उजाड़

ज़ैतून ज़िया :

तुम्हारे पास किस्से हैं
वसंत के
प्रेम के
कहानियाँ हैँ
गुलदस्तों की
तितलियों की !!

मेरे पास नहीं है
मै उजाड़ हूँ
यहाँ कोई नहीं आता
कभी कभी आते है जंगली जानवर
भूख को
शिकार को
साधते है निशाना
मेरे मासूम चूहों, नेवलों और खरगोशों पर
ज़मीन कि गहराई से बाहर आने के इंतज़ार में
रहते है इस गर्ज़ कुछ दिन मेरे साथ
पेट भरते ही चले जाते वापस !!

कोई इंसान नहीं आता इधर
जो आया भी कोई
तो बिवाइयां पड़ जाएंगी
पहुंचने में मुझ तक
तलवों से रिस्ता होगा लाल पानी
मेरे पास मरहम नहीं है
आगे बढ़ने कि कोशिश ना करो तुम !!

©ज़ैतून ज़िया