रोती तस्वीर भारत की, कुछ सोचिए हुजूर!

चैनो सुकूँ हो मुल्क मे, कुछ सोचिए हुजूर!
ग़द्दार हर सू दिख रहे, कुछ सोचिए हुजूर!
सरहद पे गोली खा रहे, फ़ौजी जो बेक़ुसूर,
भाषण से क्या मिलेगा, कुछ सोचिए हुजूर!
सौ रुपये की माला चढ़ा, सब फ़ुर्सत हो लिये,
परिवार सिसकी भर रहे, कुछ सोचिए हुजूर!
बरदाश्त से है बाहर ज़ुम्ला, नक़्ली सिँहोँ का,
आये शहादत फ़ासिला, कुछ सोचिए हुजूर!
घरभेदी तो इस मुल्क़ मे हैँ, पूजे जा रहे,
‘ज़िन्दा इन्क़िलाब’ पर, कुछ सोचिए हुजूर!
बुद्धिजीवी पाले जा रहे, चन्द टुकड़ोँ पे यहाँ,
‘तमन्ना सरफ़रोशी की’, कुछ सोचिए हुजूर!
पिँजरे मे कब तक क़ैद कर पालेँगे ‘रामराज’?
धरती है ख़ूँ से रँग रही, कुछ सोचिए हुजूर!
मुल्क की सियासत, अन्धी-बहरी दिख रही,
मुख़ालिफ़ ताल ठोँकते, कुछ सोचिए हुजूर!
सब ह्विस्की-ठर्रा तानकर, ए० सी० मे झूमते,
रोती तस्वीर भारत की, कुछ सोचिए हुजूर!
यह मुल्क है अवाम का, किसी ख़ास का नहीँ।
फिर हिन्दू-मुसल्माँ किसलिए, कुछ सोचिए हुजूर!
ख़ाली हाथ आये थे, जायेँगे ख़ाली हाथ,
फिर इतना क्योँ गुरूर है, कुछ सोचिए हुजूर!

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज ; २९ अप्रैल, २०२५ ईसवी।)