भारतीय संस्कृति में गुरु का स्थान ईश्वर से भी ऊपर माना गया है।
“गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर:।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः॥”
देश में डॉ० सर्वपल्ली राधाकृष्णन् की जयंती के उपलक्ष्य में शिक्षक दिवस मनाया जाता है। डॉ० सर्वपल्ली राधाकृष्णन् एक शिक्षक होने के साथ-साथ आज़ाद भारत के दूसरे उप राष्ट्रपति थे। साथ ही एक महान दार्शनिक भी थे। डॉ० सर्वपल्ली राधाकृष्णन् ने करीब 40 साल तक एक शिक्षक के रूप में कार्य किया था।
गुरु-शिष्य का नाता तो सदियों पुराना है। एक गुरु ही है जो अपने शिष्यों के व्यक्तित्व विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हर व्यक्ति जन्म के साथ ही कुम्हार के कच्चे घड़े के समान होता है। शुरुआती शिक्षा-संस्काररूपी बातें घर-परिवेश से ही शुरू होती हैं, इसलिए तो माता-पिता को प्रथम गुरु माना गया है। पर जब बच्चा पाठशाला में प्रवेश करता है, तब उसके व्यक्तित्व को मूल्यवान बनाने में, अहम भूमिका एक गुरु ही निभाता है।
गुरु-शिष्य के बीच केवल शाब्दिक ज्ञान का ही आदान-प्रदान नहीं होता है, बल्कि गुरु अपने शिष्य के संरक्षक के रूप में भी कार्य करता है। उसका उद्देश्य रहता है कि शिष्य के अहित को सदैव टाल दे। शिष्य को ज्ञात रहता है कि गुरु उसका कभी अहित सोच ही नहीं सकते। यही विश्वास गुरु के प्रति, उसकी अगाध श्रद्धा और समर्पण का कारण है।
एक शिक्षक कभी भी साधारण नहीं हो सकता। क्योंकि वह एकमात्र ऐसा इंसान है जो आपको साधारण से असाधारण बनाने की क्षमता रखता है। आपकी समझ और आपका ज्ञान विकसित करना ही उसका उद्देश्य नहीं होता है, बल्कि वह आपको प्रेरणा देता है, आपका मार्गदर्शन करता है। गुरु शिष्य के जीवन में एक उद्देश्य लाता है।
डॉ. सपना दलवी, कर्नाटक