सबके-सब धुत्त दिख रहे इस मैख़ाने में!

— आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

एक–
सियासत लिपटी बदनामी की चादर में,
सबके-सब धुत्त दिख रहे इस मैख़ाने में!
दो–
अजीब-सा सन्नाटा पसरा इधर और उधर,
आग बो डालो अब, कहीं बीत न जाये पहर।
तीन–
बात आते-आते नज़र में ठहर आती है,
आँखों के इशारे ज़बाँ समझ जाती है।
शिकायत किसकी और किससे करूँ?
बात-बात में साहिबा बदल जाती है।
चार–
उनकी निगाहों की अजीब कैफ़ीयत है,
नज़र के तीर मुफ़्लिसों के सीने पे चलते।
(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २४ सितम्बर, २०२०ईसवी।)