जनमानस की ‘पर्यावरणीय संवेदना’ के प्रति शासकीय उदासीनता और क्रूरता!

५ जून ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ पर विशेष ।

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

हमारा संदूषित पर्यावरण स्वस्थ दिखे और जनमानस उसका ‘प्रसाद’ (कृपा) ग्रहण करे, कामना है। वर्तमान सरकार पर्यावरण के प्रति बिलकुल चिन्तित नहीं है, इसीलिए देश की जनता का जीवन ‘आवृष्टि’ (बाढ़) और ‘अनावृष्टि’ (सूखा) के क्रूर चक्र मे फँस कर समाप्त हो जा रहा है।

न्यायालय का आदेश था कि यदि शासन एक पेड़ कटवाती है तो उसे उसके बदले दस पौधारोपण करने होंगे। यदि १:१० का परिपालन किया गया रहता तो अपना भारत हरितिमा-परिपूर्ण होता; लेकिन खेद है! आप ‘कश्मीर से कन्याकुमारी’ तक का सोद्देश्य भ्रमण करके देखेंगे तो यह अनुपात मिथ्या सिद्ध होता परिलक्षित होगा। ऐसे मे, प्रश्न है– ‘न्यू इण्डिया की मोदी-सरकार’ छलावा क्यों कर रही है? हम उत्तरप्रदेश-राज्य की बात करें तो मुलायम सिंह यादव, बहन कुमारी मायावती, अखिलेश यादव तथा योगी आदित्यनाथ के शासनकाल मे लाखों की संख्या मे वृक्ष कटवाये गये थे; वह चाहें रेललाइन (‘रेलवेलाइन’ अशुद्ध है।) के पार्श्व मे दिख रहे पेड़ रहे हों; चाहें सड़क-मार्ग के किनारे स्थित पेड़ रहे हों, इन सभी सरकारों ने एक-एक वृक्ष की गरदन रेतवाकर धराशायी (‘धाराशायी’ और ‘धाराशाही’ अशुद्ध हैं।) करा दी है। इन सभी आततायियों को प्रकृति कभी क्षमा नहीं करेगी।

‘नमामि गंगे’ के नाम पर छलावा करनेवाले नरेन्द्र मोदी को मा गंगा कभी क्षमादान नहीं करेगी। अब मोदी को ‘नमामि’ गंगे का स्मरण नहीं होता। ये सभी शासकीय कुत्सित उपक्रम होते हैं, जिनके अन्तर्गत देवी-देव के नाम पर देश की जनता के अरबों-खरबों रुपये हड़पते आ रहे हैं और कर्त्तव्य के स्तर पर “ख़ाली डिब्बा-ख़ाली बोतल” का चरित्र जीते दिख रहे हैं।

प्रयागराज मे इस समय गंगानदी सूख रही हैं और जैसी ही माघ अथवा कुम्भ मेला का आयोजन होगा, वही गंगानदी लबालब दिखेंगी। यह है, तीर्थयात्रियों के साथ क्रूर छल करने का एक नितान्त निकृष्ट निदर्शन! वास्तविकता यह है कि गंगानदी का जल मौलिक रह ही नहीं गया है। ‘राजीव गांधी की ‘गंगाकार्ययोजना से लेकर नरेन्द्र मोदी की नमामि गंगे’ योजना तक मे तत्कालीन और वर्तमान सरकारों ने व्यापक पैमाने पर घपले किये हैं। चूँकि ई० डी० और सी० बी० आइ० इस सरकार की मुट्ठी मे क़ैद हैं, इसलिए इसकी गहन जाँच तभी हो पायेगी जब कथित फ़क़ीर झोला उठाकर चल पड़ेगा।

हमने अपनी इन कृतियों के माध्यम से आबाल-वृद्ध नर-नारी को पर्यावरण-संदूषण के प्रभाव से अवगत कराने और संदूषण को दूर कर, स्वस्थ पर्यावरण का विकास करने के लिए एक सार्थक सन्देश सम्प्रेषित करने का सारस्वत प्रयास किया है। मेरी इन पुस्तकों मे पर्यावरण-आधारित विश्वज्ञान-कोश है तो पञ्चमहाभूत (पञ्चतत्त्व) :– पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश तथा वायु के स्वास्थ्य-क्षरण के प्रति चिन्ता भी है; वनस्पतियों के रक्षार्थ सामाजिक संदेश है तो वन्यजीव-सम्पदा की सुरक्षा के प्रति ललकार के स्वर भी निनादित हो रहा है।

आज जिस प्रकार से वैचारिक प्रदूषण, रेडियोधर्मिता, हरितगृह-प्रभाव, ओज़ोन-क्षरण, परमाणु, अन्तरिक्ष-प्रदूषण, मृदा, प्रकाश, ध्वनि, उद्योग आदिक प्रदूषण (‘प्रदूषणो’ अशुद्ध है।) से जनजीवन पूर्णत: प्रभावित है, उसके शोचनीय पक्षों पर निदानसहित इन पुस्तकों मे विचार किया गया है।

आइए! हम पृथ्वी, वनस्पति, औषध, आकाश, वायु, अग्नि, जल तथा अपरा-परा प्रकृति मे संतुलन बना रहे और स्थावर-जंगम स्वस्थ बने रहें, अगोचर (अलक्षित, न दिखायी देनेवाली/वाला) परमशक्ति/जगन्नियन्ता से अभ्यर्थना करें।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; ५ जून, २०२२ ईसवी।)