न तो ‘मूसलधार’ शब्द शुद्ध है और न ही ‘मूसलाधार’

आचार्य पण्डित पृथ्वीनाथ पाण्डेय की पाठशाला
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प्रश्न– अध: टंकित शब्दोँ मे से कौन-सा शब्द शुद्ध है और क्योँ?
(क) मुसलधार (ख) मुसलाधार
(ग) मूसलधार (घ) मूसलाधार

◆ यह ऐसा प्रश्न है, जिसका इससे पहले तक कोई शुद्ध उत्तर प्रचलन मे नहीँ आया था। इसका मुख्य कारण है कि हमारे देश मे अब ‘स्वध्याय’ समाप्ति की ओर है; चिन्तन-अनुचिन्तन की क्रिया-प्रतिक्रिया और अनुक्रिया अपनी अन्तिम यात्रा की ओर है। ‘मुखसुख’ को व्याकरण का नियम बतानेवाले जड़बुद्धि लोग सर्वत्र दिखते आ रहे हैँ। मेरे-जैसे दो-चार भाषाविद्यार्थी/भाषा-विद्यार्थी हैँ, जो शब्दोँ की शुद्धता को लौटाने के लिए प्राणपण (‘प्राणप्रण’ अशुद्ध है।) से सन्नद्ध हैँ।

हमारे विद्यार्थी एवं अध्यापक-वर्ग/अध्यापकवर्ग ‘मूसलाधार’ और ‘मूसलधार’ के बीच उलझकर रह गये हैँ, कारण कि ‘जो चल रहा है, चलने दो’ के प्रतिपादक अतिरिक्त बहुमत मे दिख रहे हैँ। कोई संधि का आश्रय लेकर ‘मूसल+धार’, कोई ‘मूसल+आधार’, कोई ‘मूसला+धार’ तो कोई ‘मूसला+आधार’ के रूप मे संधि का विच्छेद करते हुए, अपने उत्तर की प्रामाणिकता प्रस्तुत करता आ रहा है। हमे यहाँ कहने मे कोई झिझक नहीँ कि ऐसे शिक्षित-सुशिक्षितजन यह नहीँ जानते कि संधि सदैव तत्सम (संस्कृतनिष्ठ) शब्दोँ मे होती है। यदि जान रहे होते तो आज हमे इसपर विचार-पुनर्विचार करने की आवश्यकता ही क्योँ पड़ती? इसके लिए सर्वाधिक दोषी वे शब्दकोशकार हैँ, जो ‘मुखसुख’ और प्रचलन की रेखा का अतिक्रमण कर, अपनी मौलिकता को सिद्ध नहीँ कर पाये।

हम पहले उस शब्द पर बहुविध विचार करेँगे, जो आंचलिक है; स्थानिक है एवं प्रचलित भी। वह शब्द ‘मूसल’ है। ‘मूसल’ को ‘मूसर’ भी कहा गया है, जोकि एक बोली का रूप है। ओखली मे रखे गये धान इत्यादिक अन्न को ‘मूसर’ से कूटने का मुझे बालपन मे अवसर मिला था। ‘मूसर’ एक ठोस काष्ठ (तद्भव शब्द ‘काठ’) का मोटा और भारी उपकरण होता है, जो कलात्मक होता है, जिसके तल मे वृत्ताकार सुदृढ़ लोहे का एक वृत्ताकार चूल/ चूला लगा रहता है, जो कूटते समय खाद्यान्न पर दबाव बनाने का काम करता है। ‘मूसर’/’मूसल’ एक अस्त्र भी है, जिसे कृष्ण के भाई बलराम/बलदेव/हलधर धारण करते थे। उस अस्त्र को ‘मुसलायुद्ध’ कहा गया है, जोकि बहुव्रीहि (‘बहुब्रीहि’ अशुद्ध है।) समास का उदाहरण है। जब हमारे गाँव मे भयंकर वर्षा होती थी तब कहा जाता था :– “अरे बाप रे! केतना मूसरधार बरखा होखता।” उसे खड़ीबोली मे कहा गया :– “अरे बाप रे! कितनी मूसलाधार वर्षा हो रही है।” पढ़े-लिखोँ के दो वर्गोँ मे से पहला वर्ग ‘मूसलाधार वर्षा’ का प्रयोग करता आ रहा है और दूसरा वर्ग ‘मूसलधार वर्षा’ का। इसी ‘मूसर’/’मूसल’ को लेकर एक कहावत भी समाज मे परिव्याप्त हो गयी :– “दालभात/दाल-भात मे मूसरचन्द/मूसलचन्द।”

‘मूसरचन्द’/’मूसलचन्द’ शब्दभेद की दृष्टि से संज्ञा का शब्द है तथा लिंग की दृष्टि से पुंल्लिंग-शब्द। इसकी अवधारणा है कि जिस मनुष्य की देहयष्टि/शरीर-संरचना/दैहिक बनावट/शरीर-सौष्ठव सुदृढ़ हो; परन्तु निष्क्रिय/निकम्मा हो, वह ‘मूसरचन्द’/’मूसलचन्द’ कहलाता है।

अब हम ‘मूसरधार’ वा ‘मूसलधार’ शब्द-प्रयोग- औचित्य/शब्दप्रयोग-औचित्य/शब्द-प्रयोग के औचित्य को समझेँगे। यदि हम इसे स्थानिक भाषा वा बोली के रूप मे व्यवहार मे लाते हैँ तब उपयुक्त माना जा सकता है; परन्तु शुद्ध शब्द कदापि नहीँ। इसका कारण यह है कि ‘मूसर’ वा ‘मूसल’ शुद्ध शब्द नहीँ है, जबकि ‘धार’ शुद्ध शब्द है। ‘मूसर’/’मूसल’ और ‘धार’ शब्दोँ की संधि नहीँ की जा सकती; क्योँकि दोनो मे से पहला संस्कृतरहित शब्द है और दूसरा संस्कृतसहित।

‘मूसरधार’/’मूसलधार’ शब्दभेद के विचार से अविकारी शब्द (अव्यय/क्रिया-विशेषण) है तथा लिंग की दृष्टि से पुंल्लिंग-शब्द। इसका अर्थ है, ‘ऐसी वर्षा, जिसमे मूसर/मूसल की भाँति मोटी धार से जल गिरे’।

अब ‘मूसलाधार’ पर विचार करते हैँ। स्थानिक भाषा/बोली के आधार पर इसे भी स्वीकार किया जा सकता है; परन्तु यह शुद्धता की दृष्टि से अर्थहीन/निरर्थक शब्द है।
निस्सन्देह, ‘मूसला’ एक सार्थक शब्द है, जोकि शब्दभेद के विचार से संज्ञा का शब्द है तथा लिंग-दृष्टि से पुंल्लिंग-शब्द। इसका अर्थ है, ‘वह मोटी और सीधी जड़, जिसमे से इधर-उधर शाखाएँ न निकली होँ’। इसका स्त्रीलिंग-शब्द ‘मूसली’ है, जिसका अर्थ है, ‘एक पौधा, जिसकी जड़ औषध के काम मे आती है’।

यदि कोई ‘मूसल’ शब्द को शुद्ध मानता है तो उसे कारण बताना चाहिए। ‘मूसल’ के आरम्भिक दो अक्षर ‘मूस’ से एक सार्थक और उपयुक्त शब्द गठित होता है, जोकि ‘चूहा’ है; परन्तु ‘मूस’ शब्द शुद्ध नहीँ है, ‘मूष’ वा ‘मूषक’ शब्द शुद्ध है; क्योँकि यह संस्कृत-भाषा का शब्द है। जब इस शब्द का अर्थ फ़ारसी-भाषा के साथ जुड़ जाता है तब हमारे सम्मुख उसके लिए वही ‘मूस’ और ‘मूष’ शब्द ‘मूश’ (फ़ारसी-भाषा) के रूप मे उपस्थित हो आता है और हम जिस शब्द (मूषक) को संस्कृत मे ‘चूहा’ के अर्थ मे प्रयुक्त करते हैँ, उसी से मिलता-जुलता शब्द ‘मूशक’ फ़ारसीभाषा मे प्राप्त होता है, जो ‘छोटा चूहा’ वा ‘चुहिया’ (‘चूहिया’ अनुपयुक्त शब्द है।) के अर्थ मे व्यवहृत होता है। विविध भाषाओँ मे एक ही अर्थ-योजना के लिए कितना साम्य है, हमने यहाँ जाना और समझा है।
उपर्युक्त (‘उपरोक्त’ अशुद्ध है।) तथ्योँ और तर्कोँ के आधार पर यह सुस्पष्ट हो जाता है कि ‘मूसलधार’ शब्द अशुद्ध है और ‘मूसलाधार’ भी, फिर तो हमारा मूल प्रश्न अंगद के पाँव-सदृश वहीँ-का-वहीँ खड़ा है।

तो फिर आइए! हम अंगद-पाँव/अंगद के पाँव को सरकाकर उस स्थल पर शुद्ध और उपयुक्त उत्तर का बीज-वपन (बीज का बोना) करेँ।

शुद्ध शब्द ‘मुसल’ है, जोकि शब्दभेद के विचार से संज्ञा का शब्द है तथा लिंग की दृष्टि से पुंल्लिंग-शब्द। ‘मुस्’ धातु का शब्द है, जिसमे ‘कलच्’ प्रत्यय के योग से ‘मुसल’ शब्द की रचना होती है, जो आगे चलकर प्रचलन मे ‘मूसल’ बन गया है। प्रचलन मे ‘मूसलाधार’ और ‘मूसलधार’ है, जबकि ‘मुसलधार’ होगा। यह शब्दभेद के विचार से क्रिया-विशेषण (अविकारी/अव्यय) है तथा लिंग की दृष्टि से पुंल्लिंग-शब्द है।

इस ‘मुसल’ शब्द से ‘मुसलायुध’ (मुसल+आयुध– अ+आ=आ– मुसलायुध) शब्द का सर्जन होता है। ‘मुसलाधार’ (मुसल+आधार) शब्द भी शुद्ध है; परन्तु अर्थ भिन्न है। यहाँ इसका अर्थ ‘मूसल का आधार’ है; अर्थात् मूसल का नीचेवाला भाग ‘मुसलाधार’ है। यह षष्ठी तत्पुरुष समास का उदाहरण है।

संस्कृत-भाषा से निर्गत एक अन्य शब्द ‘मुशल’ है, जोकि शब्दभेद के विचार से संज्ञा का शब्द है तथा लिंग की दृष्टि से पुंल्लिंग-शब्द। यह ‘मुश्’ धातु का शब्द है, जिसमे ‘कलच्’ प्रत्यय का योग है, जिससे ‘मुशल’ शब्द का सर्जन (‘सृजन’ अशुद्ध है।) होता है, जिसका अर्थ ‘मूसल’ है। इस ‘मुशल’ शब्द मे ‘धार’ शब्द के जुड़ते ही ‘मुशलधार’ शब्द की रचना होती है। ‘मुशल’ मे ‘इनि’ प्रत्यय के जुड़ने से ‘मुशली’ शब्द की व्युत्पत्ति होती है, जो कि शब्दभेद के विचार से संज्ञा का शब्द है तथा लिंग-दृष्टि से पुंल्लिंग-शब्द। इसका अर्थ है, ‘मूसल धारण करनेवाला’। कृष्ण के भाई बलराम को ‘मुशली’ कहा गया है।

निष्कर्ष है कि ‘मुसलधार’ शब्द शुद्ध है और ‘मुशलधार’ भी; परन्तु ‘मूसलधार’ और ‘मूसलाधार’ कदापि नहीँ।

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