पूर्ववर्ती सरकारों द्वारा किये गए इस पाप का प्रायश्चित कर रहे योगी


(शाश्वत तिवारी)

जब मंत्री विधायक नौकरशाहों, डॉक्टरों और पत्रकारों तथा समाज के अन्यं प्रभावशाली वर्गों की सिफारिश के बावजूद सरकारी अस्पताल के अलावा निजी अस्पतालों में भी मरीज के लिए बेड ना मिल रहे हों। ऐसी खबरों और शिकायतों का दायरा लगातार बढ़ रहा हो तो किसी प्रचण्ड मूर्ख की समझ में भी यह आ जाएगा कि उस शहर के अस्पतालों में जितने बेड उपलब्ध हैं, उससे कई गुना संख्या मरीजों की हो चुकी है। यानी पानी सिर के ऊपर से बहने लगा है।

यह भी सच है कि आजकल लगभग यही स्थिति राजधानी लखनऊ की हो चुकी है। 20 अप्रैल को संक्रमितों की संख्या 52,000 के पार हो चुकी थी और कोरोना संक्रमितों के लिए 5000 से कुछ अधिक मात्रा में ही बेड उपलब्ध थे।

अब समझिये कि लखनऊ की यह स्थिति क्यों हुई ?
लखनऊ जिले तथा उसके इर्दगिर्द 150 से 170 किoमीo की परिधि में स्थित शाहजहांपुर, हरदोई, लखीमपुर, सीतापुर, बहराईच, गोंडा, बलरामपुर बाराबंकी, अयोध्या, सुल्तानपुर, रायबरेली समेत कुल 12 जिलों की जनसंख्या लगभग 4.35 करोड़ है। लेकिन देशकी आजादी के बाद से आज तक इन सभी जिलों के आम आदमी की गम्भीर बीमारियों के उपचार की चिकित्सा व्यवस्था/सुविधा का एकमात्र केन्द्र लखनऊ स्थित ब्रिटिशकालीन किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज ही रहा है। 80 के दशक में लखनऊ में बने उत्तरप्रदेश के एकमात्र संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान (पी जी आई) पर इन 12 जिलों के अतिरिक्त पूरे पूर्वांचल के साथ नेपाल से लगे इलाकों का भी बोझ रहा है। आजादी के बाद लखनऊ में 100- 200 बेड वाले आधा दर्जन सरकारी अस्पताल और बने। ब्रिटिश काल के बने मेडिकल कॉलेज और बलरामपुर सरीखे अस्पताल में बेड की संख्या तो बढ़ाई पर यह सारी कोशिशें ऊंट के मुंह में जीरा बन कर रह गईं क्योंकि आजादी के समय लखनऊ की जो जनसंख्या 5.5 लाख थी, वह आज 10 गुना बढ़ कर लगभग 55 लाख हो चुकी है। ऊपर जिन जनपदों का उल्लेख किया है वहां स्थितियां और बदतर रही हैं। यही कारण है कि लखनऊ मेडिकल कॉलेज और पी जी आई में सामान्य दिनों में भी बेड की उपलब्धता एक टेढ़ी खीर ही रही है।

पी जी आई में क्योंकि उपचार अत्यधिक महंगा है इसलिए गरीब आदमी और आम आदमी की पहुंच से वह हमेशा बाहर ही रहा है। अतः कोरोना काल से पहले भी लखनऊ मेडिकल कॉलेज में बेड की उपलब्धता के लिए मारामारी एक सामान्य बात थी। कोरोना के कहर के बाद स्थिति आज नियंत्रण के बाहर हो गयी है। यह ऐसा कड़वा सच है जिसके साथ जीना हमारी मजबूरी बन चुका है। मुख्यमंत्री से लेकर सरकारी तंत्र के सबसे निचले स्तर के स्वास्थ्य कर्मचारी, अधिकारी, डॉक्टर तक को जमकर कोसने गरियाने के बाद कुछ लोगों का ईगो भले संतुष्ट हो सकता है, थोड़ी वाहवाही लूटी जा सकती है लेकिन इस स्थिति में कोई बदलाव नहीं हो सकता है।

सच तो यह है कि कोरोना के कहर ने लगातार 07 दशकों तक की गई स्वास्थ्य क्षेत्र की आपराधिक उपेक्षा के सरकारी पाप की गठरी को खोला नहीं है, बल्कि उसको बुरी तरह फाड़ कर उसकी धज्जियां उड़ा दी हैं।

आज उपरोक्त स्थिति के लिए किसी एक को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। कवि दुष्यंत कुमार की पंक्तियों में अपनी बात कहूं तो… “इस सिरे से उस सिरे तक सब शरीके—जुर्म हैं।”

उपरोक्त संदर्भ में राजनेताओं की दूषित प्राथमिकताओं के केवल कुछ उदाहरण दे रहा हूं। लगभग डेढ़ दशक पूर्व लखनऊ की पुरानी जेल को स्थानांतरित कर वहां एक बड़ाअस्पताल बनाने की योजना बन चुकी थी। यह योजना तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह ने बनाई थी। जेल को स्थानांतरित भी कर दिया गया था। लेकिन सत्ता बदली और योजना बदल गयी। आज उस स्थान पर 3- 4 हजार करोड़ की लागत वाला विशालकाय स्मारक परिसर है, जहां कम से कम 03 हजार बेड का अस्पताल बनना था। जबकि इस स्मारक को देखने 03 हजार लोग भी पूरे वर्ष में नहीं आते हैं। यहां चारो और सन्नाटा पसरा रहता है।

पूर्व के शासनकाल में गोमतीनगर में तकरीबन 800 करोड़ रूपये से अधिक की लागत वाला वह जे0पी0 इंटरनेशनल सेंटर बनवाया गया जिसका लखनऊ या उत्तरप्रदेश की जनता से किसी प्रकार का कोई लेनादेना नहीं है। वर्तमान में वह सेंटर नौकरशाहों, रईसों और नेताओं की शाम को होने वाली निजी बैठकबाजी का क्लब मात्र बन कर रह गया है।

आज उपरोक्त स्थिति के लिए किसी एक को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। कवि दुष्यंत कुमार की पंक्तियों में अपनी बात कहूं तो “इस सिरे से उस सिरे तक सब शरीकेजुर्म हैं।

केवल मुलायम सिंह ने 2006 में लखनऊ को डॉo राम मनोहर लोहिया सरीखा एक बड़ा चिकित्सा संस्थान दिया तथा 200 बेड का लोकबंधु अस्पताल दिया। कोरोना काल में आज यह दोनों अस्पताल बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उत्तरप्रदेश के इतिहास में अकेले ऐसे मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने 2017 में सत्ता सम्भालने के साथ ही आज़ादी के पश्चात पूर्ववर्ती सरकारों द्वारा लगातार किये गए उपरोक्त पाप का प्रायश्चित करने का संकल्प लिया और इसके लिए ठोस प्रयास प्रारम्भ किये। परिणामस्वरूप उत्तरप्रदेश के सभी 75 जिलों में मेडिकल कॉलेज बनवाने के ऐतिहासिक लक्ष्य के साथ उत्तर प्रदेश में 30 नए मेडिकल कॉलेजों का निर्माण कार्य आज युद्धस्तर पर चल रहा है। रायबरेली एवं गोरखपुर में बनकर तैयार हो चुके एम्स बहुत जल्दी अपनी पूरी क्षमता के साथ कार्य करना प्रारंभ कर देंगे।

उल्लेखनीय है कि योगी आदित्यनाथ ने जब मुख्यमंत्री का पद संभाला था उस समय उत्तरप्रदेश में मात्र 12 मेडिकल कॉलेज थे। ज्ञात रहे कि मेडिकल कॉलेज एक दो महीने में नहीं बन जाते। मुख्यमंत्री योगी के 04 साल के कार्यकाल के दौरान जिसमें एक वर्ष के कोरोना काल के कारण कामकाज बाधित रहा। लेकिन आज मुख्यमंत्री योगी को कठघरे में खड़ा करने का अभियान चल रहा है। जबकि यह भी सच है कि कोरोना की दस्तक के बाद केवल दस माह में उत्तरप्रदेश में आई सी यू की संख्या में 333 प्रतिशत और वेंटिलेटर की संख्या में 225 प्रतिशत की वृद्धि की गयी। लेकिन महामारी के विकराल रूप के आगे यह प्रयास बौने सिद्ध हो रहे हैं। क्या इसके लिए उसी आदमी को कोसना शुरू कर दिया जाए जो प्रयास कर रहा है.? कम से कम मैं ऐसी धूर्तता नहीं कर सकता। क्योंकि मैं लहर के साथ नहीं बहता, अपने पैरों पर खड़े रहने की कोशिश करता हूं।

(लेख: शाश्वत तिवारी, वरिष्ठ पत्रकार, यूपी)