भोजपुरिया लिक्खाड़ लोगवा! एही क कहल जाला भोजपुरी

झोँकरावन चाची क नावे तहार भतीजवा जरावन पाँड़े क एगो लमहर चीठी

ए चचिया! तोरा क उठि-बइठि आ सूति-जागि क उठक-बइठक करत परनाम करत बानी।

आछा त, तू खाँड़ी-चूकी ना हउ, सोगहगवे बाड़ू। आपना लेखा एगही। तू आपन पूत खइलू; भतार कटलू, बाकिर एहूपर तहार पेटवा ना भरल; काहेँसे कि तहरा दीयानत मे अगिया बरल बा। तेँ पहिलका-पहिलका चौखटवा पर जब आपन गोड़वा रखले तब इ कुल्हि ना बुझाइल; तब त लागे, जइसे कवनो इन्दरासन क परी उतर आइल होखे। आ हमारा ‘सुघरावन चाचा’ तोरा क देखि क “पक-पक गील” हो जात रहस। तेँ कुछ समइया चारि-छौ महीनवा सुधरल रहुवे, बाकिर अचके तेँ आपन अइसन हाबा-डाबा देखावल सुरू कइले कि देखते-देखत सब हेनर-बेनर होखे लागल।

तोरा क राजनीति क अइसन चसका लागल कि सीधे ‘भागल जाता परटियवा’ क सबसे बाड़का नेतवा क आरी-आरी लटका-झटका देखाई क चलल सुरू कई देहले। आ उहो सार तोरा से सटि-सटि क बतियावे लगलस। आ तेहूँ अइसन जिलाहिलावन साड़ी पहिन क ढोँढ़ी दिखावत आ बेसहूर लेखा बेलाउज पहिनल अइसन लागे लागल कि ‘भागल जाता परटियवा’ क सबसे बाड़का नेतउवा ‘भकन्दर भोगिया’ क अँखिया तोरा ढोँढ़िये क मुआयना करत रहि जाऊ। उ त सरवा जनमे से नम्बर एक क घटिहा ह; कबो हेने मुँह मार ल त कबो हेने, जवने कवनो भेँटाइ जाऊ।

ओ भँड़ुआ क जिभिया बाड़ा लबरियाह हवे, जइसे सतुआ भा सतुई क लबरी चाटे-लेखा जिभिया चटखोर होखे ला। एतना जान ले, ऊ पिछलका जनम मे कवनो अइसन बहुते बाड़का काम कइले होखी, जवना खातिर ऊ ए जनम मे पाँचोँ अँगुरिया घीववा मे डालि क छपाकि-छपाकि खेल तावे। ओकर चेहरवा जेने-ओने लउकि जाला त हमार जतरवे चउपट होखल जाला आ साला क आधा तोला खूनवो जरे लागे ला। आ ऊ सार, अइसन छछाह नेता बनि गइल बा कि जेने देख ओने आपन परचार खातिर कुछू करे पर उतारू बा। ऊ त आपन परटियवा क नेतइनियोँ क हेने-ओने आपन फोटउवा के गोदवले बा। आ ऊ बनल-ठनल नेतनिया सभके आपन-आपन लटका-झटका देखाइ-देखाइ अइसन बुझा तारी स, जइसे उहनी क सरग मे चहुँपि गइल बाड़िन स। ते जान तारे, ऊ दुनिया क नमरिया बकलोल, बकलण्ठ आ बउराह आदमी ह; बाकिर इहो बूझि ले, ऊ बाड़ा बाऊर हवे; ओकरा केहू से कवनो दाया-मोह ना होखेला। इ बताऊ! रँड़ुआ-झँड़ुआ केहू क होखेला? अइसन आदमी अपने चेहरवा देखि क सूते ला आ जागे ला।

आ तेँ अइसन अझुराह नेतवा क चक्कर मे फँसि कइसे गइले हा? हमरा बुझाता, ओ झण्टूल नेतवा क आगे-पीछे तेहीँ झुमक-झल्ला कइ क फँसवले हा; बाकिर ऊहू कम ना ह। ते मेहरारू मे हवे त ऊ मरदाना मे हवे। कहे क त ओकरा क ‘मरदाना’ कहि देहनी हाँ; बाकिर ऊ जनवनो से गइल गति के हवे। ओकर करमिया कवनो गत क ना हवे। ऊ सार आपन जनाना क त उधियाइ देहलस। इमीरती फसानी क नौवाँ सुनले होखबे। ओकरा क कइसे ”यूज आ थरो” क फरमूला क सीध कई क दूध मे मरल मक्खिया-लेखा उठाई क फेँक देले बा। अरे ससुरी! अबो सुधर जाउ ना त बाड़ा रमलीला मे फँसि जइबे।

सुरू से देखल जाऊ, त ऊ नमरिया चतुर आ चल्हाक हवे; सब केहू मरि-बिलाइ; बाकिर ओकर ‘भागल जाता परटियवा’ आ ऊ बनल रहे, इहे ऊ सरवा क कहनामा हवे। एही से एगो घिनाइल मलेछ-लेखा ओकर गतर-गतर लउक ल। ऊ जबे-जबे बोलेला तबे-तबे लागेला कि ससुर क मुँहवा मे एगो सोगहग काँचे बाँसे के लउर ठूँसि दीहीं। हम सकतियाह रहतीँ नू त अब ले ओकर गतर-गतर तूर देहतीँ आ टामाटर-लेखा फूलल गालवा थूरि देहतीँ। बाकिर इहो जान ले, बरहम बाबा से बढ़ि के केहू ना होखे ला। ऊ वो सार क गतर-गतर नोची आ अइसन दासा बना दीही कि उ सार अपनो का ना पहिचान सके।

तहरा क नीचवा से ऊपरवा तक देखे मे इहे बुझाला कि तू अब जरल गोँइठा से अधिका कुछू ना हऊ। ऊ त तहरा क तापि-सापि ले ले बा; तू त जरि क अब राखि हो गइल बाड़ू। तहरा मे जब ले अगिया रहल हा तबले ऊ तहरा क कुछु समझतो रहल हा। ओहि क दम पर तूँ बारह गो होटल, दस गो पिलाट आ सात गो फिलैट क महारानी बनल बाड़ू। आ इ बताव! अकेले-अकेले एतना सब क का करबू। मरि जइबू, बिलाइ जइबू, झोँकराइ जइबू त सभ हेनर-बेनर नू हो जाई। अरे तनी दियानत बनाव आ दान-पुन कर; काहेँ से ऊपर जइबू त का कहबू।

लिपिर-लिपिर करे मे तू सोरहो आना फिट बाड़ू; बाकिर ऊ सुरतवाल आ डोमड़ा हवे; ओकर बिसवास आ भरोसा कइलू त समझु लीह, तू ओ गाँवेँ फेँका जइबू; काहेँ से कि ऊ नमरिया लरियाह आ छछियाह हवे; एक-स-एक ओकरा आगे-पीछे डोले खातिर लइन लगाइ क भिनसार से राति ले बिना अन-पानी के खाड़ा बाड़िन स। जइसे एगो ना गवनई हवे :– ”दरसन द घनसाम नाथ मोरी अँखिया पियासी रे।” ओही दरसनिया मे सब एगरीमेण्ट होइ जाला। ओहू सार क दलाल बाड़न स।

आ देख आ सुन! हम तहार कवनो दुसमन ना हवीँ। हम खाली तहार एगो छोटा मुकी भतीजा हँई। एही से हम फेर कहब, लउटि क घरे आ जा; होने जइबू त लउटला मे अबेर हो जाई, तब तहरा के बुझाई कि हेने आगि बा त होने खाई; माई-रे-माई! हम केने अब जाईँ।

बस, हम अब चीठी बन करत बानी आ जात बानी सूते; ऊँघाई लाग त।

हम हईं तहार भतीजा
जरावन पाँड़े
मिरीगिरी टोला, बाँसडीह, बलिया
(उतरपरदेस)

(सर्वाधिकार सुरक्षित― आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; ३ नवम्बर, २०२४ ईसवी।)