योग भोग है दिख रहा, भीतर गहरा कूप
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• एक–अन्त: बैठा साधु है, बाहर अन्धा कूप।मृगमरीचिका-से लगेँ, मनमोहक ज्योँ रूप।।दो–योग भोग है दिख रहा, भीतर गहरा कूप।।डूब रहे माया लिये, जग का रूप अनूप।।तीन–भेदभाव से दूर हो, साधु यही […]