बहुरुपियों को समझना मुश्किल बहुत

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

ज्ञानवापी तो महज़ एक बहाना है
सिर्फ़ महँगाई से ध्यान हटाना है।
जनता को मन्दिर-मस्जिद से क्या,
अस्ल मे ख़ास मुद्दों से भटकाना है।
बहुरुपियों को समझना मुश्किल बहुत,
दरअस्ल २०२४ का चुनाव निशाना है।
बेहयाई का आलम इस क़द्र है दिखे,
दिखता है पुरुष पर लगता जनाना है।
कुछ लोग-बाग़ मज़हबी अफ़ीम हैं चाटे,
उनकी कैफ़ीयत मे बसा सिर्फ़ मैख़ाना है।
हवा का रुख़ मासूमियत-सा है लगता,
फ़ज़ा मे बेवज्ह अपनी टाँगें अटकाना है।
धधकती आग-सी हर हर्फ़ ज़ेह्न मे तारी,
गरमी कुर्सी की औ’ मिज़ाज मनमाना है।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; १७ मई, २०२२ ईसवी।)