भरोसा रख उस कोख पर, जिससे मैं तुझसे जुड़ी हूँ माँ

शिवांगी जैन

कवयित्री शिवांगी जैन

आज अंधेरे में हूँ तो क्या
तेरी हिम्मत की लौ से जमाना देखना चाहती हूं माँ ।
बेटों की इस दौड़ में दौड़ना चाहती हूं माँ ।
हमेशा दर्द हम बेटियों ने सहा है
आज तेरा हिस्सा बनकर
इस दुनिया से लड़ना चाहती हूं माँ ।
भरोसा रख उस कोख पर
जिससे मैं तुझसे जुड़ी हूँ माँ
तेरी उंगली पकड़कर
इस खुले आसमान में उड़ना चाहती हूं माँ ।
क्यूं जमाने ने हम बेटियों को हमेशा दी मौत दर्द तन्हाई है
हर वक्त बहते रहे आंसू हमारी आंख से
मगर जमाना समझा कि यह सिर्फ पानी है ।
मेरी धड़कने जुड़ी है तुझसे इस जहाँ में आने से पहले
तेरी भी आंख नम हुई होगी मेरी सांस टूटने से पहले
फिर क्यूं न तूने हिम्मत दिखा दी मेरी नब्ज छूटने से पहले ।
कब तक मैं इस तरह दम तोड़ती रहूंगी
कब तक सड़कों के किनारे और गड्ढों में सड़ती रहूंगी ?
क्यूं जिंदगी से पहले हमारे हिस्से में मौत लिख दी जाती है ?
गर हमारे मरने पर तू तड़पती है
तो आसानी की मौत हमें भी नहीं मिलती है
अब तो हिम्मत दिखा दो माँ
वरना यूँ ही मेरी तरह हर बेटी
कोख में मौत का इंतज़ार करती रहेगी माँ ।
जिंदगी की तलाश में न जाने
कितनी ही कोखों में भटकती रहेगी माँ ।।