यूपी के राजनीतिक महलों में दब गई लोकतंत्र की चीत्कार

 पूर्व मुख्यमंत्रियों से उनके राजमहल जैसे सरकारी बंगले खाली कराने का सुप्रीम कोर्ट का आदेश जितना महत्वपूर्ण है, उतना ही अहम उसका दूसरा पक्ष भी है। यह कि किसी भी पूर्व मुख्यमंत्री ने अदालत के आदेश का सम्मान करते हुए अपनी तरफ से अपना राजप्रासाद खाली करने की इच्छा नहीं दिखाई। कोई आगे न आया। सुप्रीम कोर्ट का आदेश जनप्रतिनिधियों के आचरण और उन्हें मिलने वाली सुविधाओं की दृष्टि से मील का पत्थर माना जाएगा। 
अदालत ने महलों को खाली कराने के लिए कहा, लेकिन किसी के भी क्षेत्रफल की बात नहीं की। कोर्ट को इससे मतलब नहीं था कि कौन कितने बड़े मकान में रहा है। कोर्ट की भावना सरकारी सम्पत्ति का दुरुपयोग रोकने की थी, लेकिन जो जानबूझकर नहीं समझी गई। वे भला समझते भी क्यों जिन्हें महल खाली करने थे। सुप्रीम कोर्ट ने सार्वजनिक जीवन में शुचिता पर बल देते हुए इंग्लैंड के माइकल पैट्रिक नोलन का हवाला दिया था। नोलन इंग्लैंड के जज थे। उन्होंने इंग्लैंड के प्रधानमंत्री को वर्ष 1994 में सुशासन के सात सिद्धांत सुझाए थे। ये थे-निस्वार्थ भाव, सत्य, वस्तुनिष्ठा, जवाबदेही, पारदर्शिता, ईमानदारी और नेतृत्व। न्याय क्षेत्र में इन्हें ही ‘नोलन प्रिंसिपल्स कहा जाता है। इन सिद्धांतों का हवाला देकर कोर्ट ने अपनी इच्छा स्पष्ट कर दी थी कि उसकी अपेक्षा पूर्व मुख्यमंत्रियों से भी ऐसे ही आचरण की है पर कमाल है जो कहीं पत्ता भी हिल जाता।
इधर राज्य सरकार अब पुनर्विचार याचिका दायर करने जा रही है। वह पूर्व मुख्यमंत्रियों को नोटिस देने जा रही है और मकान उनके पास बने रहें, इसके लिए सुप्रीम कोर्ट भी जा रही है। दुनिया के हर विषय पर घनघोर मत भिन्नता रखने वाले सभी दलों के पूर्व मुख्यमंत्री इस मुद्दे पर एकदम एकराय हैं कि उन्हें महल खाली नहीं करने। बात केवल सरकारी महलों की ही नहीं है। नेता लोग ट्रस्ट बनाकर उसके नाम मकान करा लेते हैं। चार आदमियों के मामूली संगठन के नाम भी वे सरकारी भवन अलॉट करा लेते हैं। कोई भी विधानभवन के चारों ओर केवल एक किलोमीटर की परिक्रमा कर ले, विशाल सरकारी भवनों का दुरुपयोग उसे प्रत्यक्ष दिखेगा। बस, नहीं दिखता है तो राज्य सरकारों को। अवध का एक सोहर है जिसमें एक हिरनी अपने हिरन को अयोध्या के महलों की तरफ न जाने की सलाह देती है। उसका तर्क होता है कि उधर जाओगे तो मारे जाओगे क्योंकि आज शिकारी शिकार के लिए निकले हुए हैं। हिरनी की बात हिरन नहीं मानता और मारा जाता है। महलों की रसोई में उसका मांस पकता है, सब स्वाद लेकर खाते हैं जबकि उसकी खाल एक बाजे पर मढ़ दी जाती है। बाजा जब भी बजता, हिरनी महलों के आगे जाकर खड़ी हो जाती। आंखों में आंसू लिए वह बाजा सुनती और सोचती उसका हिरन उससे बातें कर रहा है।