कविता : उड़ने दो

मत बांधो
इन नन्हीं चिड़ियो को
खुले नील गगन में
उड़ने दो।
नन्हे-नन्हे पंखों से
सहसा इनको भी तो
उड़ान भरने दो।
लड़की हुई तो क्या हुआ
इनको भी तो
अपना नाम
रोशन करने दो।
खुद योनि का भेद कर
पहला योन शोषण
तुम ही करते हो।
लड़की-लड़की बोल कर
लिंग भेद भी
पहले तुम ही करते हो।
मत समझो
इनको कमजोर
इनके सीने में
दुर्गा रहती है
इनकी रगों में
काली बहती है
इनको भी सहसा
हब्शियों का सीना
फाड़ कर
अपने अनुकूल जीने दो।

राजीव डोगरा
(भाषा अध्यापक)
गवर्नमेंट हाई स्कूल ठाकुरद्वारा