भक्त अपने ‘भगवान्’ की बात क्यों नहीं मानते?

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय


कैसी विडम्बना है कि पहली ओर, हमारे धर्माचार्य अपने वचनामृत के अन्तर्गत ‘धर्म’ की परिभाषा करते हैं, “धारयते इति धर्म:।” अर्थात् जो धारण किया जाता है, वह ‘धर्म’ है। मनुष्य जो कुछ भी धारण कर लेता है, उसे दिखाता नहीं है; वह तो स्वत: दिखता रहता है। हाँ, वह उचित धारण करता है अथवा अनुचित, उसके विवेक पर निर्भर करता है। दूसरी ओर, महन्तों, साधु-सन्तों की सवारियों, अखाड़ों इत्यादिक का युद्ध-स्तर पर प्रदर्शन किया जाता है। अंगरक्षकों-द्वारा की गयी व्यूह-रचना में भयाक्रान्त रहनेवाले धर्मोपदेशक जब ‘आत्मा’ की अवधारणा को प्रस्तुत करते हैं तब उनके निरा अबोध बने रहने की प्रतीति उभरती है। ऐसे ही लोग ‘धर्म की दूकानें’ खोल-खोल कर बैठे हुए हैं। आश्चर्य होता है, जब सुशिक्षित धर्मान्धों का एक बृहद् समूह ऐसों का महिमा-मण्डन करते हुए समर्थन में सामने आता है। ऐसे भक्त उन आत्ममुग्ध पाखण्डियों को अपना वास्तविक भगवान् मान लेते हैं और समर्पण (चेतनाशून्य) की मुद्रा में पड़े रहते हैं।

धर्मध्वजा फहरानेवाले इस श्लोक का गायन करते हैं :—–
“नाहं वसामि बैकुण्ठे,
योगिनां हृदयं न च।
मद्भक्ता: यत्र गायन्ति,
तिष्ठामि तत्र नारद।”
ऐसे में, यक्ष प्रश्न हैं :— लोग ‘अपने-अपने भगवान्’ को ‘अपने भीतर’ क्यों नहीं ढूँढ़ते? भगवान् के स्पष्ट कथन का अनुकरण क्यों नहीं करते?

भगवान् तो अपने परम भक्त नारद की शंका का समाधान करते हुए, सुस्पष्ट करते हैं :– न मैं बैकुण्ठ में रहता हूँ और न योगियों के हृदय में रहता हूँ। मेरे भक्त निष्ठापूर्वक जहाँ कहीं भी मेरा स्मरण करते हैं, मैं वहीं उपस्थित हो जाता हूँ।

ठीक यही स्थिति सभी धर्मों की भी है। भगवान् तो कहता है— हम भक्तन के भक्त हमारे। ऐसे में, भक्तों ने क्या कभी इन बिन्दुओं पर विचार किये हैं :—
१- केदारनाथ, बदरीनाथ, अमरनाथ इत्यादिक तीर्थस्थानों में मारे गये अपने भक्तों को भगवान् क्यों नहीं बचा पाते हैं?
२- मक्का-मदीना में हज करने के लिए लाखों लोग जाते हैं और शैतान पर पत्थर के टुकड़ों को बरसाते समय बड़ी संख्या में लोग प्रतिवर्ष वहाँ मारे जाते हैं। ऐसे में, ‘अल्लाह’ उनके ‘ख़ैरख़्वाह’ क्यों नहीं बन पाते हैं?

निष्पत्ति : आपका मूल धर्म ‘कर्त्तव्य है। कर्त्तव्य के प्रति निष्ठा ही पूजा है; इबादत है तथा आराधना भी।
(सर्वाधिकार सुरक्षित : डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, इलाहाबाद; १८ जुलाई, २०१८ ईसवी)