एक अभिव्यक्ति

आचार्य पं॰ पृथ्वीनाथ पाण्डेय

प्रणय-पंछी विकल उड़ने के लिए,
ताकता हर क्षण गगन की ओर है |
किन्तु ममता की करुण विरह-व्यथा,
ज्ञान-पथ को आज देती मोड़ है |
धैर्य की सीमा सबल को तोड़ कर,
दर्द की लतिका हरी बढ़ने लगी |
अर्चना के गीत को झटकार कर,
आफ़तों की रात है हँसने लगी |

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २९ जून, २०२० ईसवी)