पामर-लम्पट यूट्यूबर ‘अमरनाथ ‘सर’ (अमरनाथ गुप्ता) का भाषाज्ञान– दो

शेरो शाइरी ('शायरी अशुद्ध है।) का शौकीन हैँ, यूट्यूबर अमरनाथ सर; परन्तु शब्दोँ की समझ नहीँ

ऐसे बहुत सारे लोग हैँ, जो वीडियो बनाकर प्रतियोगी विद्यार्थियोँ के लिए हिन्दी-शिक्षण करने का धन्धा शुरू कर चुके हैँ। कुछ ऐसे भी हैँ, जो पहले किसी थोक के भाववाले शिक्षा के दुकान मे सौदा बेचने मे सहयोगी होते थे; परन्तु ‘आटा, चावल, दाल इत्यादिक का भाव और कमाई को समझते ही अपनी अलग से दुकान खोलते आ रहे हैँ। यहाँ स्थिति वही है, जो बाइक, स्कूटी इत्यादिक बनानेवालोँ की दुकान मे नट-बोल्ट खोलने, साफ़-सफ़ाई करने की थोड़ी तमीज़ सीखने के बाद अपने उस्ताद को धत्ता बताते हुए, किनारा कर लेते हैँ, फिर अपनी गोमटी/गुमटी खोलकर उसका मठाधीश बन जाते हैँ। ऐसे ग्रन्थियुक्त लोग पहले से ही कुण्ठित रहते हैँ। उनसे सुशिक्षा की आशा करना नदीजल मे लट्ठ मारने-जैसा है।

अपनी हेतु-सिद्धि के लिए हिन्दीभाषा और व्याकरण का शिक्षण करनेवाले कुछ वीडियो को देखना आरम्भ किया था; अकस्मात् मेरी दृष्टि वहाँ स्थिर हो गयी, जहाँ ‘हिंदी भास्कर’ नाम से एक व्यक्ति का वीडियो दिख रहा था। उसके जितने वीडियो देखे थे, उनमे से अधिकतर मे सबसे ऊपर ‘हिंदी भास्कर’ तथा सबसे नीचे ‘परीक्षा कहीं की…हिंदी यहीं की!’ शब्दावली दिखती रही।यहाँ प्रश्न है, जिस व्यक्ति मे सार्थक शब्दप्रयोग करने की सामर्थ्य नहीँ है, उसके पीछे विद्यार्थी क्योँ भाग रहे हैँ? ‘हिंदी भास्कर’ अर्थ की दृष्टि से निरर्थक शब्द है; क्योँकि प्रयुक्त शब्दोँ का अर्थ ‘हिन्दी सूर्य’ होता है, जोकि अर्थ एवं भावहीन है। यू ट्यूबर अमरनाथ सर ने ‘हिन्दी भास्कर’ को ‘हिन्दी का सूर्य’ के अर्थ मे प्रयुक्त किया है; परन्तु कथित यूट्यूबर को कारक और समास का बोध नहीँ है; बोध होता तो वह ‘हिन्दीभास्कर’ वा ‘हिन्दी-भास्कर’ का प्रयोग करता। अब विचार करते हैँ, ‘परीक्षा कहीं की…हिंदी यहीं की!’ शब्दावली को। यहाँ ‘परीक्षा कहीं की’ के आगे… इस तीन बिन्दी का प्रयोग क्योँ किया गया? … इस बिन्दी का कब-कहाँ प्रयोग होता है, इस यूट्यूब चलानेवाले कथित ‘अमरनाथ सर’ (अमरनाथ गुप्ता) को बिलकुल (‘बिल्कुल’ अशुद्ध है।) अता-पता नहीँ। आगे के वाक्यांश ‘हिंदी यहीं की’ के आगे ! इस चिह्न को देखकर यह सुस्पष्ट हो गया कि अमरनाथ सर से बेहतर जानकारी हमारे कक्षा छ: का विद्यार्थी जानता है; क्योँकि हम यदि कक्षा छ: के विद्यार्थी को ‘हिन्दी यहीं की’ लिखने के लिए कहूँगे तो वह कम-से-कम वाक्यांश के अन्त मे (!) इस चिह्न को नहीँ लगायेगा। एक तरह से यह यूट्यूबर विद्यार्थियोँ को दिग्भ्रमित करता आ रहा है।

ऊपर जो चेहरा देख रहे हैँ, वह वही यूट्यूबर है, जो हिन्दीभाषा एवं व्याकरण की कक्षा मे विद्यार्थियोँ को ‘शायरी का भौकाल’ दिखा रहा है। यहाँ ये शब्दप्रयोग पूर्णत: आपत्तिजनक है। पहली बात, ‘शायरी’ कोई सार्थक शब्द नहीँ है; क्योँकि शुद्ध शब्द ‘शाइरी’ है, जोकि अरबी-भाषा का स्त्रीलिंग-शब्द है। इसका अर्थ ‘कविता’ है। शे’र कहना को भी ‘शाइरी’ कहा जाता है। दूसरा शब्द ‘भौकाल’ जनमानस मे मात्र प्रचलित है; परन्तु वह मूल और आधार से रहित है। यहाँ ‘शाइरी’ और ‘भौकाल’ की कोई संगति नहीँ है; क्योँकि शाइरी का चरित्र ‘भौकाल’ से परे का विषय है।

लगता है, स्वनामधन्य शाइर अमरनाथ सर नीचे कोई मिस्रा दिखा रहे हैँ– “ये मत सोचना कि तुम पर नज़र नहीँ।” यहाँ ‘ये’ और ‘पर’ शब्दोँ को देखेँ। ‘ये’ का प्रयोग दो अर्थोँ मे होता है :– (१) यह का बहुवचन (२) संकेत करने का अर्थ। यहाँ दोनो मे से कोई नहीँ है, इसलिए ‘ये’ के स्थान पर ‘यह’ होगा। इस तरह के प्रयोग चर्चित शाइरोँ ने किये हैँ, जोकि अशुद्ध है। यहाँ ‘पर’ की जगह ‘पे’ होगा; क्योँकि शे’र मे लय और गति देखी जाती हैँ तथा यहाँ ‘पे’ का सटीक शब्द है। सबसे नीचे पुन: अशुद्ध शब्द ‘शायरी’ का प्रयोग किया गया है।

(क्रमश:)