रोज़गार की चाह में, उजले होते बाल

— आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

एक–
जपो नमो-नमो माला, लिये कटोरा हाथ।
कंगाली में देश है, दिखे न कोई साथ।।
दो–
देश की शिक्षा चोर है, चहुँ दिशि दिखें दलाल।
रोज़गार की चाह में, उजले होते बाल।।
तीन–
देश विपक्षी ‘कोमा’ में, बढ़कर हैं मक्कार।
किंकर्त्तव्यविमूढ़ सब, लगते धरती पर भार।।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २८ सितम्बर, २०२० ईसवी।)