यह रही, हमारी पाठशाला– दो सौ एक (समापन)

किसी भाषा की पत्रकारिता के इतिहास मे यह पहला उदाहरण है कि 'प्रतिदिन' लगभग 'सात माह' तक निर्बाध रूप से 'शब्द-विषयक' कोई 'स्तम्भ' प्रकाशित होता रहा हो। इस गरिमामयी उपलब्धि के लिए 'न्यायाधीश' समाचारपत्र के सम्मान्य सम्पादक अमरनाथ श्रीवास्तव जी साधुवाद के पात्र हैँ।

यह पाठशाला प्रकाशन की दृष्टि से यहीँ पर विराम लेती है; परन्तु इसका टंकण होता रहेगा; क्योँकि अभी एक सहस्र पाठशाला-प्रणयन करनेका लक्ष्य है, जो हमारे सुविधानुसार लक्ष्य की ओर अग्रसर रहेगा।

दो सौ एक पाठशाला-प्रकाशन के अनन्तर प्रकाशन-स्थगन का निर्णय इसलिए करना पड़ा है कि अन्य सर्जनात्मक योजनाएँ पिछड़ रही थीँ; समन्वय और सामंजस्य के मध्य संतुलन स्थापित नहीँ हो पा रहा था।
यह हमारा एक प्रकार का ‘बौद्धिक प्रतिशोध’ था, जो नकार को सकार की गोद मे बैठाने मे सफल रहा। प्रतिशोध की आग अभी ठण्ढी नहीँ हुई है।