इलाहाबाद की ऐतिहासिक क्रान्तिगाथा का उद्घाटन शीघ्र

आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

‘आज़ादी का अमृत महोत्सव समिति, प्रयागराज-मण्डल’ की ओर से प्रकाशित ‘इलाहाबाद की आज़ादी’-विषयक कृति मुद्रित हो चुकी है।

वह कृति वहाँ से आरम्भ होती है जहाँ से हमे मुग़ल-बादशाह अकबर के द्वारा १५८३ ई० मे संगमतट-प्रान्त पर स्थित ‘इलाहाबाद-क़िला’ के निर्माण कराने का इतिहास-बोध होता है। २०० से अधिक पृष्ठों की वह कृति ऐसी है, जिसके आधार पर हमारी शोधच्छात्र-छात्राएँ ‘आज़ादी की लड़ाई मे इलाहाबाद की स्वतन्त्र भूमिका’ पर अपना शोधकर्म कर सकती हैं। हमने उसका मूल्य मात्र ₹३०० निर्धारित किये हैं, ताकि अधिक-से-अधिक विद्यार्थी और अन्य जिज्ञासु सहजतापूर्वक उसका क्रय कर सकें; क्योंकि यदि कोई प्रकाशक मुद्रण कराता तो उसका मूल्य न्यूनतम ₹५०० निर्धारित करता।

इलाहाबाद मे खुसरोबाग़, इलाहाबाद का क़िला तथा आनन्द भवन– ये तीन ऐसे महत्त्वपूर्ण स्थल रहे हैं, जहाँ से क्रमश: क्रान्ति की ज्वाला ऐसी उठी कि अँगरेज़ी सेना भाग खड़ी हुई थी; अन्तत:, हमारी स्वतन्त्रतासेनानियों और क्रान्तिवीर-वीरांगनाओं ने इलाहाबाद मे अँगरेज़ी सेना के छक्के छुड़ाकर ‘विजय-पताका’ लहराते हुए, इलाहाबाद को भारत के इतिहास मे ७ जून, १८५७ ई० को पहली बार आज़ाद कराया था, यद्यपि उस आज़ादी की उम्र मात्र १० दिनो की थी। इलाहाबाद को एक दिन के लिए भारत की राजधानी भी बनाया गया था।

उस आज़ादी तक पहुँचने के लिए हज़ारों की संख्या मे ग़ुलाम भारतीय विप्लवी आत्म बलिदान करते रहे।
उस गाथात्मक कृति मे वह सब-कुछ है, जिनके कई तथ्य इतिहासलेखन मे भी नहीं दिखते; क्योंकि वे दुष्प्राप्य तथ्य शोध, गवेषणा, अनुसंधान तथा सर्वेक्षण के परिणास्वरूप प्राप्त हुए हैं। यह भी सत्य है कि इतने सुविचारित योजनान्तर्गत इससे पहले तक कोई क्रान्तिगाथात्मक कृति प्रकाश मे नही आयी थी।

आकर्षक साज-सज्जा के साथ वह कृति ‘भारतीय स्वतन्त्रता-आन्दोलन और क्रान्ति के इतिहास मे अपना अनन्य स्थान अर्जित कर लेगी, यह असन्दिग्ध है।
हम लोकार्पण-अनन्तर उस कृति के आवरणपृष्ठ और अन्य आकर्षक पृष्ठों का विवरण प्रस्तुत करेंगे।