आज की स्वतन्त्रता

राघवेन्द्र कुमार त्रिपाठी ‘राघव’

राघवेन्द्र कुमार “राघव”

नयी सुबह की आहट पाकर,
अलसाया भारत जाग रहा है ।
जो जन गण मन को फांस सके,
वो जाल बहेलिया डाल रहा है ।
सब्ज़बाग अच्छे होते हैं खुद के ही,
इन्द्रजाल में फंसकर क्यों भारत हार रहा है ?
ये कैसा समय आ गया है जब स्वाधीन देश
उंगली पर पल-पल मर्कट बन नाच रहा है ।
सत्ता की मछली का चारा बन खुश है जो
आख़िर क्यों वो स्वतंत्रता दिवस मना रहा है ।