● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
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एक–
अत्याचारी देश मे, दिखते हैँ चहुँ ओर।
उनके पापाचार का, कोई ओर-न-छोर।।
दो–
रक्त उबलता देखकर, उनका नित्य कुकृत्य।
दिखते हैँ पथभ्रष्ट सब, दिखता हर दुष्कृत्य।।
तीन–
शुष्क हुई संवेदना, मरता भाव-विभाव।
मन चेतन से दूर है, कल्मष है अनुभाव।।
चार–
परे राज अब नीति है, हो नेता गुणगान।
मायाजाल बिछा रहे, काट रहे सब कान।।
पाँच–
चिन्ता किसको देश की, लूट रहे सब कोष।
बाँट रहे हैँ देश को, जनता है बेहोश।।
(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज ९ नवम्बर, २०२४ ईसवी।)