सब बातों को छोड़कर

December 26, 2017 0

आकांक्षा मिश्रा – ______________________________ दिसम्बर की सर्दी रजाई में दुबके हुए इंसान मायूस से आये नजर कभी भोर में चलते उस महिला को देखते , इधर के दिनों सातवां महीना चल रहा है एक साथ […]

बातें- जज्बे

December 20, 2017 0

डाॅ. पृथ्वीनाथ पाण्डेय- 0 उनके दर पे पहुँच कर भी, पहुँच न सका, नज़रें यों झुकीं, हम सलाम कह न पाये। 0 रंजो-ग़म भूलकर, हम ज्यों गले मिले, ख़ंजर जिगर के पार, मिलते रहे गले। […]

एक अभिव्यक्ति—-

December 17, 2017 0

जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद- कविता मेरी ठिठुर रही है, निष्ठुर ठण्डी आहों से। डरता हूँ वो बिछुड़ न जाए, प्रेम भरी इन राहों से।। घुटन नहीं ये प्रेम है मेरा, जानो कितना विवश हूँ मैं, जैसे […]

हायकु : मद्यपान

December 17, 2017 0

जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद मधुशाला में जा के हाला पिये जगहँसाई व्याकुल प्रिय घर भूत का डेरा रूठा जीवन यकृत नष्ट दृग छाया अँधेरा सब बेकार देशी-विदेशी जीवन शत्रु हमीं अधरप्रिया जीवनशैली हर आयुवर्ग में फैला […]

उत्तरदायी

December 9, 2017 0

आकांक्षा मिश्रा–  इन विगत वर्षों में अनगिनत सवालों ने बहुत परेशान तुम्हे परेशानिया उठाई नही कुटिल मुस्कान नई चालें चल रही थी अगले दिन के लिए मुग्धा अनायाश भटक रही थी ओट में चाहों में […]

एक बेग़ाने के नाम पत्र

December 7, 2017 0

आकांक्षा मिश्र- पिछले कुछ दिनों से देख रही हूँ तुम व्यवस्थित जीवन जीने के लिए घर का नक्शा बदल रहे हो । साथ ही जीने का सलीका भी । अच्छा है गतिमान जिंदगी के कई […]

किसने क्या कहा?

December 6, 2017 0

 डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय- जब मैं जीवन का मूल अस्तित्व तलाश करने लगा तब हृदय ने अतिवादी कहा | जब मन को मन में पैठाने लगा तब शरीर ने उत्पाती कहा जब विचार का विचार से […]

हिन्द की एकता

December 5, 2017 0

जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद- शंख और अजान से होती है भोर मेरे भारत की, ये बात है हमारे अटल विश्वास और आदत की। हिन्द की शान में हम एक ही हैं जान लो ‘जगन’ बात है […]

भूल जाओगे हमें यह पाप है

December 4, 2017 0

पवन कश्यप (युवा गीतकार, हरदोई)- यदि नयन रोते रहे संताप होगा। भूल जाओगे हमें यह पाप होगा।। हरि से हरि नारद बने थे, प्रेम मे बस वह सने थे। शब्दों के फेरो में फसकर, मायूसी […]

सूरज की किरणें

November 30, 2017 0

जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद, मो०- ९६७००१००१७ अरुणोदय हो गया शिखर में, किरणों से सुरभित हो गई धरा। पशु-पक्षी भी हो गए प्रफुल्लित, धरती का दामन है हरा – भरा। कलियां पुष्पित होकर मुसकाईं, चञ्चरीक ने किया […]

एक अभिव्यक्ति

November 28, 2017 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय- तुम्हारी पूर्णता भाती नहीं मुझे क्योंकि तुम मुझसे द्रुत गति में दूर हो रहे हो। हाँ, मैं अपूर्ण हूँ। तुम मुग्ध हो, अपनी पूर्णता पर और मैं गर्वित हूँ, अपनी अपूर्णता पर […]

ग़ज़ल- अन्धों का शहर है यहाँ जागते रहो

November 28, 2017 0

जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद हर आँख है उनींदी सी आँकते रहो। अन्धों का शहर है यहाँ जागते रहो।। आँखों में है मुहब्बत या है नुमाईश, हर पल निगाहें उनकी भाँपते रहो। कैसा है दस्तूर और कैसा […]

हाइकु : मिट्टी

November 27, 2017 0

जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद- * १* मैं ही मिट्टी हूँ! धरा की चहक हूँ! सुरभित हूँ! *२* चाक की शान हूँ! सोंधी सी महक हूँ! मैं तिलक हूँ! *३* मैं करीब हूँ! मौत में नसीब हूँ! […]

जीव एवं प्रकृति

November 24, 2017 0

जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद बाग़ किनारे खेत है मेरा, बाग़ में है खगवृन्दों का डेरा। विविध रूप और रंग -बिरंगी , संग में लातीं अपनी साथी संगी। तरह-तरह के हैं ये गाना गाती, हर मन को […]

दृगबन्धों न नीर बहे

November 23, 2017 0

जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद कविते!तेरे दृगबन्धों से न नीर बहे, मणिबन्धों से मिलकर ये पीर कहे। मेरा हृदय तेरा हृदय संश्लिष्ट होकर, क्यों दुनिया भर के ये तीर सहें । कविते!तेरे दृगबन्धों……………. अद्भुत है तुझमें यूँ […]

तलाश…..

November 23, 2017 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय- मेरे दोस्त! मुझे तलाश है तुम्हारे  मेरा न होकर भी कुछ होने का | हर तलाश मुझे झुठला देती है; स्वाभिमान को गिरवी रख गले में विवशता की घण्टी लटका बहलाती रहती […]

इतिहास बीमार है—

November 22, 2017 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय   इतिहास के फड़फड़ाते पृष्ठ कर रहे हैं, असामयिक मौत का इन्तिज़ार  और बदलता युग, वार्धक्य का एहसास करते हुए समय के चरमराते पलंग पर खाँसता है। इंसान बूढ़े होते इतिहास की […]

 कब तक

November 21, 2017 0

राघवेन्द्र कुमार “राघव”- कल भी मरी थी कल भी मरेगी । आखिर वो कितनी बार जलेगी । पहले तो तन को भेड़िया बन नोच डाला । शरीर से आत्मा तक जगह-जगह छेद डाला । लाश […]

मेरा भारत सुन्दर भारत

November 19, 2017 0

जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद- देश हमारा सन्त सरीखा मुकुट हिमालय है जिसका । कटि में बनी मेखला गङ्गा सागर पग धोता है जिसका।। धन्य है भारत भूमि सखे!  धन्य है इसकी अतुल कान्ति। इस मिट्टी के […]

दिल की धड़कन मिली और दिल भा गया : पवन कश्यप (हरदोई)

November 15, 2017 0

मुद्दतों से जिसे खोजता मैं रहा, स्वप्न मे था अभी तक वो दिन आ गया । तुमसे मिलकर लगा मिल गया ये जहाँ, दिल की धड़कन मिली और दिल भा गया । तुमने देखा मुझे […]

गीत : प्रिय न जाओ अभी चांदनी रात है

November 15, 2017 0

आदित्य त्रिपाठी “यादवेन्द्र”- नैन की नैन से हो रही बात है । प्रिय न जाओ अभी चांदनी रात है ॥ बावरी हूँ विरह में तुम्हारे पिया । आपके प्यार की मैं दुखारी पिया । आस […]

कविता : अन्तर्मन

November 14, 2017 0

जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद- जीवन हो इतना दीप्ति प्रखर, चढ़ जाओ तुम उन्मुक्त शिखर। मन में न हो कोई आवेश कभी, बन जाओ हृदय के मुख्य प्रहर।। सरल हृदय के हो तुम स्वामी, मेरे मन मन्दिर […]

कविता : उन्हें मालूम है

November 14, 2017 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय- होठों से मुसकान उतरी कब-कैसे, उन्हें मालूम है, चेहरे पे कालिख़ पुती कब-कैसे, उन्हें मालूम है | चाहत शर्मिन्दा बन गयी और वे तमाशाई रहे, तिनका-मानिन्द ख़्वाब बिखरा कैसे, उन्हें मालूम है […]

गाँव और प्रकृति

November 13, 2017 0

जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद- गाँव हमारे है बड़ा निराले, जैसे धरती अमृत के प्याले। प्रेम जहाँ बसता है पग -२ में, कभी न पड़ते स्नेह में छाले।।१।। धरती बिछौना गगन है चादर, एक -दूजे का हृदय […]

हिन्दी माता

November 12, 2017 0

जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद- हिन्दी माता की सेवा में, निज भाव समर्पित करता हूँ । अपना सौन्दर्य बढ़ाता हूँ, माता के ही नित गुण गाता हूँ। श्रृंगार,करुण औ हास्य संग, शब्द प्रसून नित अर्पित करता हूँ।। […]

माँ की ममता 

November 10, 2017 0

जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद-           कहीं लग न जाए मेरे कलेजे के टुकड़े को ठण्ड, यह सोच माँ के कलेजे में बर्फ सी जम जाती है। धूप से न झुलस जाए मेरे मासूम […]

हे! मातृशक्ति है नमन तुम्हें

November 7, 2017 0

 जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद (उ०प्र०) हे! मातृशक्ति है नमन तुम्हें, ये मेरा जीवन है दान तुम्हारा। है शत् शत् वन्दन मातु तुम्हें, स्नेह,कान्ति और मान तुम्हारा। हे!सहनशक्ति की प्रतिमूर्ति मातु, अद्भुत शक्ति सम्मान हमारा। जीवनदर्शन की […]

वर्णभेद

November 6, 2017 0

जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद वर्ण भेद का रोना रोने वालों, नित निज दृग नीर दिखने वालों। भूल गए उन पिछले दिन को, निज सम का हक़ खाने वालों । माना कुछ दिन थे दुर्दिन के, क्या […]

भाव, वर्ण के समन्वय से, मैं शब्द नए पिरोता हूँ

November 3, 2017 0

जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद- वर्ण की अँधेरी खोह में , नित भाव प्रसून उगाता हूँ। भाव, वर्ण के समन्वय से, मैं शब्द नए पिरोता हूँ ।। शब्द जोड़ जोड़कर , कविता रसधार बहाता हूँ। हिन्दी माता […]

माननीय और आम आदमी

November 2, 2017 0

आरती जायसवाल (कवयित्री एवं लेखिका) माननीय जब शहर में आते हैं रास्ते साफ हो जाते हैं कूड़े -करकट के साथ -साथ आम आदमियों को हटाने में भारी मशक्कत करनी पड़ती है पुलिस बल चौकन्ना हो जाता […]

एक अभिव्यक्ति : निगाहों को गुनहगार हो जाने दो

November 1, 2017 0

— डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय- निगाहों को गुनहगार हो जाने दो, होठों को गुलरुख़सार* हो जाने दो। * गुलाबफूल-जैसे पतझर का ज़ख़्म अब भी ताज़ा है, कैसे कहूँ, मौसमे बहार हो जाने दो। नज़रें बात बना […]

शब्द काव्याधार : कागज़ पे अंकुर हो ही जाएगा

October 31, 2017 0

जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद शब्द बीज है काव्य सर्जन का, कागज़ पे अंकुर हो ही जाएगा। भाषा का मस्तक तिलक बनके, संस्कृति उजाला कर ही जाएगा। कहीं पे ये सदा उन्मुक्त दिखता है , तो कहीं […]

एक अभिव्यक्ति : धर्म से हैं शून्य, पर ज्ञान बाँटते, खिंची हिन्दू-मुसलिम दीवार देखिए

October 29, 2017 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय- डोली ‘हिन्दुत्व’ और ‘विकास’ की उठी, ‘न्यू इण्डिया’ के लुटेरे कहार देखिए। देशहित दूर अब स्वहित पास-पास, सौ डिग्री चुनावी बुख़ार देखिए। धर्म से हैं शून्य, पर ज्ञान बाँटते, खिंची हिन्दू-मुसलिम दीवार […]

जो पिछड़े हैं वो नहीं जान पाये कि क्या है आरक्षण ?

October 29, 2017 0

डा. दिवाकर दत्त त्रिपाठी सिंहों की खातिर पिंजड़े है , श्वानों को सिंहासन मिलता । मिल रहे कैक्टस को गमले, कीचड़ के बीच कमल खिलता । होते अयोग्य हर दिन पदस्थ , मेधावी भटक रहे […]

कोइली की बेटी

October 29, 2017 0

अमित धर्मसिंह कोइली की बेटी बहुत जिद्दी थी। गरीब थी, बीमार थी और भूखी भी, फिर भी जी गयी कई दिन। क्योंकि वह जीना चाहती थी इसलिये माँग रही थी भात, वही भात जिसे तुम्हारी […]

जिन्हें रौशनी से डर था वो भी मुस्कुराने लगे

October 29, 2017 0

जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद अँधेरा ग़र बढ़ा तो जुगनूं टिमटिमाने लगे, जिन्हें रौशनी से डर था वो भी मुस्कुराने लगे। एक मुक़म्मल दिया को न जलता देख कर, लोग जुगनूं की हैसियत को आजमाने लगे। फ़िक्र […]

अनुभूति के गह्वर में

October 28, 2017 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय क्लान्त-विश्रान्त एकाकी पथिक के कर्ण-कुहरों में अनुगूँजित स्वर-माधुर्य उसे साथ ले निसर्ग-पथ पर गतिमान् है | मोक्ष की अभीप्सा में इहलोक-परलोक की अन्तर्यात्रा गन्तव्य की अवधारणा के साथ संपृक्त होती संलक्षित हो […]

माँ गंगा

October 28, 2017 0

जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद ऋतु काव्य जहाँ रिसता रहता , यह वह पावन संगम घाटी माँ। नमन तुम्हे हे! माँ गंगे, अविरल जिसकी परिपाटी माँ।।१।। हम कैसी तेरी संतान हैं माँ, कलुषित कर दी है छाती माँ। कैसे […]

शातिर राजनीति की बहार देखिए

October 27, 2017 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय डोली ‘हिन्दुत्व’ और ‘विकास’ की उठी, ‘न्यू इण्डिया’ के लुटेरे कहार देखिए। देशहित दूर अब स्वहित पास-पास, सौ डिग्री चुनावी बुख़ार देखिए। धर्म से हैं शून्य, पर ज्ञान बाँटते, खिंची हिन्दू-मुसलिम दीवार […]

जब जीवन ज्योतिर्मय हो जाए

October 25, 2017 0

जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद जब जीवन ज्योतिर्मय हो जाए, मम हृदय समर्पित हो जाए। इस कोलाहल से मिले शान्ति नाथ! निज मार्ग प्रवर्तित हो जाए।।१।। सत्य सदा मम उद्गार बने, जीवन में न असत्य की रार […]

यादें मीत की

October 23, 2017 0

राहुल पाण्डेय ‘अविचल’- लेशमात्र भी खुशियाँ नहीं हृदय में मेरे हैं दीपों के इस पर्व से मुझको तनिक भी प्यार नहीँ ; मीत हमारा साथ छोड़ क्यों चला गया ? कैसे बताऊँ किस तरह जिया […]

चलो मनाएं भैया दूज

October 23, 2017 0

जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद- चलो  सब  मिल  मनाएं  भैया  दूज, देवि  समान  सभी  बहन  को  पूज! भाई  बहन  का  है  रिश्ता  अनूठा , भैया  अब  मत  बहना  पर  खीझ!! चलो…………………………………..।।१।। आज  के  दिन  बहना  घर  जाना, […]

ज़िन्दगी मेरी चाहत की मोहताज़ है

October 21, 2017 0

सौरभ कुमार पटेल (संगीतकार)- मैं तुझे शाम को रोज़ मिलता रहूँ, तू मुझे शाम को रोज़ मिलती रहे। ज़िन्दगी मेरी चाहत की मोहताज़ है, तेरी चाहत मुझे रोज़ मिलती रहे।। फूल खिलते रहें खुशबू आती […]

हे गजानन आपको, विनती मेरी स्वीकार हो

October 20, 2017 0

सुधीर अवस्थी ‘परदेशी’ (पत्रकार-लेखक) हे गजानन आपको, विनती मेरी स्वीकार हो । संग में हो कुबेर जी, लक्ष्मी कृपा भरमार हो । गुरूजी सत्मार्ग प्रणेता, मातु-पितु वरद हस्त हो । इतना सब मिल जाये तो […]

दीपावली की स्निग्धिता में, नव दीप फिर से जल उठे

October 20, 2017 0

जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद- दीपावली की स्निग्धिता में, नव दीप फिर से जल उठे। आशा और विश्वास के , नव पुष्प फिर से खिल उठे।। चहुँओर ओर हैं दुश्वारियाँ, जीवन में हैं कठिनाइयाँ। अंधकार और प्रकाश […]

भला क्यों?

October 20, 2017 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय हे ईश्वर ! सचमुच, हम कितने चतुर मूर्ख हैं | मतभेद से मनभेद तक की यात्रा यों ही समाप्त नहीं हो जाती; मन-मस्तिष्क उद्वेलित कर देते हैं रक्त-शिराओं को | मस्तिष्क के […]

देख मनुज मैं तो पौधा हूँ

October 14, 2017 0

जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद- देख मनुज मैं तो पौधा हूँ, आज मैं फिर से औंधा हूँ। तूने काटा मेरे रग- रग को, तेरे लिए मैं केवल धंधा हूँ।। तूने तो मेरा तन लूट लिया, मेरे मन […]

वर्तमान राजनीति का सटीक विश्लेषण करती कविता- राजनीति हो गई भिखारिन , जनता के लहू की प्यासी है

October 13, 2017 0

जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद ०६/१०/२०१७- राजनीति हो गई भिखारिन , जनता के लहू की प्यासी है। चोर उचक्के राजा बन गए , सारी जनता हो गई दासी है।। देख रहा कुचक्र को वह तेरे, जो ऊपर बैठा […]

मैं चैत्य हूँ गाँव के किनारे का

October 10, 2017 0

जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद- मैं चैत्य हूँ गाँव के किनारे का, आज जरूरत है मुझे सहारे की! मैंने देखा गाँव के बच्चों को बड़े होते, लड़ते – झगड़ते और हँसते – रोते ! मैं भी ख़ास […]

मन का भाव : धर्म का लक्ष्य अब अलक्षित क्यों?

October 9, 2017 0

 डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय- कैसे-कैसे बाबा अब दिखने लगे हैं, कामिनी ले बाँहों में दिखने लगे हैं। भगवा वस्त्र बेईमानी की चादर में, आश्रम में बहुरुपिये दिखने लगे हैं। कौन है साधु और शैतान यहाँ, चरित्र […]

एक अभिव्यक्ति : जवानी ने भी छीन लीं किलकारियाँ, बुढ़ापे का बचपन महसूस होता है

October 9, 2017 0

 डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय- ग़म-ख़ुशी का फ़र्क़ महसूस होता है,  अपना भी न कोई महसूस होता है | सौग़ात में मिलता रहा एक दर्द-सा,  रिश्तों में दरार अब महसूस होताहै | जवानी ने भी छीन लीं […]

बालगीत : बहुरुपिये बादल !

October 6, 2017 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय- आसमान में उड़ते बादल, रूप बदलकर आते बादल | लेकर चेहरे काले-भूरे, कभी गरज चौंकाते बादल | संग हवा के दौड़ लगाते,  यहाँ-वहाँ दिख जाते बादल। देह अकड़ती ठण्ढ से जब, गुप-चुप […]

जीवन का सारांश

October 6, 2017 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय- पत्नी : छोड़ न देना बाँह मेरी, यही है अपनी राह। हर जन्म हम संग चलें, ऐसी अपनी चाह।। पति : मीत! मेरे मन में तुम्हीं, बन जीवन-आधार। अर्द्ध अंग बनकर रही, […]

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय जी की असाधारण कविता :— ‘हमारी हिन्दी’

October 5, 2017 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय हिन्दी के नाम पर, हिंगलिश की मंडी है | सिखाता शुद्ध हिन्दी, तो कहते घमंडी है | मगर मैं तो कहता, वे सारे पाखंडी हैं | पल में झुलसने वाली गोबर की […]

चिन्दी-चिन्दी रातें पायीं, फाँकों में मुलाक़ातें पायीं

October 5, 2017 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय- चिन्दी-चिन्दी रातें पायीं, फाँकों में मुलाक़ातें पायीं | मुरझायीं पंखुरियाँ देखीं, कही-अनकही बातें पायीं | बेमुराद आँसू छलके जब, याद पुरानी घातें आयीं | दुलराते बूढ़े ज़ख़्मों को, यादों की रातें घहरायीं […]

ग़ज़ल : कोई कट गया उनकी नज़रों से

October 2, 2017 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय कोई कट गया उनकी नज़रों से, परदा हट गया उनकी नज़रों से | झुकीं निगाहें क़हर बरपाती रहीं, मन फट गया उनकी नज़रों से | ग़ैरों में शामिल थे और अपनों में, […]

तुम लहरों सी टकराती हो, मैं मिट्टी सा बह जाता हूँ

October 1, 2017 0

राज सिंह चौहान (ब्यूरो प्रमुख हरदोई)- तुम लहरों सी टकराती हो, मैं मिट्टी सा बह जाता हूँ। देखोगे सतह में आकर जो, एक दूजे में मिल जाता हूँ।।1 तुम क्षण-क्षण में कता-कतरा, मुझे काट-काट ले […]

हो जाऊँ मालामाल

September 22, 2017 0

राघवेन्द्र कुमार राघव- मिल जाए हमको माल किसी का, मैं हो जाऊँ मालामाल । चाहे हो वो चोरी का, या दे दे वो ससुराल । कण्डीशन लग जाए कोई, चाहें जो हो हाल । मिल […]

अब तो लिखना है मुझको भारत माँ के छालों पर

September 19, 2017 0

मनीष कुमार शुक्ल ‘मन’ लखनऊ- लिखते लिखते थक गया हूँ लाल गुलाबी गालों पर | लिखना मुश्क़िल हो रहा है प्रेमिका के बालों पर || अब तो लिखना है मुझको भारत माँ के छालों पर […]

आवाज़ उठानी ही होगी सरताज बदलने ही होंगे

September 18, 2017 0

मनीष कुमार शुक्ल ‘मन’ लखनऊ (युवा गीतकार) अल्फ़ाज़ बदलने चाहिए जज़्बात बदलने की ख़ातिर | हर सोच बदलनी चाहिए हालात बदलने की ख़ातिर || अग़लात कुचलने हों अगर अस्हाब बदलने ही होंगे | आदाब बदलने […]

बुढ़ापा : एक मार्मिक अहसास

September 15, 2017 0

राघवेन्द्र कुमार राघव- अंगों में भरी शिथिलता नज़र कमज़ोर हो गयी । देह को कसा झुर्रियों ने बालों की स्याह गयी । ख़ून भी पानी बनकर दूर तक बहने लगा । जीवन का यह छोर […]

निज भाषा है अपना मान, हिंदी से ही है सम्मान

September 14, 2017 0

मनीष कुमार शुक्ल ‘मन’, लखनऊ- किस कारण कोई स्वाँग रचो || किस कारण कोई स्वाँग रचो || निज भाषा है अपना मान | हिंदी से ही है सम्मान || अपनी भाषा ही है मूल | […]

मेरी हर कामयाबी पे, तेरा ही नाम होगा

September 10, 2017 0

✍ माज़ अंसारी (गौसगंज, हरदोई)- दी खुशियां तूने जो मुझको, भुलाना न आसान होगा, मेरी हर कामयाबी पे, तेरा ही नाम होगा। रखूँगा तेरे हर तर्ज़ को, खुद में समां कर इस तरह, भूल कर […]

कैसे आती बसन्ती ऋतु प्यार की

September 9, 2017 0

पवन कश्यप (युवा गीतकार, हरदोई)- अधखिले पुष्प जब वो खिले ही नहीं । कल मिलेंगे उन्होंने ये वादा किया, एक अरसा हुआ वो मिले ही नहीं। कैसे आती बसन्ती ऋतु प्यार की   मखमली शाम […]

है मुक़द्दर साथ पर कौन जाने क्या लिखा है

September 6, 2017 0

मनीष कुमार शुक्ल ‘मन’, लखनऊ- ज़िन्दगी इक मर्ज़ है मौत ही बस इक दवा है | ज़िक़्र तेरा यूँ लगा हो रही जैसे दुआ है || मंज़िलों को छोड़कर रास्तों की ख़ाक छानी | वो […]

तेरी इन झील सी आंखों में जो ये नूर दिखता है

September 5, 2017 0

तेरी इन झील सी आंखों में जो ये नूर दिखता है, तेरे चेहरे की मदहोशी में ये मन चूर दिखता है । कहीं जुल्फों का गिर जाना, कहीं अधरों का खिल जाना । कहीं मासूम […]

इश्क़ की गलियों में जाना सोच कर, रह गए कितने ही हो बदनाम से

August 26, 2017 0

मनीष कुमार शुक्ल ‘मन’, लखनऊ- दिल दहल जाएगा मेरे नाम से | सब बदल जाएगा मेरे काम से || दुश्मनों से जा के कह दो आज तुम | मैं नहीं डरता हूँ अब अंजाम से […]

बिकता ईमान

August 24, 2017 0

राघवेन्द्र कुमार “राघव” हरे नोटों के सामने, पतिव्रत धर्म बिकता है । नारी की इस्मत बिकती है, पायल का राग बिकता है ।। खुल जाते हैं बन्द दरवाजे, चन्द सिक्कों की खनकार से। बिक जाते […]

ग़ज़ल- रूहों में पाक़ीज़गी ले आइए

August 24, 2017 0

मनीष कुमार शुक्ल ‘मन’ लखनऊ- उसका ग़र अहसास ख़ुद में चाहिए | रूहों में पाक़ीज़गी ले आइए || काशी क़ाबा हैं बसे दिल में कहीं | दिल को लेकर रौशनी में जाइए || लगता है […]

कविता- क्यूँ कर हम स्वतंत्र कहलायें है सवाल मेरा सबसे

August 16, 2017 0

उषा लाल- पूछ रही ‘आधी आबादी’ क्या हम भी आज़ाद हैं? कब आयेगी अपनी बारी मन में ये ही साध है !! जब तक रहे गर्भ में हम  तब तक ‘अपनों ‘से डरते थे, बाहर […]

आजाद भारत की अधूरी आजादी

August 15, 2017 0

रचयिता- सुधीर अवस्थी ‘परदेशी’ (सुन्नी, हरदोई)- आजाद हुआ भारत , आजादी अधूरी है ।  सपना जो संजोया था, वह मंशा न पूरी है । शिक्षा हो स्वास्थ्य या फिर , कानून की बात करें । […]

गीत- बरसात में गाँव

August 14, 2017 0

अनीता सिंह- अँगना से न सूझे देहरिया ई भादो के रात भेआओन घटाटोप घनघोर अन्हरिया। धनहर खेती माँगे पानी गोरु माँगे कुट्टी सानी घर बाहर सब पानी पानी खपरा मांगे छप्पर छानी। बादल में छुप […]

ओजपूर्ण रचना- संविधान का धर्म राष्ट्र है सिर्फ एक इस्लाम नहीं

August 11, 2017 0

सुजीत कुमार सुमन (गीतकार)- फिर से जिहादी झूले में झूल गए हो हामिद क्या संवैधानिक पद की गरिमा भूल गए हो हामिद क्या ? संविधान का धर्म राष्ट्र है सिर्फ एक इस्लाम नहीं राज्यसभा की […]

भारत दर्शन 

August 6, 2017 0

अभय सिंह निर्भीक (ख्यातिलब्ध ओजस्वी कवि, लखनऊ)- आओ हम सब भारत घूमें इसकी पावन रज को चूमें नाना से प्यारी नानी तक दादी की आनाकानी तक माँ की ममता के आंचल तक काले टीके के […]

जीवन का अर्थ

February 21, 2017 0

निशा कुलश्रेष्ठ- सुबह सुबह का वक्त है मैं चाहती हूँ कुछ खिडकियाँ और दरवाजे खोल देना चाहती हूँ खुली हवा में साँस लेना जैसे ही खोलती हूँ अपने कमरे की एक बंद खिड़की भक्क से […]

हमारे गाँव में हमारा क्या है  !

February 20, 2017 0

अमित धर्मसिंह (बेहद सम्भावना से भरे मित्र अमित धर्म सिंह दिल्ली विश्वविद्यालय में शोध अध्येता हैं)– आठ बाई दस के कड़ियों वाले कमरे में पैदा हुए, खेलना सीखा तो माँ ने बताया हमारे कमरे से […]

अपने पुरखो का लेकर आशीर्वाद चलता हूँ

February 14, 2017 0

पिण्टू कुमार पाल- कौन कहता है कि मैं खाली हाथ चलता हूँ । हाथ में कलम लिए तलवार की धार चलता हूँ । अपने पुरखो का लेकर आशीर्वाद चलता हूँ । झुक गए जिस के […]

कविता : भारतवासी

February 11, 2017 0

राघवेन्द्र कुमार“राघव”- जो भारत माँ को माँ न माने, वह कैसे भारतवासी हैं ? जो मातृभूमि को ना पूजें, द्रोही हैं कुल नाशी हैं । जिसके आँचल का जल नस में, बनकर लहू दौड़ता है […]

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