अथश्री रगड़ू-झगड़ू-संवाद शुरू― एक

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

रगड़ू― चाचा!
झगड़ू― हाँ भतीजे रगड़ू।
रगड़ू― चाचा! नौकरी तो मिलौ नाय। जब नौकरी नै मिलौ तव छोकरी कैसौ मिलौ।
झगड़ू― एमा तोर मतलब का आय?
रगड़ू― चाचा! अबै हम छत्तीस के होये जाय रहौ।
झगड़ू― तो काय भतीजे?
रगड़ू― चाचा! हम एक बात सोचौ।
झगड़ू― व कौने बात?
रगड़ू― उ बात इ कि हमका ससुर कवनो आपन बिटिया देबै से रहा।
झगड़ू― इ तौ तुमनै सोरहौ आना सच बोला।
रगड़ू― हमरौ कछु सुनौ आ कि अपने ठेले पड़ौ हो।
झगड़ू― अच्छा बता भतीजे।
रगड़ू― मौ का सोचत हौं। ससुर क खेतै मा कुछ होतौ नाय। बंजर-जस दिखौं हौं। तौ चाचा! वह खेतै मा आपन ‘धन्धालय’ खोलि देयँ तौ ओमा कछु बुराई तौ नय? चाचा! तुम तौ हमार जिगरी दोस्त हौ। लँगोटिया यार हौ। तुम चालीस के अउर हम छत्तीस कै। इ ससुर चारि साल के कवनौ अन्तर होय? हाथ मिलाव और अपनौ धन्धौ-पानी शुरू किहा जाय।
झगड़ू― वो कौन सौ धन्धौ?
रगड़ू― ‘माइण्ड रीडिंग’ कौ धन्धौ।
झगड़ू― यह कउन धन्धौ हय?
रगड़ू― “हींग लगै न फिटकरी रंग चोखा होय”। यह आपन ढाई बीघा बंजर खेत मा सोना के खेती करौंगो। आपौ बेरोजगार और हमौ बेरोजगार। दुनिया क चूतिया बनावैं निकल पड़ैं, साथै-साथ।
झगड़ू― तुम्हरौ बात हमरौ पल्लै नय पड़ौ।
रगड़ू― चाचा! तुम सन्न मारि कौ बैठौ। हम जा रियाँ ‘डेट’ मा।
झगड़ू― भतीजे! यह ‘डेट’ मा का होत हय?
रगड़ू― चाचा! एका अभी तुम नय समझ पाऔ। हमौ सुहानी-सँगै ‘डेट’ मा जा रियो, गोवा। उहाँ ‘माइण्ड रीडिंग’ कै तजर्बा हासिल करौं सौं। फिर देखौ, आपन इहै खेतन मा सोना उगै।
झगड़ू― इ सुहानी तुम्हरै कौन लगौं, फिर हमौ लै चलौ।
रगड़ू― अब तुम्हार ‘इण्टरेस्ट’ जाग गयौ; भलौ भयौ। तौ चलौ चाचा; दूनौ ‘डेट’ करौंगो, साथ-साथ।
झगड़ू― अच्छौ भतीजे! इ बताव, इ ‘डेट’ का होत हय अउर इ सुहानी कउन बला हय?
रगड़ू― चाचा! तुमकौ आम खाय से मतलब; आम कौनौ डारि कै होय ससुर कै; तुम चाभै जाव।
झगड़ू― अच्छौ, इ बताव, बंजर खेतन मा कौवनौ दाना-पानी होय ना, फिर तुम सोना उगाय रहौ हौ? उ कैसौ?
झगड़ू― तौ सुनौ चाचा। आपन देस ससुर कै अन्धबिसवास और चमतकारि कै बल पै चलै हौ। हमौ उहै मा झण्डा गाड़न कै हय। कल रातै मा हम दुइनौ उहै खेतै मा रात कै डेढ़ बजै पहुँचैं। हमरै पास पुरान-धुरान पत्थर कै हनुमान भगवान कै मूरत हौ। खेतन का बीचौ-बीच मा खूब गहिर गड्ढा करन कौ हौ। तुम खोदौ, हम माटी निकारयो। जब खोदत-खोदत तु थक जायौ तौ हम खौदौ अउर तुम निकारयो, फिर वही गड्ढन मा हम दुइनौ हनुमान भगवान क पकरि कै उहै मा डारि दिहौ। दुइ महीना हनुमान का उहै मा पड़ौ दियौ रहौ। इ सब ससुर कै हम जानौ अउर तुम जानौ; दोसर नय जानै।
झगड़ू― भतीजे! तुम्हरै बात मा दम दिखौ। आगे बताव।
रगड़ू― दुइ महीनौ-बाद उहै जगह मा समरसेबिल लगावै बदै खुदाई होय। जब खोदत-खोदत चकरा उ कवनौ पत्थर से जैसौं टकराय, खोदा-खोदी रोकाय दौ और मजदूरन का लगाय कै खोदाई सुरू कराय दिहौ। वह गड्ढा से जैसौं हनुमान भगवान निकरयो, ख़ूबै चिल्ल-पौं मचाय दिहौ :― हनुमान भगवान दरसन दियौ-हनुमान भगवान दरसन दियौ। फिर देखौ भीड़ कै आलम। जब ससुर कौ खूबै भीड़ जमौ होय तब गाजै-बाजै-संग धीरौ-धीरौ वह मूरति निकरवायो।
लोगन मा भगती कौं चसका ऐसौं चढ़ौं कि अपनौ ‘धन्धालय’ कै श्रीगणेस भयौ।
झगड़ू― भतीजे रगड़ू― तुम्हरौ इ ‘आइडिया’ बाकौ मा सोना उगाय दै।
रगड़ू― अरे चाचा! सुनौ तौ; तुम बीचै मा कूदै-फाँदै लगौ। जरा सबर करौ।
झगड़ू― अच्छा बता भतीजे।

(क्रमश:)

(सर्वाधिकार सुरक्षित― आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; १९ फ़रवरी, २०२३ ईसवी।)