आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय की पाठशाला

आप नीचे एक कोश के आवरण-पृष्ठ और उसके आरम्भिक पृष्ठ के क्रमश: दो चित्रों को ध्यानपूर्वक देखें। इसे देश के प्रसिद्ध प्रकाशन-प्रतिष्ठान ‘डायमंड’ प्रकाशन, दिल्ली ने प्रकाशित किया है। यह हिन्दी का एक शब्दकोश है; परन्तु आवरण-पृष्ठ पर मुद्रित कोश का नाम ही अशुद्ध है। आवरण-पृष्ठ पर कोश का नाम मुद्रित है, ‘व्यवहारिक हिंदी शब्दकोश’ और आरम्भिक पृष्ठ पर भी यही मुद्रित है।

पहले हमने विचार किया, हो सकता है, भूलवश, अशुद्ध नाम मुद्रित हो गया हो। इसकी पुष्टि के लिए सम्बन्धित कोश के आरम्भिक पृष्ठ पर दृष्टि-निक्षेपण करना आवश्यक था। हमने जब उस पृष्ठ को देखा था तब यह निश्चित हो चुका था कि कोशकार और प्रकाशक अथवा कोशकार अथवा प्रकाशक को यही नहीं ज्ञान कि शुद्ध शब्द ‘व्यवहारिक’ है अथवा ‘व्यावहारिक’? चूँकि आवरण-पृष्ठ पर कोशकार के रूप में दो नाम अंकित हैं : गिरिराज शरण अग्रवाल और डॉ० बलजीत सिंह, जिनमें से ‘गिरिराज शरण अग्रवाल’ भाषिक क्षेत्र का एक सम्मानित नाम है, अत: सत्य का सन्धान करना और पाठक-वर्ग को भाषिक शुचिता के प्रति जागरूक करना, हमारा परम कर्त्तव्य बन जाता है।

इस नाम में तीन प्रकार की अशुद्धियाँ हैं :—
प्रथम, व्यवहारिक (प्रत्यय-सम्बन्धित), द्वितीय, हिंदी (अनुनासिक-सम्बन्धित) तथा तृतीय, हिंदी शब्दकोश (समास-सम्बन्धित)।

हमने यहाँ प्रत्येक अशुद्धि पर व्याकरण-सम्मत अनुशीलन किया है, जिसका विवेचन-पक्ष निम्नांकित है :–

प्रथम अशुद्धि—
मूल शब्द ‘व्यवहार’ है। इसमें जैसे ही ‘ठक्’ प्रत्यय का संयोग होता है वैसे ही ‘इक’ का सर्जन होता है। ‘इक’ की ध्वनि आते ही ‘व्यवहार’ ‘इक’ से जुड़ते ही दीर्घ हो जाता है, परिणामस्वरूप ‘व्यवहार’ ‘व्यावहारिक’ का रूप ग्रहण कर लेता है, जो ‘विशेषण’ कहलाता है। अब इसका अर्थ प्राप्त होता है, जिसे व्यवहार में लाया जा सकता हो। इसे अनेक शब्दों के लिए ‘एक शब्द’ के रूप में भी प्रयोग में लाया जा सकता है।

ज्ञातव्य है कि उक्त प्रत्यय-विधान कर, व्यवसाय से व्यावसायिक, रसायन से रासायनिक, अध्यात्म से आध्यात्मिक इत्यादिक का सर्जन किया जाता है।

इस प्रकार यह सिद्ध होता है कि कोश का आरम्भिक शब्द अशुद्ध है।

द्वितीय अशुद्धि—
इस कोश के नाम में प्रयुक्त ‘हिंदी’ के स्थान पर ‘त वर्ग’ के पञ्चमाक्षर (पूर्ण ‘ञ’ का स्वयं में कोई अस्तित्व नहीं है; उसका खण्डित चरित्र ‘ञ्’ ही उपयोगी है।) का प्रयोग होगा; क्योंकि ‘हिंदी’ का ‘द’ ‘त वर्ग’ का तृतीय वर्ण है। इस प्रकार ‘हिन्दी’ का प्रयोग करना होगा। जो लोग मानकीकरण के नाम पर ‘मात्र बिन्दी’ (हिंदी) के प्रयोग को शुद्ध मानते हैं, उनसे हमारा कहना है कि जब सहजतापूर्वक ‘अर्द्ध न’ (न्)-व्यवहार की सुविधा उपलब्ध है तब उसके प्रयोग की उपेक्षा न करें।

तृतीय अशुद्धि—
यह अशुद्धि ‘हिन्दी शब्दकोश’ के अन्तर्गत सामासिक चिह्न न लगाने की है; क्योंकि उक्त कोश में प्रयुक्त ‘हिन्दी शब्दकोश’ का कोई अर्थ नहीं निकलता। कोशकार ने उपर्युक्त शब्दावली का प्रयोग ‘हिन्दी का शब्दकोश’ के अर्थ में किया है, जो कि सामासिक चिह्न (विग्रह) के न प्रयोग किये जाने के कारण ‘अशुद्ध’ है। ‘हिन्दी ‘का’ शब्दकोश’ में व्यवहृत ‘का’ (सम्बन्धसूचक कारक की षष्ठी विभक्ति का चिह्न) ‘षष्ठी तत्पुरुष’ समास का बोध कराता है। ऐसे में, सम्बन्धित प्रकाशक को इस प्रकार से मुद्रित कराना था, ‘विग्रह’ के रूप में ‘व्यावहारिक हिन्दी-शब्द-कोश’ अथवा ‘व्यावहारिक हिन्दी-शब्दकोश’ अथवा ‘व्यावहारिक हिन्दीशब्द-कोश’ अथवा समास के रूप ‘व्यावहारिक हिन्दीशब्दकोश’।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २५ फ़रवरी, २०२१ ईसवी।)