आरक्षण का विरोध क्यों नहीं?

आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय (प्रख्यात लेखक/आलोचक)-

आत्मीय अमित्र-मित्रवृन्द!
‘आरक्षण’ देश को अयोग्यों की पंक्ति मे ला खड़ा करेगा और एक दिन ऐसा भी आयेगा, जब देश पर ‘नितान्त’ अक्षम, असमर्थ तथा संस्कारविहीन लोग शासन-प्रशासन करने लगेंगे; राजनीति और प्रशासनिक विभाग ‘अपराध’ के पर्याय के रूप में बहु-विध रेखांकित होते रहेंगे तथा लोकतन्त्र मात्र अभिशप्त बनकर रह जायेगा।

‘राजनीति में आपराधिक गतिविधियों’ से सम्बन्धित गठित ‘बोहरा आयोग’ के प्रतिवेदन और संस्तुतियों से सुस्पष्ट हो चुका है कि ‘अपराध मे राजनीति’ और ‘राजनीति मे अपराध’ एक-दूसरे के पूरक हैं। ऐसे मे, सहज ही कल्पना की जा सकती है कि देश अपकर्ष और नैतिकता-राहित्य पथ की ओर अति तीव्रगामी होने के लिए व्याकुल है।

भारतीय समाज कैसे विश्रृंखलित हो; जाति-धर्म, पन्थ, वर्गादिक में कैसे पार्थक्य स्थापित हो; सामाजिक मनभेद का कैसे चरम उत्कर्ष हो आदिक अब राजनेताओं के मूल विचार और आचरण-विन्दु बनकर रह गये हैं। ऐसा इसलिए कि ऐसी कृत्रिम परिस्थितियों से जनसामान्य आक्रान्त रहेगा और सत्तालोलुप स्वकेन्द्रित तत्त्व जघन्य स्वार्थ-सिद्धि की दिशा में प्रयत्नशील रहेंगे। दूसरे शब्दों मे, “फूट डालो और शासन करो” को चरितार्थ होते हुए, किंकर्त्तव्य-विमूढ़ की मन: दशा मे लोक, ‘तन्त्र’ के अधीन बनकर मूकदर्शक की भूमिका में दृष्टिगोचर होते रहेंगे।
आरक्षण समाप्त करने के विषय में गम्भीरतापूर्वक चिन्तन करने और समाधान-निराकरण करने-हेतु प्रयास करने के लिए किसी को अवकाश नहीं है, क्योंकि जन उदरपूर्ति करने मे समर्थ दिख रहा है और वह नख-शिख आपराधिक गतिविधियों का विविध भूमिकाओं मे संचालन करने में निष्णात् भी हो चुका है। देश की समस्त जातियों-वर्गों, धर्मो आदिक के प्रतिनिधि-वर्गों को इस दिशा मे समग्रत: गम्भीरतापूर्वक ‘राजनीति-निरपेक्ष’ संवाद करना होगा। आरक्षण असाध्य नहीं है, परन्तु इसके लिए ‘स्वार्थपरता’ के सघन अरण्य से निकलना होगा।

निस्सन्देह, समाज के प्रत्येक निर्बल जाति, धर्म, वर्गादिक को प्रत्येक स्तर पर ‘मानवीय’ आधार पर सहयोग-सहायता प्राप्त होनी चाहिए किन्तु ‘जाति, धर्म, वर्गादिक-विशेष’ के आधार पर कदापि नहीं। इससे जातीय, धर्मीय, वर्गीय आदिक वैमनस्य और द्वेष की ‘चिनगारी’ फूटने लगेगी, जो ‘महाज्वाल’ का रूप लेकर भारतीय समाज की शेष अखण्डता को भस्मीभूत कर देगी; अत: समाज की समरसता में हलाहल मिश्रित करनेवाले समाजद्रोही वर्ग का पूर्णत: बहिष्कार करने की अब आवश्यकता है, क्योंकि ऐसे राष्ट्रघाती तत्त्व जब अलग-थलग पड़ जायेंगे तब उनकी सारी शक्ति विकेन्द्रित हो जायेगी; परिणामत:-प्रभावत: उनकी सक्रियता भी शिथिल दिखने लगेगी।