शालू मिश्रा, युवा साहित्यकार/अध्यापिका (रा.बा. उ.प्रा.वि.सराणा, आहोर), नोहर (हनुमानगढ़)
कौन था वो महान जिसने बनाई थी ये रस्म,
परीक्षा आने का नाम सुनकर वो ही बात याद
आ जाती है ।
प्रश्न पत्र को देख दिमाग की बज जाती है घंटी,
बिना तार ही तन में करंट सा लगा जाती है।
जब लगता है टपकने माथे से पसीना,
परीक्षा भवन में जीते जीे आत्मा सी भटकने लग
जाती है।
दिल भी कुछ क्षण भूल जाता है धङकना,
जब प्रश्न पत्र में कुछ भी नही समझ मेंआता है।
होगी पिता से पिटाई और माँ से लङाई,
मन में बस भय ये सताये जाता है।
परिणाम आने पर घर में होगा बवाल,
ओह! परीक्षा हे! भगवान बस मुँह से निकलता जाता है।