
——० यथार्थ-दर्शन– छ: ०—–
★ आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
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एक–
आँखों-अन्धे नयनसुख, मनमिट्ठू के बोल।
सत्तालोभी दिख रहे, जनता-हित है गोल।।
दो–
रागी-वैरागी यहाँ, रँड़ुओं का संसार।
कामी-कंचन-कामिनी, माया अपरम्पार।।
तीन–
नेता आतंकी बने, बाँट रहे हैं देश।
बोल विषैले बोलते, नक़्ली दिखते वेश।।
चार–
नेता इनको मत कहो, करते हैं व्यापार।
मानवता को खा रहे, दिखें धरा पर भार।।
पाँच–
घृणित कृत्य से युक्त हैं, दुर्गुण के हैं खान।
शैतानी हरकत करें, काट रहे हैं कान।।
सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; ५ फ़रवरी, २०२४ ईसवी।)