आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय की पाठशाला

अशुद्ध वाक्य का शुद्धीकरण (‘शुद्धिकरण’ अशुद्ध शब्दप्रयोग है।)

वाक्य– होली की आपको हार्दिक/ अनन्त अनन्त/बहुत/बहुत बहुत/ढेर सारी शुभ कामना/ शुभकामनाएं।

होलिकोत्सव (होलिका+उत्सव) पिछले दिनों सम्पन्न हुआ था। ‘मुक्त मीडिया’ (सोसल मीडिया) नामक मंच पर बहुसंख्या में ‘होली की आपको हार्दिक/अनन्त अनन्त/बहुत/बहुत बहुत/ढेर सारी शुभ कामना/शुभ कामनाएं’– इस प्रकार की शुभकामना प्रकट करते लोग दिख रहे थे। अधिकतर लोग कहीं से शुभकामना व्यक्त करनेवाली सामग्री पा जाते हैं और उनमें अंकित शब्दावली पर बिना विचार किये एक-दूसरे के पास सम्प्रेषित कर देते हैं। उनकी वैसी शुभकामना एकसिरे से अशुद्ध और अनुपयुक्त है। हम यदि कथा-प्रसंग से जुड़ते हैं तो कहा जाता है कि होलिका नामक राक्षसिन विष्णुभक्त बालक प्रह्लाद की हत्या करने के उद्देश्य से उसे अपनी गोद में लेकर धधकती चिता पर बैठ जाती है। ऐसी मान्यता है कि होलिका को आग जला नहीं सकती थी। विडम्बनावश होलिका जलकर भस्म हो जाती है और प्रह्लाद सुरक्षित निकल आता हैं। उसी होलिका के नाम पर ‘होली-दहन’ किया जाता है; अर्थात् होलिका जलायी जाती है। ऐसे में, उस अशुभ पर्व पर होली (होलिका) की शुभकामना क्यों दी जाती है? यहाँ सर्वाधिक विवादास्पद विषय यह है कि लोग ‘होली की’ का प्रयोग करते हैं। ‘होली की’, ‘दीपावली की’, ‘ईद की’, ‘दशहरा की’ आदिक त्योहारों/त्यौहारों के साथ ‘की’ लगाकर शुभकामना प्रकट करते हैं। यह तो ऐसे ही हो गया, जैसे किसी ने कहा– ‘पिता की’ शुभकामना। लोग भूल जाते हैं कि वे किसी अवसर-विशेष पर अपनी मंगलकामना/मंगल-कामना व्यक्त कर रहे होते हैं। व्याकरण की दृष्टि से उक्त प्रकार की वाक्यरचना अशुद्ध और अनुपयुक्त तो है ही, अत्यन्त हास्यास्पद भी है।

उसी आपत्तिजनक वाक्य में जब हम ‘हार्दिक शुभ कामना/शुभ कामनाएं’ पर विचार करते हैं तब ज्ञात होता है कि जब कोई किसी के प्रति शुभकामना प्रकट करता है तब वह ‘हृदय का ही उद्गार’ होता है, अत: ‘हार्दिक’ (हृदय-सम्बन्धी/हृदय से निकला) शब्द का प्रयोग अनुपयुक्त है।

उक्त अशुद्ध वाक्य में ‘शुभ कामना’ का अलग-अलग प्रयोग है, जो कि अर्थहीन है; क्योंकि शुद्ध प्रयोग ‘शुभकामना’/’शुभ-कामना’ का अर्थ है, ‘मंगल ‘की’ कामना’। यहाँ यह ‘षष्ठी तत्पुरुष समास’ का उदाहरण है और ‘सम्बन्धबोधक कारक’ का भी। हिन्दी में ‘शुभकामना’ और ‘आशीर्वाद’ ‘बहुवचन’ में प्रयुक्त नहीं होते। जिस प्रकार ‘उन्होंने आशीर्वादें दिये’ का प्रयोग अशुद्ध है उसी प्रकार ‘शुभ कामनाएं’ अशुद्ध है और अनुपयुक्त भी।

‘ढेर सारी’ में ‘ढेर’ शब्द को समझें। ‘सिक्कों का ढेर’, ‘आम का ढेर’, ‘कूड़े का ढेर’, जो एक प्रकार का समूह है। ऐसे में, जो ‘शुभकामना’ ‘अनुभूति’ का विषय है, उसके लिए ‘ढेर सारी’ का प्रयोग नितान्त हास्यास्पद है। उसी तरह से ‘अनन्त’ और ‘अनन्त अनन्त’, ‘बहुत’ और ‘बहुत बहुत’ के प्रयोग भी निरर्थक हैं।

आप किसी को ‘अवसर-विशेष’ (होली, जन्मतिथि आदिक) पर शुभकामना प्रकट कर रहे होते हैं; ऐसे में, आपका शुद्ध वाक्य होगा–
(१) आपको होलिकोत्सव पर शुभकामना। (२) होली के अवसर पर शुभकामना/शुभ-कामना। (३) रंगपर्व पर आपके स्वस्थ और सुरक्षित जीवन की कामना है। (४) आपके जन्मतिथि-अवसर पर आपकी बौद्धिक/आत्मिक/सारस्वत समृद्धि की कामना है।– ये सद्कामना भाषा की दृष्टि से शुद्ध और उपयुक्त हैं। संस्कृत और हिन्दी-काव्यों में अशुद्ध और अनुपयुक्त शब्दप्रयोग लक्षित होते हैं; क्योंकि काव्य का एक प्रमुख अंग ‘अलंकार’ है, जहाँ ‘अतिशयोक्ति’ (मर्यादारहित कथन), ‘वक्रोक्ति’ (टेढ़ा कथन), ‘वीप्सा’ (अधिकता; पुनरावृत्ति) आदिक की काव्यशास्त्र में विशिष्ट स्थान है; परन्तु गद्यात्मक विधा में ये दोष हैं।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; १२ अप्रैल, २०२१ ईसवी।)