कुछ सुझावों के साथ इच्छा मृत्यु को सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी

इच्छा मृत्यु को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए कुछ गाइडलाइंस के साथ इच्छा मृत्यु को मंजूरी दे दी है। सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर बीमारी से पीड़ित शख्स के लिविंग विल (इच्छामृत्यु ) को मंजूरी दी है। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई में सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की खंडपीड ने अपने फैसले में कहा कि हर शख्स को सम्मान से मरने का अधिकार है।

इच्छामृत्यु के लिए 2011 में नर्स अरुणा शानबाग के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। अरुणा शानबाग 42 साल तक कोमा में रही थीं। अरुणा शानबाग के साथ 1973 में रेप में नाकाम रहने पर अस्पताल के वार्ड ब्वॉय ने उन पर हमला किया था जिसके बाद से वो लगातार कोमा में थीं। 2011 में घटना के 27 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने अरुणा की दोस्त पिंकी बिरमानी की ओर से इच्छामृत्यु के लिए दायर याचिका को नकार दिया था । वहीं वार्ड ब्वॉय सोहनलाल पर हत्या के प्रयास और रेप का मुकदमा चला लेकिन रेप का आरोप साबित नहीं हो सका और उसे हत्या के प्रयास में 7 साल की सजा हुई जिसे काटकर वो आम जिंदगी जीने लगा लेकिन अरुणा मरते दम तक लगभग 4 दशक तक कोमा में रहीं और साल 2015 में 68 साल की उम्र में उनकी मौत हो गई।