तन्हाई में अश्कों की बारात सजाता है
डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ दर्द तड़पाता है कभी चुप हो जाता है तन्हाई में अश्कों की बारात सजाता है । ग़म रुलाता है कभी कसक बन के रह जाता है भूले मंज़र याद करके दिल को सताता है । यादें सुलगती हैं कभी थम सी जाती हैं हर लम्हे को ज़ेहन में सजा के सिसकाती हैं । तन्हाई जलाती है कभी ख़ामोश हो जाती है मेरी ओर इशारा करके मुझे चिढ़ाती है ।