कोरोना के नाम आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय की एक अन्तरंग चिट्ठी

प्रिय भाई कोरोना!

जुग-जुग जियो।

          इटली, स्पेन, जर्मनी, फ्रांस, संयुक्त राज्य अमेरिका आदिक देशों में तुम्हारा भाव बढ़ रहा था तब मुझे श्रीराम की तरह से कहना पड़ा था-- अपि स्वर्णमय कोरोना पाश्चात्य देश: न रोचते। वही जबसे तुम मेरे देश में अचानक छलाँग लगाकर बारहवें स्थान से सीधे चौथे स्थान पर पहुँचे हो तब से तबीयत रंगीन हो गयी है। इसप्रकार वैश्विक अंकतालिका में तुम चौथे स्थान पर आ गये हो। तुम्हारा वर्चस्व बना रहे। तुम्हारी घोषित रफ़्तार तो बहुत कम है; परन्तु अघोषित गति लाजवाब है। सच पूछो तो तुम इस समय 'तीसरे स्थान' पर हो। हाँ, फिर भी मुझे सन्तोष है; क्योंकि तुम्हारी यही रफ़्तार बनी रही तो तुम बहुत जल्दी तीसरे स्थान पर पहुँच सकते हो। ख़ुदा ख़ैर करे। वैसे अपना देश विश्व की सबसे बड़ी खेलकूद- प्रतियोगिता 'ओलिम्पिक-खेलों' में कभी पाँचवें पादान तक भी नहीं पहुँच पाया है। तुम्हारा भला हो कि नरेन्दर भाई मोदी के शासनकाल में तुमने एक अभूतपूर्व कारनामा कर इस कहावत को चरितार्थ कर दिया है-- मोदी है तो मुमकिन है। हमें तो बहुत मज़ा आया है; पर जानते हो क्यों? अरे यार! एक प्रतियोगिता और लगभग २०० देशों के अनगिनत खिलाड़ी। वैसे 'कोरोना-खेल- प्रतियोगिता' नवम्बर, २०१९ ईसवी से ही आरम्भ हो चुकी थी; परन्तु अपनी लेट-लतीफी के लिए मशहूर 'न्यूइण्डिया कोरोना फेडरेशन संघ' के अधिकारी २४ मार्च,२०२० ईसवी से होश में आ पाये थे; उससे पहले संयुक्त राज्य अमेरिका के जुम्लेबाज़ और झूठे राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के साथ गुजरात में 'गलबँहिया' करते रँगेहाथों पकड़े गये थे। फिर हो क्यों न, जब एक-जैसे सद्गुणवाले दो मित्र एक जगह मिल जायें तो प्रयागराज में स्थित नक़्ली गंगा-यमुना के जल के संगम की भव्यता की भाँति अहमदाबाद के स्टेडियम में भाड़े पर बुलायी गयी भीड़ के बीच उसके कृत्रिम आनन्द का प्रसाद यत्र-तत्र-सर्वत्र तो मिलता ही है।
      और मेरे भाई! अच्छे दिन की यही निशानी भी तो है। तुम्हारे लिए इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है कि मेरे देश 'न्यूइण्डिया' में तुम्हारे प्रति इतनी अधिक श्रद्धा है कि लोगबाग़ तुम्हारे संक्रमणकाल में पैदा होनेवाले बच्चों के नाम करोना कुमार और करोना कुमारी रख लिये हैं। इतना ही नहीं, तुम्हारे कुछ भक्त इतने अधिक श्रद्धावान् हैं कि मन्दिर बनवाकर तुम्हारी मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा कर, अपने खाने-पीने और लूटने तक की व्यवस्था करने में लग गये हैं। तुम्हारा माहात्म्य उसी तरह से अजर-अमर बना रहेगा, जिस तरह से जीवात्मा। तभी तो अपने पार्थ भइया को जब मोह का रोग जकड़ लिया था तब बड़का भइया माधव को आत्मा पर एक लम्बा-चौड़ा उपदेश पार्थ के गले तक ठेलना पड़ा था। चिन्ता मत करो, तुम्हारे पक्ष में सारा देश है।
तुमने ऐसी सर्जिकल स्ट्राइक की है कि सबकी बोलती बन्द है। सर्जिकल स्ट्राइक हो तो तुम्हारी तरह-- न श्रेय लेने की हिम्मत और न ही प्रमाण माँगने का साहस।

      तुमने तो हमारी 'न्यू इण्डिया' की अतिरिक्त चरित्र की धनी, प्रत्येक प्रकार के दुर्गुण-सम्पन्न राजनीति की अंगिया ही ढीली कर दी है। अब उससे न तो ढाँपते बनता है और न ही खुला छोड़ते। आनेवाले समय में भी तुम्हारा प्रभाव दिखेगा; क्योंकि तुमने कृष्ण, विदुर तथा शकुनि की मिली-जुली विद्या 'कल-बल-छल' की ऐसी बिसात बिछा दी है कि बड़े-से-बड़ा शातिर भी गोटी पर हाथ रखने का साहस नहीं जुटा पा रहा है। इतना ही नहीं, तुमने अपनी कूटनीति का परिचय देते हुए, भारतीय राजनीति के क़िले में ऐसी सेंध लगा दी है कि क्या सत्तापक्ष और क्या विपक्ष-- हमाम में सारे-के-सारे नंगे दिख रहे हैं। तुमने जिस तरह से केन्द्र और राज्य-सरकारों के वास्तविक चरित्र के सामने 'हैलोज़न' लगा दिया है, उससे जन-जन साफ़तौर पर देख पा रहा है कि दोनों प्रकार की सरकारें कितनी निरुपाय और किंकर्त्तव्यविमूढ़ हैं। इससे 'नोटा' के सीने में ठण्ढक ज़रूर पहुँच रही होगी।
कोरोना भाई! कितनी सच्ची-मुच्ची बात कही गयी है-- 'अनेकता में एकता न्यू इण्डिया की विशेषता'। हमारी 'तिरछोल' चाची और 'घरडोलावन' अजिया ससुर भी इस सच्ची-मुच्ची पर अपना अँगूठा ठेंप देने में माहिर और जगज़हिर दिख रहे हैं।


अपना देश इतना सहिष्णु रहा है कि उसका जवाब हरदम लाजवाब रहा है। अगर कलियुग में रावण, मन्थरा, सूर्पणखा, कैकेयी जन्म ली रही होतीं तो उनके कारनामों से प्रभावित होकर लोग-बाग़ अपने-अपने घरों में उनकी मूर्ति की स्थापना कर दिये रहते और अपनी सन्तानों के नाम रावण, मन्थरा, सूर्पणखा तथा कैकेयी रखकर आत्ममुग्धता का परिचय दे रहे होते। हमारे देश के लगभग ९० प्रतिशत लोग अवसर को देखते ही उसे चाट लेते हैं, भले ही उन्हें थूककर एक बार फिर से चाट लेना पड़े । इसका मंज़र गाहे-बगाहे रौशनाई की तरह से लोकतन्त्र की प्रयोगशाला में चमक मारता रहता है।


पहले जम्बूद्वीप था; आर्यावर्त्त था; भारतवर्ष था; भारत था; इण्डिया दैट इज भारत था; परन्तु अब पिछले छ: सालों से यह 'न्यू इण्डिया' बनकर रह गया है। हम लोग जब 'न्यू इण्डिया' का इतिहास लिखेंगे न तब तुम्हारा 'जयश्री राम' की शैली में महिमा-मण्डन करेंगे, जिससे कि हमारी आनेवाली सातों पीढ़ियाँ सात समुन्दर पार से भी सतरंगी चश्मा लगाकर सातों आसमान की ओर देखते हुए 'बाऊ' कर पायें।


मेरे कोरोना भाई! तुम्हारा आना ज़रूरी था। यह कलियुग है और कुरुक्षेत्र के मैदान में माधव ने पार्थ को सम्बोधित करते हुए कहा था-- जब-जब धर्म की हानि होती है और अधर्म का लाभ होता है तब-तब धर्म की रक्षा करने के लिए मैं अवतार लेता हूँ। धर्म के नाम पर देश में मार-काट मचायी जा रही है। बेचारे जयश्रीराम को वर्षों तक अपने होने का प्रमाण देने के लिए न्यायालयों में दौड़-भाग करनी पड़ी थी। इतना ही नहीं, उनके परम भक्तों ने उन्हें अयोध्या में चिलचिलाती धूप में तिरपाल के अन्दर घुसेड़ कर रख दिया गया था। बेचारे हनुमान् जी से उनकी जाति का प्रमाणपत्र माँगा गया था। द्वापर, त्रेता तथा सतयुग उदात्त गुणोंवाले युग माने गये हैं, जबकि कलियुग 'अन्धकारकाल की कालिमा' का युग माना गया है। तभी तो वरीयताक्रम के सभी पापी प्रथम श्रेणी के पुण्यात्मा, दिव्य मानव, महामानव आदिक विशिष्ट उपाधियों से नवाजे जा रहे हैं। ऐसे में, इस कलिकाल में ईश्वर का अवतार 'नकारात्मक' रूप में होना तय है। कोरोना भाई! पहले तो मेरी यह धारणा अंगद के पाँव की तरह से थी कि वास्तव में, तुम ईश्वर के अवतार हो; क्योंकि तुम्हारे अकस्मात् प्रकट हो जाने से ऐसा लगने लगा था कि अब भारत के पापियों का तुम संहार कर दोगे; परन्तु तुम्हारा चरित्र तो नरेन्दर भाई मोदी की मृगमरीचिका 'अच्छे दिन' की तरह से ही था।
सारे पापी आज़ाद होकर सीना तानकर घूम रहे हैं और तुम्हारा वजूद मिटाने के लिए हर तरह से लगे हुए हैं। सच तो यह है कि न वे तुम्हारा उखाड़ पाये और न ही तुम उनका उखाड़ पाये। हाँ, तुम्हारी साधना देखते ही बनती है। धर्मध्वजा को हिला-हिलाकर घण्टनाद करनेवाले एक-से-बढ़कर-एक बहुरुपिये अनाश्यक घी, तेल, लकड़ी अपने दिखावे में फूँक दिये; किन्तु तुम्हारे ध्रुवचरित्र को डिगा नहीं पाये। 'न्यूइण्डिया' के मुखिया के आदेश पर थाली, शंख, घण्टी-घण्ट बजाये गये; बत्ती बुझायी और जलायी गयी। मनबढ़ लोग आतिशबाज़ी कर सम्पूर्ण वातावरण में विषबीज बोते रहे; परन्तु तुम्हारा एक बाल तक उखाड़ नहीं पाये। सारा मंज़र देखकर लग रहा था, मानो किसी तपस्वी की कठोर साधना से हिल रहे इन्द्रासन की रक्षा करने के लिए देवराज इन्द्र ने विघ्न-बाधा उपस्थित कर उसकी तपस्या-भंग करा रहे हों।


एक बात तो ज़ाहिर हो ही गयी है-- तुम उन्हीं के संगी-साथी हो; क्योंकि तुम्हारे आने से 'न्यूइण्डिया कोरोना फेडेरेशन' के सभी पदाधिकारी, कर्मचारी आदिक मालामाल हो गये हैं। ये भी कोई बात हुई कि तुम्हारे नाम पर फेडरेशन के मुखिया ने अपने पदनाम का एक खाता खोल दिया और देश की जनता से हाथ जोड़ते हुए उसमें रुपये डालने को बोल गया था और अब वह हड़काकर कहता है-- ख़बरदार! उस खाते में डाले गये रुपयों का हिसाब माँगना भी नहीं। लोग-बाग़ डेरा जाते हैं कि कहीं हिसाब माँगने पर 'देशद्रोही' का आरोप लगाकर जेल में ठुँसवा दे।


मेरे कोरोना भाई! तुम जो भी करा दो, कम है। भारत एक लोकतान्त्रिक देश है। यहाँ खाँसी-खराश, बुखार से लेकर टी०बी०, हैज़ा, कैंसर, एड्स तक का स्वागत किया गया है। यहाँ तुम्हारा और तुम्हारे विषाणु मित्र 'कोविड--१९' का भी स्वागत है। जब तक तुम्हारा मन हो रहो। तुमसे मेरी प्रार्थना है और वह यह कि तुम्हारे उक्त सगे-सम्बन्धी कभी प्रधानमन्त्री-आवास, राष्ट्रपतिभवन, संसदभवन, राज्यों के मुख्यमन्त्री-आवास, राजभवन आदिक स्थानों पर कभी नहीं गये हैं। मेरे मित्र उन स्थानों पर चार-छ: महीने रहकर देखो, बहुत मज़ा आयेगा। एक-से-बढ़कर-एक स्वादिष्ट व्यंजन का आनन्द मिलेगा, फिर स्थान बदलते रहने से स्वास्थ्य भी सही रहता है।। अब देखो न, अपने नरेन्दर भाई को। पिछले छ: सालों में वे न जाने कहाँ-कहाँ से घूम-फिर आये हैं और उनका गाल देखकर पका टमाटर भी पत्तों की ओट में हो जाता है। कहा भी गया है-- महाजन जिन मार्गों पर चलते हैं, उनका अनुसरण करना चाहिए।

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