को बरगलाने की फ़िराक़ में है। पाकिस्तान को शायद नज़र नहीं आ रहा कि दहशतगर्दी की फ़स्ल उगाकर कैसे वह ख़ुद अपनी ही मौत को अपने ही नज़दीक बुलाने में मुब्तला है।

मैं तो कहती हूँ कि दहशतगर्दी फैलाइए, ख़ूब फैलाइए…पर नफ़रत की नहीं ज़रा एक बार मोहब्बत की दहशत फैलाकर आज़माइए। मोहब्बत की दहशतगर्दी इतनी फैला दीजिए कि कोई भूखा इनसान घर से बाहर क़दम रखे तो उसे इस बात का डर लगे कि बच के निकलो नहीं तो एक नहीं, दस-बीस लोग रोटियाँ खिलाने वाले मिल जाएँगे।

दहशतगर्दी के झंडाबरदार साहिबान, काफ़िर के सही मायने समझ लीजिए तो भी मोहब्बत बाँटने में आपको कोई परेशानी न होगी। मुश्किल यही है कि हमारे आलिम हमें काफ़िर के बहुत उल्टे मायने समझाते रहे हैं, जो क़ुर्आन पाक की रौशनी में नहीं है। मुसलमान क़ौम मोहब्बत की दहशत फैलाने में लग जाए तो यक़ीन मानिए किसी हिंदू को भी ख़ुद को मुसलमान कहलवाने में शायद दिक़्क़त न होगी? मुसलमान के मायने भी आख़िर क्या हैं—पाक और पवित्र। इसी तरह इस मुल्क के सारे हिंदू मोहब्बत का पैग़ाम देने लगें तो एक दिन वह आएगा कि मुसलमानों को भी ख़ुद को फ़ख्र से हिंद का हिंदू कहलवाने में उलझन न होगी। बाक़ी मज़हबों के लिए भी बात यही है।

मोहब्बत किसे नहीं चाहिए। झगड़े मोहब्बत नहीं, हमेशा नफ़रतों की वजह से होते हैं। मुझे लगता है कि जब हम किसी को हिंदू, मुसलमान, ईसाई या अपने जाती ख़यालों का बनाने की ज़िद करते हैं तो दरअस्ल इसमें मोहब्बत नहीं, नफ़रत का कोई चेहरा होता है। इनसान इस दुनिया में इनसान के ही तौर पर भेजा गया है, इसकी इसी शक्ल को बनाए और बचाए रखने की ज़रूरत है। कुदरत की कारीगरी समझिए और अपनी अंगुलियों को मोहब्बत की चर्बदस्ती का हुनर दीजिए और देखिएगा कि दुनिया में सचमुच जन्नत उतरती दिखाई देगी।