आचार्य पण्डित पृथ्वीनाथ पाण्डेय की पाठशाला

शब्द हैं :– संकीर्ण, आकीर्ण, विस्तीर्ण, प्रकीर्ण तथा विकीर्ण।

संकीर्ण– मूल शब्द ‘कीर्ण’ है, जिसका अर्थ ‘बिखरा हुआ’, ‘ढका हुआ’ तथा ‘ठहरा हुआ’ है। हम प्रयोग के आधार पर शब्दार्थ-चयन करेंगे। हम ‘संकीर्ण’ के अर्थ मे ‘ठहरा हुआ’ वा ‘ढका हुआ’ को ग्रहण करेंगे। ‘मृत’ को भी ‘कीर्ण’ कहते हैं। इसी ‘कीर्ण’ के पूर्व मे ‘सम्यक् रूप से’ के अर्थ मे ‘सम्’/’सं’ उपसर्ग प्रयुक्त है। ‘कीर्ण’ नामक विशेषण-शब्द ‘कृ’ धातु और ‘क्त्’ प्रत्यय के संयोग से उत्पन्न हुआ है। ‘कृ’ का यहाँ अर्थ ‘छितराना’ है। इसप्रकार ‘संकीर्ण’ शब्द का सर्जन होता है। जो अधिक चौड़ा वा विस्तृत न हो, उसे ‘संकीर्ण’ कहते हैं। इसे ‘संकुचित’ भी कहते हैं, जिसका विपरीत शब्द ‘विस्तृत’ कहलाता है। इसी का समानार्थी शब्द ‘आकीर्ण’ है। इसप्रकार ‘संकीर्ण’ का सर्वाधिक विरोधी शब्द ‘विस्तीर्ण’ कहलायेगा।

‘विस्तीर्ण’ को ‘प्रकीर्ण’ भी कहा जाता है और ‘विकीर्ण’ भी। इनमे केवल ‘उपसर्ग-प्रयोग’ का अन्तर है, शेष व्याकरणात्मक नियम एक-से हैं।

◆ इसका विस्तृत रूप सम्बन्धित कृति मे पढ़ सकेंगे, जो अब प्रकाशन-प्रक्रियाओं के अन्तर्गत आ चुकी है।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज।)