
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
केवल चन्दा, दिखता धन्धा;
भक्ति-भाव है, मन्दा-मन्दा।
भक्त और भगवान् का नाता;
खेल खेलते गन्दा-गन्दा।
अन्धभक्ति का खेल निराला;
गले पड़ा ज्यों निर्मम फन्दा।
पकड़ गिराओ बहुरुपियों को;
रगड़ो जैसे रगड़े रन्दा।
क्रान्ति-पलीता आग छुआ दे;
लाओ कहीं से वैसा बन्दा।
(सर्वाधिकार सुरक्षित― आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २५ मार्च, २०२४ ईसवी।)