हिन्दी के बल पर अपनी पहचान बनानेवालों का ‘हिन्दी’ के साथ विश्वासघात!..?

— आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

धिक्कार है, देश के सभी समाचार चैनलों के स्वामियों और उनके महिला-पुरुष कर्मचारियों (निदेशक, कार्यकारी निदेशक, सम्पादक, समाचार-सम्पादक, संवाददाता, सूत्रधार आदिक) को, जो ‘हिन्दी’ की दी हुई रोटी तो तोड़ रहे हैं; किन्तु ‘हिन्दी-दिवस’ के अवसर पर ‘हिन्दी-विषयक’ एक भी आयोजन न कर, हिन्दी के प्रति अपनी कृतघ्नता को जग ज़ाहिर कर चुके हैं। जनसामान्य को जिनके चेहरे को देखकर उबकाई-सी आने लगती है, उन्हें ही लगातार दिखा-दिखाकर अपनी खोखली बाँहें भाँजते आ रहे हैं।

कितना अच्छा रहता, यदि समाचार चैनेल वर्ष में एक बार आयोजित होनेवाले ‘हिन्दी-दिवस के अवसर पर हिन्दीभाषा के अनेक पक्षों पर विषय-विशेषज्ञों को आमन्त्रित कर लोकोपयोगी परिचर्चा कराते। वैसे भी हिन्दी-दिवस ही एक ‘ऐसा दिवस’ है, जो ‘हिन्दी-पखवाड़े’ के नाम पर लगातार पन्द्रह दिनों तक नवीनता के साथ आयोजित किया जाता है।

हिन्दी के लिए राष्ट्रभाषा तो बनना सुदूर का विषय है। हिन्दी वैधानिक रूप से ‘राजभाषा’ का रूप और नाम तो ग्रहण कर चुकी है; परन्तु वास्तविकता यह है कि हिन्दी प्रयोगस्तर पर आज भी सर्वमान्य राजभाषा तक नहीं बन सकी है। इसमें पूरी तरह से देश की सरकार दोषी है, जो सभी राज्यों की सरकारों को वैसा करने के लिए सहमत नहीं कर सकी है। वह शासकीय कार्यालयों में हिन्दी के प्रयोग को अनिवार्य नहीं कर सकी है।

चैनलों के उन मक्कारों को भी धिक्कार है, जो मुझसे प्राय: शब्दों का ज्ञान पाते हैं और अपने चैनलों के माध्यम से हिन्दी का अपमान करते आ रहे हैं। चेहरे को भौतिकता के रंगरोगन से पोत कर समाचार-चैनलों पर हूर-सी दिख रहीं, बनी-ठनी हास्यास्पद चरित्र जी रहीं कृत्रिम और ओछी सौन्दर्यस्वामिनियों को भी धिक्कार है, जो हमारी हिन्दी के बल पर आत्मप्रदर्शन करती तो दिखती हैं; परन्तु ‘हिन्दी-दिवस’ पर हमारी आवाज़ उठाने का साहस तक नहीं कर पातीं।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २३ सितम्बर, २०२० ईसवी।)