परिणाम व्यस्तता  के अच्छे हैं

बृजेश पाण्डेय बृजकिशोर ‘विभात’


आज की आपाधापी में  व्यक्ति,  
व्यक्ति  से छूट गया।
निज कर्मों में तल्लीन हो 
अधिक व्यस्त लयलीन भया।
समय नहीं दे सकता है, 
दो-चार प्रेम के शब्दों का।
आधुनिकता के घनचक्कर में 
जीवन कुण्ठाग्रस्त भया।
खग्रास बना मानव जीवन में 
चंद्रग्रहणलगा हुआ है।
हेलो हाय डियर तक  से 
सम्बन्धों में सिमट गया है।
संतति मम्मी पापा से छिटक 
बोर्डिंग में अब लटकी है।
व्यस्तता इतनी कि अपनों से 
वर्षों मिलने को तरसी है।
अवसाद में डूब चुके हैं 
अब केवल व्यस्त गवाही है।
कोई किसी को समझे न, 
और न ही आवाजाही है।
ईश्वर सा दर्शन देकर 
दावत से घर लौटना चाहे है।
मोबाइल इंटरनेट सर्वर सी व्यस्त  
सबकी कहानी है। 
आज व्यस्तता की वजहों से 
एकाकी सब हो गए हैं।
तरक्की के शिखर पर चढ़  
परम्परा पर शर्माए  हैं।
पर कुछ  अच्छे  परिणाम भी  
व्यस्तता के आए हैं।
नुक्ताचीनी से बच रहने में 
दंगे फसाद घबराए हैं।