आचार्य पण्डित पृथ्वीनाथ पाण्डेय की पाठशाला

■ अधोटंकित वाक्य मे किसप्रकार की अशुद्धि/अशुद्धता है? आप इसे शुद्ध करते हुए, प्रस्तुत करेँ–
● असफलताऐँ हमारे सोच को मन्द करता हो।
■ हम ‘अधोटंकित’ शब्द का प्रयोग जाने कब से करते आ रहे हैँ, जोकि अशुद्ध है; परन्तु किसी का ध्यान उधर नहीँ गया। हमने अपने इस प्रश्न को कई समूह मे प्रेषित किये थे। कल (२५ अगस्त) एक समूह के सदस्य श्री प्रेमचन्द शर्मा, जो मेरे लिए सर्वथा अपरिचित हैँ, ने केवल इतना लिखा था– अध:टंकित। वैसे शुद्ध ‘अध: टंकित’ होगा, न कि ‘अध:टंकित’। हम इस शुद्ध शब्दप्रयोग की प्राप्ति के लिए जाने कबसे अशुद्ध लिखते आ रहे थे; ग्लानि भी हो रही थी।
अब ‘अध:’ शब्द का बोध करेँ। ‘अध:’ संस्कृतभाषा के शब्द ‘अधस्’ से निर्गत हुआ है, जोकि शब्दभेद के विचार से अव्यय-शब्द है। उदाहरण के लिए– अध: पतित, अध: लिखित, अध: मुद्रित, अध: क्रिया इत्यादिक। इसीप्रकार मन: (मनस्) के साथ ‘मन: दशा’, ‘मन: कामना’, ‘मन: स्थिति’, ‘मन: योग’ इत्यादिक शब्द बनाये जाते हैँ।
इसप्रकार हमारा शुद्ध प्रश्न होगा :–

◆ अध: टंकित वाक्य मे किसप्रकार की अशुद्धि/अशुद्धता है?

कारण-सहित उत्तर–

उपर्युक्त अशुद्ध वाक्य मे कर्त्ता और क्रिया अशुद्ध हैँ। कर्त्ता ‘असफलताएँ’ शुद्ध नहीँ है। यहाँ दो तथ्य हैँ :– पहला, सफलता का विपरीत शब्द है, ‘विफलता’। हम किसी शब्द के आगे तब ‘अ’ लगाकर उसका विपरीतार्थक शब्द बनाते हैँ जब उसके लिए कोई ठोस शब्द नहीँ दिखता। उदाहरण के लिए– एक शब्द है, ‘प्रत्यक्ष’, जिसका विपरीतार्थक शब्द है, ‘परोक्ष’; परन्तु बहुसंख्यजन उसका ‘अप्रत्यक्ष’ के रूप मे प्रयोग करते आ रहे हैँ। इसका दूसरा तथ्य यह है कि ‘विफलता’ भाववाचक संज्ञा है और भाववाचक संज्ञा का बहुवचन नहीँ बनाया जा सकता; क्योँकि इसके अन्तर्गत भाव वा रस, गुण वा अवस्था आता है। इसप्रकार हम ‘असफलताएँ’ के स्थान पर ‘विफलता’ का व्यवहार करेँगे।

उपर्युक्त वाक्य के कर्म-शब्द ‘हमारे सोच को’ मे ‘सोच’ पुंल्लिंग-शब्द है, इसलिए ‘हमारे सोच को’ शुद्ध है। देश मे लगभग सभी लोग ‘सोच’ को स्त्रीलिंग-शब्द के रूप मे प्रयोग करते आ रहे हैँ; लगभग सारे शब्दकोश मे ‘सोच’ को स्त्रीलिंग-शब्द बताया गया है, जोकि सर्वथा अशुद्ध है।

हमे अन्त मे, क्रिया ‘मन्द करता हो’ उपयुक्त प्रयोग नहीँ दिख रहा; क्योँकि यहाँ दो प्रकार के दोष हैँ :– पहला, ‘मन्द’ है। हमे समझना होगा कि ‘मन्द’ का प्रयोग कहाँ होता है :– मन्द बुद्धि, मन्द हवा इत्यादिक। यह हिन्दी-भाषा का शब्द है। ‘मन्द’ के समानार्थी शब्द हैँ :– धीमा, सुस्त, शिथिल इत्यादिक। इस दृष्टि से सोच-विचार के लिए ‘मन्द’ विशेषण का प्रयोग शुद्ध नहीँ है। हम ‘मन्द कथन’, ‘मन्द भाव’, ‘मन्द लेखन’, ‘मन्द रचना’ का प्रयोग नहीँ करते; क्योँकि ऐसा प्रयोग अशुद्ध है और अनुपयुक्त भी।

एक अन्य ‘मन्द’ फ़ारसी-भाषा का प्रत्यय है, जिसका अर्थ ‘युक्त’/’वाला’ है। उदाहरण के लिए– अक़्लमन्द (बुद्धि से युक्त), ज़रूरतमन्द (ज़रूरत से युक्त) इत्यादिक।
हमे ‘सोच’ के साथ ‘कुन्द’ का प्रयोग करना होगा; क्योँकि मनुष्य का ‘विचार कुन्द’ पड़ जाता है। ‘कुन्द’ फ़ारसी-भाषा का शब्द है।

इसप्रकार उपर्युक्त वाक्य के क्रियात्मक शब्द ‘मन्द करता हो’ के स्थान पर ‘कुन्द करता है’ होगा; क्योँकि किसी वाक्य की ‘क्रिया’ का निर्धारण उसका ‘कर्त्ता’ और ‘कर्म’ ही करते हैँ। उदाहरण के लिए– तृषा घर जायेगी। मैने दो रोटियाँ खायी हैँ।

इसप्रकार हमारा शुद्ध वाक्य है :–
◆ विफलता हमारे सोच को कुन्द करती है।

(सर्वाधिकार सुरक्षित― आचार्य पण्डित पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २६ अगस्त, २०२४ ईसवी।)