भारत राष्ट्र को बाँटो मत, हमें एकजुट रहने दो!

‘मुक्त मीडिया’ का ‘आज’ का सम्पादकीय

पृथ्वीनाथ पाण्डेय

देश के समस्त राजनीतिक दलों के आकाओ! प्रधान नेताओ, चौकीदारो, सांसदो, विधायको, छुटभय्यो, रंगदारो तथा अन्ध समर्थको!

देश को धर्मान्ध मत बनाओ; देश को जाति, क्षेत्र, वर्गादिक में बाँटकर देखने का अभ्यास मत करो। देश के नागरिकों की आँखों में धूलि मत झोंको। न्यायालयों के आदेशों-निर्देशों तथा निर्णयों की अवहेलना करते हुए, भारतीय संविधान का उपहास मत करो। इनसे देश कितना शिथिल पड़ता जा रहा है, उधर तुममें से किसी की भी दृष्टि नहीं जा रही है।

देश का सर्वाधिक भयावह शत्रु चीन ताल ठोक रहा है; देश की सीमाओं के भीतर घुसता चला आ रहा है। पाकिस्तान आये-दिन हमारे सेनानियों की हत्याएँ करा रहा है; सीमाओं पर आतंकी गतिविधियाँ परवान चढ़ रही हैं; नक्सली दुस्साहस को पस्त करने का कोई मार्ग नहीं दिख रहा है। साहस हो तो तुम सब वहाँ बहादुरी दिखाओ। अपने घर के सामने एक कुत्ता भी शेर-सा गुर्राता है। राष्ट्र के सम्मुख जो मूल समस्याएँ हैं, उनके निराकरण के प्रति न तो सत्तापक्ष रुचि ले रहा है और न ही विपक्षी दल जागरूक हैं। सभी-के-सभी मौक़ापरस्ती के खोल में घुसे हुए हैं। इससे बेहतर है, यहाँ से लोकतन्त्र को समाप्त कर दिया जाये और ‘अध्यक्षात्मक’ शासन लागू कर दिया जाये। तुम लोग जिस थाली में खाते हो, उसी में छेद करते हो।

किसान, जवान (युवा) और सैनिक के आत्मबल को तुम सबकी गर्हित नीति खोखली करती जा रही है। यदि देश के शिक्षित युवा और किसान किसी भी स्तर पर आन्दोलन कर रहे हैं तो उसके लिए एक सिरे से तुम सब ज़िम्मेदार हो। देश के न्यायालयों के न्यायाधीशगण कहते हैं, न्यायालय का चक्कर लगा रहे शिक्षित बेरोज़गार युवाओं को नियुक्त किया जाये; उन्हें उनका संवैधानिक अधिकार दिया जाये, जबकि सत्ताधारी कानों में ‘ईअर फ़ोन’ लगाकर ‘जयश्रीराम’ का संगीत सुन रहे हैं। श्रीराम तो मर्यादा पुरुषोत्तम थे; रामराज के संवाहक थे; प्रजा का उपालम्भ सुनकर पत्नी तक का त्याग कर दिया था। राजसत्ता पर पद-प्रहार कर ‘अप्रतिम लोकनायक’ कहलाये थे। तुम लोग क्या जानोगे; समझोगे, राम का चरित्र? केशूभाई पटेल, लालकृष्ण आडवानी, अटलबिहारी वाजपेयी, डॉ० मुरलीमनोहर जोशी आदिक की राजनीतिक हत्या करनेवाले यदि ‘राम’ का नाम लेते हैं और उनके ‘नाम’ का आश्रय लेकर राजनीति में मात्र स्वयं की उपस्थिति देखना-दिखाना चाहते हैं तो मत भूलो, देव-ऋषि-मुक्त लोक का स्वप्न देखनेवाले ‘रावण’ की उसी ‘राम’ ने ऐसी दुर्गति की थी कि लंका-साम्राज्य में दीया-बाती बारनेवाला एक भी दुरात्मा नहीं बचा था, इसलिए इतिहास से शिक्षा ग्रहण करो।

आरक्षण लागू कर, देश की योग्यता को पलायन करने, उन्हें दुरवस्था तक पहुँचाने के लिए विगत दशकों की सरकारों से लेकर वर्तमान सरकार तक समान रूप में उत्तरदायी हैं। काँग्रेस, भारतीय जनता दल, राष्ट्रीय वाम मोर्चा, संयुक्त प्रगतिशील संघटन, राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन के शासन-संचालक भारतीय समाज में वैमनस्य पैदाकर ‘सत्ता की राजनीति’ करते आये हैं, फलत: आर्थिक दृष्टि से अति दुर्बल शेष जातियों-वर्गों की स्थिति अब विस्फोटक हो चुकी है।

नारी-गरिमा इन दिनों दिन-दहाड़े विविध स्तरों पर जिस तरह से ध्वस्त की जा रही है; देश के किसी भी नागरिक की सुरक्षा के प्रति जिस तरह से केन्द्र और राज्य की सरकारों की आँखें मूँदीं-सी दिख रही हैं, उससे देश की शोचनीय दशा का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। देश की विकृति दशा और दिशा को समझते हुए भी जिस तरह से तुम सब मौन बने हुए हो तो हो सकता है, आनेवाले कल में तुम लोग की दशा और दिशा तय करने के लिए जनसामान्य ‘सड़क से संसद् तक’ अप्रत्याशित शैली में आरती न उतारने लगे; क्योंकि महर्षि वाल्मीकि ने कहा था, “बुभुक्षित: किं न करोति पापम्।”

आज देश की आर्थिक स्थिति पूरी तरह से डाँवाडोल है; वर्तमान सरकार जनसामान्य की बचत में डाक़ा डालने की ‘जुगत’ भिड़ाती आ रही है। वर्ष २०१४ में देश के जनसामान्य के सम्मुख ‘धक्काड़े के साथ’ बड़े-बड़े वादे बड़ी संख्या में उस व्यक्ति ने की थी, जो कभी स्वयं को देश की जनता का पहरेदार और चौकीदार कहकर उसकी भावना-संवेदना के साथ खेला करता था। अब वह समय आ चुका है जब देश की जनता ‘भारतीय लोकतन्त्र’ के सीने पर चढ़कर वर्तमान सरकार की भी वही दुर्गति करेगी, जैसी कि ‘काँग्रेस’ की हमने की थी।

राष्ट्र को बाँटो मत, हमें एकजुट रहने दो! जिन मुसलिम बन्धुओं के प्रति तुम सब विष उगल रहे हो, वे सबसे पहले ‘भारतीय’ हैं, न कि ‘न्यू इण्डियावासी’। उनकी व़तनपरस्ती का इम्तिहान मत लो। भारतीय समरसता यहाँ के जनसामान्य के रक्त में है, जो न हिन्दू है और न मुसलमां; वह तो महज़ इंसानियत की बेनज़ीर पहचान है, जिसे हिन्दुस्तान का शायर बहुत ही फ़ख़्र के साथ ‘गंगा-जमुना’ (‘जमुनी’ का प्रयोग अशुद्ध है।) तहज़ीब का नाम देता है।

कल-बल-छल’ से युक्त देश की सरकार चलानेवाले लोग अपने साम्राज्य-विस्तार में लगे हुए हैं; परन्तु एक स्वस्थ और समदर्शी शासन-संचालनकर्त्ता के रूप में उनकी अन्तश्चेतना विकारग्रस्त है, तभी एकमात्र दल काँग्रेस के विरुद्ध विष-वमन करते हुए “रँगे हाथों” पकड़े जाते हैं। ऐसे लोग अतिवादी के रूप में आत्मप्रशंसा के लिए किसी भी सीमा का अतिक्रमण करते आ रहे हैं, जिसे ‘भविष्य’ कभी क्षमा नहीं करेगा।

तुम सबसे हमारी गुज़ारिश है— हम भारतीयों को फ़क़त इंसान रहने दो; साम्प्रदायिक विष तुम सभी को मुबारक।

(सर्वाधिकार सुरक्षित : पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; ५ मार्च, २०२० ईसवी)