आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय की पाठशाला

भाषा व्यक्तित्व को निखारती है और उसमें एक सुखद आकर्षण भी उत्पन्न करती है। आइए! अपने व्यक्तित्व को सँवारें।

सौन्दर्य और सौन्दर्य-बोध की अवधारणा — कोई भी कविता ‘सुन्दर’ अथवा ‘nice’, ‘beautiful’, ‘great’ नहीं होती तथा किसी भी प्रकार का लेखन ‘सुन्दर’ नहीं होता। सुन्दर वह है, जिसकी अपनी आकृति है। क्या किसी भी शब्द में सुन्दरता होती है? क्या कविता अथवा किसी भी वैचारिक सम्प्रेषण की आकृति होती है? मनुष्य की अपनी एक आकृति है; चित्र की अपनी एक आकृति है; लिखावट की अपनी एक आकृति है; फूल की अपनी एक आकृति है; फर्नीचर (मेज-कुर्सी आदिक) की अपनी एक आकृति है— इन्हें सुन्दर अथवा असुन्दर कहा जाता है।

ज्ञातव्य है कि कविता अथवा किसी भी प्रकार का विचार आकृति-रहित होता है, इसलिए वह ग्रहणीय होता है; स्वीकार्य होता है ; प्रेरक होता है; उत्तम होता है; अत्युत्तम होता है; उत्कृष्ट होता है; मार्मिक होता है; मर्मस्पर्शी होता है; आदर्श होता है; यथार्थ होता है; समय-सापेक्ष होता है; समय-सत्य होता है; उपयोगी होता है; महत्त्वपूर्ण होता है; समसामयिक होता है; समीचीन होता है; प्रासंगिक होता है; तर्क-संगत होता है; प्रभावकारी होता है; अनुकरणीय होता है; अस्वीकार्य होता है; निन्दनीय होता है; अमर्यादित होता है; अभद्र होता है; असंसदीय होता है; कुत्सित होता है; गर्हित होता है; त्याज्य होता है तथा आपत्तिजनक भी।

शब्द ‘बेहतर’/ ‘अत्युत्तम’ (better) है, ‘बहुत बेहतर’/’अति अत्युत्तम’ नहीं है। शब्द ‘बेहतरीन’/’सर्वोत्तम’ (best) है, ‘सबसे बेहतरीन’/’सर्व सर्वोत्तम’ नहीं है। जब किसी के साथ तुलना की जाती है तब वहाँ ‘बेहतर’/’अत्युत्तम’ का प्रयोग और जब कोई सबसे अच्छा दिखे तब ‘बेहतरीन’/ ‘सर्वोत्तम’ का प्रयोग होता है। वही हिन्दी में उत्तम, अत्युत्तम तथा सर्वोत्तम कहलाता है।
सौन्दर्य के रूप पर एक नज़र :–
महिला (beautiful), पुरुष (handsome), फूल-पत्तियाँ (pretty), चित्र, लिखावट (fine) तथा फर्नीचर (nice)।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २१ फ़रवरी, २०२१ ईसवी।)