आप संसार को जीत सकते हैँ

आचार्य पण्डित पृथ्वीनाथ पाण्डेय का संदेश

आपमे यदि प्रतिभा, योग्यता, पात्रता, प्रतिबद्धता, संसार को जीतने की इच्छा (जिगीषा) और सामर्थ्य हो तो आप कभी परमुखापेक्षी (पराश्रित/परजीवी/परावलम्बी नहीँ हो सकते।
आपका परम धर्म है, ‘केवल कर्म करते रहना’। आपकी धारणा होनी चाहिए– अभिलषित/अभीप्सित वस्तु मिलेगी तो उचित, न मिलेगी तो भी उचित। आप उसे पाने के लिए ‘शीर्षासन’ करने से बच सकते हैँ।

कम बोलेँ; अधिक सुनेँ, गहन विचार करेँ; बहुत तर्क न करेँ। इससे पहले कि तर्क ‘कुतर्क’ का रूप ले ले, आप वहाँ से हट जायेँ वा/अथवा उस विषय से स्वयं को पृथक् कर लेँ। यदि आप उस विषय मे संलिप्त दिखेँगे तो ‘वैचारिक प्रदूषण’ की गम्भीर स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

व्यक्ति को पहचानना सीखेँ। आपको यदि प्रतीत होता हो कि आप जिसके साथ संवाद कर रहे होते हैँ, वह ऐसे ‘ग्रन्थि-विशेष’ से प्रभावित है, जिसका कोई सामाजिक मूल्य नहीँ; किन्तु समाज के लिए घातक है तो आप उसे समयसत्य विचार-प्रक्रिया के साथ जोड़ने का प्रयास करेँ, फिर भी उसकी दिशा लोकहितकारी न दिखे तो उससे सदैव के लिए सुदूर हो लेँ। यदि आप वैसा नहीँ करते होँ तो आपकी ऊर्जा का क्षरण होता रहेगा; मानसिक उद्विग्नता और समय का अपव्यय भी।

आइए! ‘सत्यसंधान’- ‘शब्दसंधान’ करेँ और अपनी बौद्धिक और वैचारिक प्रतिबद्धता को उत्तुंग शिखर पर समासीन करेँ।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; १८ अप्रैल, २०२५ ईसवी।)