अश्वनी पटेल–
खो गया था कहीं मैं एक मोड़ पर।
चल पड़ा साथ एक अजनबी जोड़ कर।
कुछ दूर चलकर देखे उसके नयन।
लग रहा था मिला एक बहार-ए-चमन l
थी कली एक खिली कुसुम की कोई।
मैं था खोया उसी में वो भी मुझमें खोई।
चल पड़े हाथ में हाथ लेकर निडर।
बन गया था मैं उस मंजरी का भ्रमर।
ख्वाहिशें थीं मेरी उम्र भर साथ दें।
लेके दामन उसी का हाथ से बाँध लें।
डाले व्यवधान इतने थे जग ने मगर।
वो थी मंजिल मेरी मैं था उसकी डगर।
एक दिन देखे उसके कंपकंपाते अधर।
थी वो बेबस मुझे देखती आँख भर।
जाने क्यों थे व्यवधान शाम-ओ-सहर ?
न थी उसको ख़बर मैं भी था बेख़बर।
दोनों ने मिलकर फिर एक निर्णय लिया।
अपनी राहों, निगाहों को जुदा कर लिया।
चल दिये फिर वे दोनो अपने-अपने जहाँ।
मैं बिलखता यहाँ वो तड़पती वहाँ।