बाल साहित्य लेखन की महती आवश्यकता

बच्चे अपने परिवार पास पड़ोस अपने विद्यालय अपने परिवेश से बहुत कुछ सीखता है। वातावरण विचारों आदर्शों लक्ष्यों और शब्दों से सांस्कृतिक वातावरण बनता है। छोटे बच्चे बड़ों का अनुकरण करते हैं। घर पर माता पिता भाई बहिन व विद्यालय में शिक्षकों का अनुकरण करते हैं। जिस घर मे गीता रामायण प्रतिदिन पढ़े जाते हैं वे बच्चे चौपाई, दोहे, छंद, सोरठा, रोला सीख जाते हैं। द्रष्टान्त सुनना व सुनाना उन्हें याद हो जाता है। वे गीता के श्लोक बोलना उनके अर्थ बताना जानते हैं।

बाल्यावस्था में जिज्ञासा की प्रवृति तेज होती है। बच्चों को ऐसे समय बाल साहित्य की जरूरत पड़ती है। ऐसा साहित्य जिसमें कहानियां ऐसी हो जो जीवन निर्माण के लिए जरूरी हो। शिक्षाप्रद हों। प्रेरक प्रसंग महापुरुषों की जीवनियों की पुस्तकें वैज्ञानिकों की जीवनियां कविताओं की किताबें आदि बाल साहित्य बच्चों को उपलब्ध कराना चाहिए। घर पर अभिभावक भी किताबें पढ़ें। ताकि बच्चे अनुकरण कर स्वाध्याय करना सीख सकें। बालक को सुसंस्कारित करने हेतु सामाजिक प्राणी बनाने के लिए जितनी भी परम्पराएं नियम और वस्तुओं विकास की कहानी बतानी होती है ये सभी संस्कृति के अंग हैं।

बालक हमेशा आनंद के लिए उत्सुक होता है। बालक की रुचियों को पहचान कर उनकी ही भाषा में लिखे गए मनोरंजक साहित्य को बालक अवश्य अपनाते हैं आज बाल साहित्य की बहुत आवश्यकता है। पहले दादा दादी नाना नानी लॉज कथाएं सुनाया करते थे। लोक कथा का उद्भव बाल जीवन से ही आरम्भ हो जाता है। लोककथा का अर्थ है लोगों द्वारा किये गए कार्यों को शब्द साहित्य द्वारा रेखांकित कर कहानी रूप में व्यक्त करना। यह साहित्य बालकों के लिए कल्पनाशील साहित्य है। आज की पत्र पत्रिकाओं में बाल साहित्य बहुत कम प्रकाशित होता है जो चिंताजनक हैं।

बढ़ते तकनीकी युग मे बच्चे टी वी कम्प्यूटर मोबाइल विडीओ गेम ज्यादा खेलने लगे हैं।बच्चे कल की दुनिया की नींव हैं।हमारा भविष्य अंधकार में हैं।बाल साहित्य विकास की आधार भूमि तैयार करता है।बच्चों की जिज्ञासाओं को शांत करता है बाल साहित्य।बिना बाल साहित्य के स्वस्थ समाज की कल्पना बेकार है। आज हर भाषा मे बाल साहित्य छपने की जरूरत हैं। लैपटॉप टेबलेट मोबाइल में बच्चा उलझ कर असमय ही अनेक शारीरिक व मानसिक रोगों का शिकार हो रहें हैं। न समय से सोते है और न ही समय से जागते हैं और न व्यायाम कसरत योग करते हैं और न शारीरिक खेल खेलते हैं।

बाल साहित्य की अनेक विधाएं हैं बाल उपन्यास चित्रकथाएं नाटक जीवनियां और ज्ञान विज्ञान की कहानियां आदि। पंचतंत्र देवपुत्र बालहंस बाल वाटिका नंदन चम्पक बाल भास्कर चंदा मामा किशोर प्रभात पराग आदि पुस्तकें बच्चों को बहुत पसंद हैं। पंचतंत्र नामक पुस्तक में जो कहानियां छपती है उनमें पशु पक्षियों को माध्यम बनाकर बच्चों के लिए कहानियां लिखी गई हैं ।

बाल साहित्य का उद्देश्य केवल मनोरंजन करना ही नहीं होता बल्कि आज के जीवन की सच्चाई से बच्चों को परिचित कराना हैं। चरित्र निर्माण के लिए बाल साहित्य की आवश्यकता है। यही बच्चे चांद पर अंतरिक्ष मे ग्रहों पर भविष्य में यात्रा करेंगे।
बच्चों के बाल साहित्य हेतु चिल्ड्रन बूक ट्रस्ट की स्थापना 1957 में की गई थी इस ट्रस्ट का मुख्य उद्देश्य बच्चों के लिए उचित डिजाइनिंग व सामग्री उपलब्ध कराना है यह ट्रस्ट 5 वर्ष से 16 वर्ष तक के बच्चों के लिए बाल साहित्य उपलब्ध कराता है।

हमारे देश मे अनेक बाल साहित्यकारों ने बाल साहित्य विपुल मात्रा में लिखा है जिनमें प्रमुख हैं श्रीधर पाठक, महावीर प्रसाद, अयोध्या सिंह उपाध्याय, अरविंद कुमार साहू, भेरूलाल गर्ग, राजकुमार जैन राजन, अब्दुल मलिक खान, डॉ. राजेश कुमार शर्मा पुरोहित, दीनदयाल शर्मा, मनोहर चमोली मनु मन्नू भंडारी आदि। हम बच्चों को राम कृष्ण गांधी गौतम बनाने के लिए तैयार हो जाते हैं लेकिन उनमें संस्कार नहीं डालते।आज का बच्चा रोबोट तो बन जायेगा कि हमारे देश की संस्कृति व संस्कार समाप्त हो जाएंगे। बाल साहित्य के प्रति हमारी सकारात्मक सोच होना जरूरी है।हम सभी का प्रयास हो बच्चे बाल साहित्य पढ़ संस्कारवान बनें।

सूरदास जी ने बहुत बाल साहित्य लिखा जिसमें बाल क्रीड़ा हाव भाव बाल लीलाओं का सजीव वर्णन किया। तुलसीदास जी ने रामचरित्र मानस कृति में बाल कांड में बाल मनोविज्ञान की अनुपम मनोहारी झांकियां प्रस्तुत की। आज भी ऐसे ही बाल साहित्य की पुनः जरूरत है।

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-डॉ. राजेश कुमार शर्मा पुरोहित (कवि/साहित्यकार)
98 पुरोहित कुटी, श्रीराम कॉलोनी, भवानीमंडी
पिनकोड 326502
जिला झालावाड राजस्थान