Try and try to fly in the sky

November 5, 2025 0

Dr. Raghavendra Kumar Raghav– Let them praise, or let them blame,The virtuous soul remains the same.Whether poor or crowned with gold,His heart is humble, kind and bold. Once he chooses a righteous way,No fear can […]

मन की दीपावली

October 20, 2025 0

डॉ० राघवेन्द्र कुमार त्रिपाठी राघव — शहर की सड़कों पर रोशनी की लड़ियाँ झिलमिला रही थीं। हर घर में सजावट, मिठाइयाँ, और बच्चों की खिलखिलाहट थी। दीपावली आने में केवल एक दिन शेष था। परंतु […]

मेरा चरित्र और रेतीली गठरियाँ

October 16, 2025 0

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय•••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• मै अपने साथ एक झोला रखता हूँ,जिसमे रेत की कुछ गठरियाँ हैँ।मेरा चरित्र भुरभुरा है;क्योँकि वह रेतीला है।इधर, चरित्र गिरता है;उधर, रेत की गठरियाँ–सक्रिय हो उठती हैँ;एक नया चरित्र उकेरने […]

वक़्त की कीमत

October 12, 2025 0

वक़्त को गुलाम समझा तो आज ठोकर खा रहा हूँ।ये वक़्त लेकिन एक दिन लौटकर भी आयेगा।तुम चाहोगे मिलना बात करना और अपना होना।लेकिन यही वक़्त उस दिन दीवार बन जायेगा।आज कीचड़ मे सना हूँ […]

चौथ का चाँद

October 10, 2025 0

डॉ० राघवेन्द्र कुमार राघव– चौथ का चाँद देखो तुम।मगर मै तुमको देखूँगा।तुम्हें बस देखना दो पल।मै पूरी रात देखूँगा।चौथ का चाँद देखो तुम।मगर मै तुमको देखूँगा। है तुम्हारा चाँद चौथाई।हमारा हरदम है पूरा।करो पूजा हमे […]

कहानी– गद्दार दोस्त मतलब आस्तीन का साँप

October 8, 2025 0

डॉ० राघवेन्द्र कुमार त्रिपाठी राघव– शहर के पुराने हिस्से में, जहाँ सुबह मंदिर की घंटियों से और शाम आरती के स्वर से गूँज उठती थीं, वहीं लखन नाम का एक युवक रहता था। उम्र तीस […]

आओ मिलकर नमन करें माँ के दिव्य रूप को

September 27, 2025 0

रिया कापड़ी (Riya Kapri, Khatima, Uttrakhand) माँ का प्रत्येक स्वरूप हमें जीवन की राह दिखाता है।हर चुनौती में शक्ति देता है, हर डर को हरा देता है।साहस भीतर से आता है, भक्ति हृदय से उठती […]

प्रेम मे कब किसने मंजिलों को पाया है

September 13, 2025 0

डॉ० राघवेन्द्र कुमार त्रिपाठी ‘राघव’— कभी मत सोचनाकिसी लड़के या आदमी कोचाहा है।हमेशा याद रखनाये अपना दूसरा जिस्मपाया है।जो होना था हुआ जाने दोनये दिनो की आहट को सुनोऔर उन्हें आने दो।प्यार हो या दोस्तीजब […]

Rainbow

August 28, 2025 0

Rainbow Rainbow,Beautiful rainbow !How do you form,I don’t know. You are really,Magic of natureYou make life,Full of pleasure. You are indeed,Clouds’ crown.Which are bright,White and brown. Clouds ask for,Colours from the Sun,Draw color- linesMaking for […]

Poem : Change

August 27, 2025 0

Without change in values deep within, Neither the soul nor wealth can win. Only those who adapt and grow, Touch success where high winds blow. Change, a process that never rests,Resisting it—denying progress.If we block […]

यहाँ दरोगा जी की धुलाई होती है वा दरोगा जी धोते हैँ?

August 21, 2025 0

● आलेख और छायाकार :– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय•••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• आज (२१ अगस्त ) संध्या भ्रमण करने के उद्देश्य से अपनी मोटरसाइकिल से अपने गाँव बाँसडीह से सुखपुरा मार्ग की ओर से निकलते हुए, मैरीटार तिकोनिया […]

आकांक्षा परिस्थितियों की कभी परवाह नहीँ करती

August 14, 2025 0

आकांक्षा व्यक्ति की सीमाओं की परवाह नहीं करती। आकांक्षा परिस्थितियों की कभी परवाह नहीँ करती। आकांक्षा तो बस आकांक्षा होती है या ये मन का भ्रम। आकांक्षा न हो तो जीवन की राहें परेशान नहीँ […]

Poem : Time is great

August 11, 2025 0

Dr. Raghavendra Kumar Tripathi Raghav– Time is great, so always wait.Fortune comes some time late.When darkness falls you alone,Loved ones leave you to atone.When your shadow left you.When your dears kicked you.Don’t feel bad think […]

प्रलय आँख मे नाचता, लिये मृत्यु-आकार

August 4, 2025 0

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• एक–बाढ़ नया संकट नहीँ, छेद प्रबन्धन-खेल।आँखेँ हर सू बन्द हैँ, कहीँ न कोई मेल।।दो–जल-निष्कासन रुग्ण है, जनता का भी दोष।कूड़े-कचरे बह रहे, भोगेँ जल-आक्रोश।।तीन–टूट रहे तटबन्ध हैँ, जल का हाहाकार।प्रलय […]

Poem : Friendship

August 3, 2025 0

Friendship, Oh! friendship, a treasure so rare.More precious than anything, beyond compare. A bond so strong, a relationship so true.A treasure cherished, shining through. Friends stand together, through joy and strife.Devoted hearts, a lifelong bond […]

लोलुपता-लिप्सा की पटकथा

July 30, 2025 0

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय बीभत्स चरित्रधारी!तुम्हारा चेहराआज दल-परिवर्त्तन करता-सा दिख रहा है।तुम्हारी अतिरिक्त महत्त्वाकांक्षा के कुकृत्य,पैवन्द लगीँ चादरेँ सुना रही हैँ।लोलुपता, लिप्सा और क्लीव-मनोवृत्ति–तुम्हारे चरित्र की पटकथा कोआमिषाशी बना रही हैँ।तुम निष्ठुर और नृशंस […]

काँवर-धारण कर्म का पहले जानो मर्म

July 22, 2025 0

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय•••••••••••••••••••••••••••••••••••••• (इस शब्दशक्ति का प्रहार उन पाखण्डी काँवरियोँ पर किया गया है, जो काँवरयात्रा के नाम पर सरे आम ‘आतंक’ फैलाते और ‘दुराचरण’ करते देखे जा रहे हैँ।) एक–कैसे-कैसे दिख रहे, […]

ख़ैरात मे पायी इज़्ज़त, न बटोरिए साहिब!

July 19, 2025 0

आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय•••••••••••••••••••••••••••••••••••• एक –आओ! मुख़ालिफ़त सजा लेँ, क़रीने से,मुवाफ़िक जवाब देने की ताक़त बढ़ जायेगी।दो–वक़्त का दरिया– ठहरा है, न ठहरेगा,मान लूँ कैसे, गोदी मे तुम्हारे बैठा है?तीन–उनकी रंगीनियत का, हर सम्त ही […]

लोरी : सो जा सो जा गुड़िया रानी

July 12, 2025 0

सो जा सो जा गुड़िया रानी,माँ की गोद है बड़ी सुहानी।चाँद सितारे देते पहरा,नींद का आँचल फैला गहरा।बन्द करो अब प्यारी आँखें,सपनों में हों मीठी बातें।सो जा सो जा गुड़िया रानी,माँ की गोद है बड़ी […]

I am Shiva

June 24, 2025 0

Dr. Raghavkendra Kumar Tripathi– I am not the eyes that see,Not the mind that thinks it’s me.Not the hands that softly feel,Nor the wounds that time can heal.Not the wind that brushes by,Not the earth, […]

काले उसके कर्म हैँ, रहे गर्त मे ठेल

June 20, 2025 0

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय•••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• एक–कहलाता है विश्वगुरु, समय खेलता खेल।जनता दिखती मुग्ध है, चकित कर रहा मेल।।दो–निर्मम कितना रूप है, देशद्रोह है नीति।छल-प्रपंच से युक्त है, उसकी अपनी रीति।तीन–शर्म घोलकर पी गया, तनिक नहीँ […]

सच कहते हैं लोग

June 15, 2025 0

सच कहते हैं लोग कहते हैं लोगअपने पिता की छवि होउनके जैसे ही ; दिखती हो। कहते हैं लोगअपने पिता की प्रतिबिंब होउनके जैसे ही ; मेहनती हो। कहते हैं लोगअपने पिता की प्रतिरूप होउनके […]

आदित्य का आत्म-उन्नयन

June 14, 2025 0

डॉ० राघवेन्द्र कुमार त्रिपाठी राघव– आदित्य एक साधारण परिवार का लड़का था, जो एक छोटे से गांव में रहता था। वह अपनी पढ़ाई में अच्छा था, लेकिन हर समय असफलताओं का सामना करता रहता था। […]

Learn lesson of tolerance

June 12, 2025 0

Dr. Raghavendra Kumar Tripathi Raghav– Only those who dare to fall can truly learn to rise.One who fears to take first step, forever lost goal of life. Sweet the fruit of toil and sweat, though […]

अन्तर्मन की आँधी (कहानी)

May 29, 2025 0

राघवेन्द्र कुमार त्रिपाठी राघव– कभी-कभी जीवन के सबसे छोटे अनुभव और अनकहे शब्द, हमें इतनी गहरी सीख दे जाते हैं कि वह ताजिंदगी हमारे साथ चलती है। यही कहानी है एक गाँव की, जहाँ एक […]

Keep faith on yourself

May 28, 2025 0

Dr. Raghavendra Kumar Tripathi Raghav– Know what is right and what is wrong.That is what we learn all day long.Knowing everything is not the key.Our character sets success journey. You can do anything if you […]

Try and try to fly in the sky

May 24, 2025 0

Dr. Raghavendra Kumar Tripathi Raghav– Let them praise, or let them blame,The virtuous soul remains the same.Whether poor or crowned with gold,His heart is humble, kind and bold. Once he chooses a righteous way,No fear […]

कर्मपथ बना धर्मपथ

May 23, 2025 0

डॉ० राघवेन्द्र कुमार त्रिपाठी राघव– प्राचीन काल की बात है। एक सुंदर, हरे-भरे राज्य में एक साधारण-सा मनुष्य रहता था, जिसका नाम था धर्मवीर। उसका न कोई बड़ा घर था, न भारी धन-दौलत। पर पूरे […]

अनल का दहन

May 6, 2025 0

घट में देखा तो कितनी सहज शान्ति हैचले स्वच्छन्द मन से तो प्रखर क्रान्ति हैहै बड़ा न कोई भी मुझसे यहाँतप्त अरुण अनल को अभी भ्रान्ति है।शान्त सरल जो सर था सलिल से भराजिसके आँचल […]

कवि! हरे-भरे खेतोँ मे चल

May 1, 2025 0

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• कवि! हरे-भरे खेतोँ मे चल।तू देख चुका शहरी जीवन,वैभव के सब नन्दन-कानन।क्या देखा-क्या पाया तूने–धनिकोँ के उर का सूनापन?अब उठा क़दम, दो पहर हुआ,उन दु:खिजन के आँगन मे चल!कवि! हरे-भरे […]

आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय के नाछपल भोजपुरी उपनियास से इ लीहल गइल बा; सुनीँ सभे–

May 1, 2025 0

“भले एक खाँची होखिहेँ स, बाकिर ठेकल एकहू ना होखी।”“तू त हुचहुचवा क बच्चा हऊ। तहरा क का बुझाई। रेसमिया, अजदिया, रमपतिया, फूलगेनिया, बुधनी, रमवतिया, कुसुमिया, चनदरवतिया आ अउरू ढेर गोड़ी बाड़िन स।”“हूँह! ढेर गोड़ी […]

रोती तस्वीर भारत की, कुछ सोचिए हुजूर!

April 29, 2025 0

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय•••••••••••••••••••••••••••••••••••• चैनो सुकूँ हो मुल्क मे, कुछ सोचिए हुजूर!ग़द्दार हर सू दिख रहे, कुछ सोचिए हुजूर!सरहद पे गोली खा रहे, फ़ौजी जो बेक़ुसूर,भाषण से क्या मिलेगा, कुछ सोचिए हुजूर!सौ रुपये की […]

Ultimate Goal

April 14, 2025 0

Dr. Raghavendra Kumar Tripathi Raghav– Arjun asked to Krishna one day,“Which path goes to You, please say?Is it in which people worship an idol,Or Nirakar Brahma with calm at all?” Krishna smiled and then He […]

Jallianwala Bagh : Brutality of Britishers

April 13, 2025 0

Dr. Raghavendra Kumar Tripathi Raghav– In land of Jallianwala Bagh,a haunted day hidden.Where English demons,drank blood of children.This garden watered by martyr’s pride.Where love for the nation did not hide. They faced the bullets,they faced […]

Daughters are grace and pride

March 14, 2025 0

Dr. Raghavendra Kumar Tripathi Raghav– Daughters are the grace, ancestors’ pride,God’s boundless compassion, where virtues abide.A girl’s arrival, auspicious and bright,Let’s support her education, a guiding light. Women play a central role, a vital part,In […]

My presence is painful for you

March 13, 2025 0

Raghavendra Kumar Tripathi ‘Raghav’– Whatever you want and what you desired, you could have told me true, With all my strength, I’d have sought to make things right for you. No grand car, yet I’d […]

We shape ourselves, with every breath

March 5, 2025 0

Dr. Raghavendra Kumar Tripathi— Time, aged further today,Flows on its endless way.Time, so unique, it seems to glide,While moments pass, and lives reside. In truth, time does not stride,It’s we who journey, side by side.We […]

रोक न पाया वो कभी वक्त को

March 4, 2025 0

आज दो माह बूढ़ा हो..आगे बढ़ गयादो हज़ार पच्चीस।वक्त है कि वक्त आने पर भी नहीं लगता , किस तरह गुज़र जाती है ज़िन्दगी !दरअसल वक्त नहीं चलताथका हुआ, हारा हुआ,चलता रहा इंसान ही।वो खुद […]

शिव ही निर्णय करने वाले शिव ही दण्ड विधाता हैं

February 26, 2025 0

राघवेन्द्र कुमार त्रिपाठी राघव–हर पापी को कृत दुष्कर्मो का दण्ड भुगतना होता है।कलुषित विचार रखने वाले को सौ मौतें मरना होता है।शिव ही निर्णय करने वाले शिव ही दण्ड विधाता हैं।शान्ति हेतु इस दुनिया मे […]

Majuli is a land of festivals

February 20, 2025 0

Majuli is a land of festivals, where vibrant celebrations mark the passage of seasons and religious occasions. The most significant festival observed on the island is Raas Mahotsav, a grand depiction of Lord Krishna’s life, […]

जीवित कैसे मृत बने, उत्तर देगा कौन?

February 12, 2025 0

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय•••••••••••••••••••••••••••••••••••••• एक–तीर्थराजप्रयाग मे, जनमानस बेहाल।भीड़ हाँफती हर तरफ़, बजता शासन-गाल।।दो–तीर्थराजप्रयाग मे, शासन खेले खेल।महाकुम्भ के नाम पर, निकल रहा जन-तेल।।तीन–‘पर’ चिड़िया न मार सके, मुखिया का उद्घोष।भगदड़ मे जन मर रहे, […]

योग भोग है दिख रहा, भीतर गहरा कूप

January 19, 2025 0

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• एक–अन्त: बैठा साधु है, बाहर अन्धा कूप।मृगमरीचिका-से लगेँ, मनमोहक ज्योँ रूप।।दो–योग भोग है दिख रहा, भीतर गहरा कूप।।डूब रहे माया लिये, जग का रूप अनूप।।तीन–भेदभाव से दूर हो, साधु यही […]

धर्म सड़क पर आ गया, मर्यादा भी भंग

January 18, 2025 0

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय•••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• एक–महाकुम्भ के पर्व पर, भाँति-भाँति के लोग।कहते ख़ुद को साधु हैँ, सांसारिक है भोग।।दो–भौतिकता मे लिप्त हैँ, भस्म लगाये वेश।कान्ति अलक्षित दिख रही, कहे कहानी केश।।तीन–धर्म सड़क पर आ गया, […]

परिवर्तन की राह

January 11, 2025 0

राघवेन्द्र कुमार त्रिपाठी ‘राघव’– उत्तर प्रदेश के एक गाँव मे बसे एक छोटे से घर मे शिव अपनी बूढ़ी माँ के साथ रहता था। उसकी जिंदगी मे स्थिरता और सरलता का अनूठा संगम था। हर […]

उसकी मुस्कान

January 5, 2025 0

कई वर्षों पहले पीपल के वृक्ष के नीचे चबूतरे पर टोली बनाकर गुड्डा-गुड़ियों का विवाह करना जैसे; आदि खेल समूह में मिट्टी के बर्तनों के साथ खेलते हुए जाने कब जवानी की दहलीज पर आ […]

मौन अस्त्र है बड़ा इसको साध लीजिए

January 4, 2025 0

राघवेन्द्र कुमार राघव– विश्वास से बड़ी कोई ताक़त नहीँ।सन्देह से बड़ी कोई आफ़त नहीँ।इच्छाओं से बड़ा कोई रोग नहीँ।सत्यान्वेषण से बड़ा कोई योग नहीँ।मन मुक्त न हो तो अपना ही शत्रु है।स्वाधीन मन सबसे बड़ा […]

गमनागमन

January 1, 2025 0

गमनागमन (‘आवागमन’ अशुद्ध है।) ● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• एक–संग-साथ चलता रहा, वर्ष-हुआ अवसान।मन-मंथन मथता रहा, कहाँ मान-अपमान?दो–घूँघट काढ़े मौन है, अवगुण्ठन-सी देह।सहमे-सकुचे धर रहे, पाँव-पाँव अब गेह।।तीन–मलय मन्द मुसकान ले, बढ़े जोश के साथ।जन-जन […]

ममता जर्जर दिख रही, विकल दिख रहा छोह

December 24, 2024 0

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय एक–गहरी है संवेदना, भीतर-बाहर घाव।सिसकी सहमी दिख रही, उजड़े मन के भाव।।दो–तन का मन घायल यहाँ, बिसुर रहा है मोह।ममता जर्जर दिख रही, विकल दिख रहा छोह।।तीन–आँखेँ कहतीँ नज़र से– […]

एक आह्वान

December 22, 2024 0

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ••••••••••••••••••••••••••••••••••••• मुट्ठी तान लो!बायेँ हाथ की अँगुलियाँ भीहथेली से एक साथ जुड़ना चाहती हैँ।मरी हुईँ अँगुलियोँ के इर्द-गिर्दमक्खियाँ भिनभिनाती हैँ।पुरुषार्थ के अंगारे को चूम लो!राख मे दबी हुई चिनगारी कोअलसाने […]

बनते-बिगड़ते समीकरण

December 11, 2024 0

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय•••••••••••••••••••••••••••••••••••• जब स्वयं से स्वयं कोउतार फेँकता हूँ,एक चमकती थाली मेसम्भावनाओँ के व्यंजनआँखोँ मे चमक भर देते हैँ।भूत-वर्तमान-भविष्यत् की अँगुलियोँ पर,नये-नये समीकरणबनाने और मिटाने मे लग जाता हूँ।कभी ऋण (-) को […]

Be humble and service-minded

December 9, 2024 0

Raghavendra Kumar Raghav– Easiest way to achieve excellence is simplicityWhere any person is praised for his humility. We get peaks of progress only by polite nature.Everyone’s desires vanish after reaching there. Be humble and service-minded […]

अनुभूति के गह्वर मे

December 8, 2024 0

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय••••••••••••••••••••••••••••••••••••• एक–हिरणी कनखी ताकती, चण्ट व्याध की ओर।सोच डूबता प्रश्न मे, होगी कब अब भोर।। दो–चंचरीक-चितवन चतुर, डोल रहा हर छोर।चपल चंचरी लख रही, प्रणय-सूत्र की ओर।। तीन–धर्मयुद्ध अब है कहाँ, […]

सुनो साँप!

December 3, 2024 0

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय•••••••••••••••••••••••••••••••••••••• साँप!तुम इतने भी असभ्य नहीँ,जो गाँव से शहर आ जाते हो।तुम गाँव-से-गाँव जाते होऔर वहाँ की संस्कृतिशहरोँ मे ले आते हो,तभी प्रतिवर्ष–नागपंचमी पर पूजे जाते हो।तुम रोज़गार के एक साधन […]

अभिव्यंजना

December 1, 2024 0

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय•••••••••••••••••••••••••••••••••••••• चमकता चाँद-सा बदन,न चुरा अनकहा कथन।पतंगी रूप अब अपना,उड़ाये कब कहाँ पवन? तेरा चुप भी इक सवाल है,हमे अब न कोई मलाल है।यहाँ हर ख़याल है सो रहा,अब यहाँ बोल […]

बेशक, मै एक सम्पादक हूँ

November 30, 2024 0

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• जी हुजूर! मै एक सम्पादक हूँ;तरह-तरह का सम्पादक हूँ;किसिम-किसिम का सम्पादक हूँ।पूर्वग्रह से सहित सम्पादक हूँ।सवाल है–रूप-रुपये-रुतबे का;तलाश है, ऐसे दाताओँ की,फिर तो आपको फ़ीचर-पेज कास्तम्भकार बना दिया।आप इसे ‘कदाचार’ […]

बिखर रहा है देश, उसे जोड़िए हुजूर!

November 29, 2024 0

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय••••••••••••••••••••••••••••••••••••• बेशर्म निगाहोँ की नज़र, तोड़िए हुजूर!बेईमान नज़रोँ की नीयत, छोड़िए हुजूर!मर रहा आँखोँ का पानी, देखिए एक बार,इंसानियत से नज़रेँ, न मोड़िए हुजूर!आँखेँ हैँ थक चुकीँ, सब्ज़बाग़ देखकर,फ़र्क़ कथनी-करनी मे, […]

कहानी– आत्मोन्नति की यात्रा

November 28, 2024 0

राघवेन्द्र कुमार त्रिपाठी ‘राघव’– सौरभ एक साधारण परिवार का लड़का था, जो एक छोटे से गांव में रहता था। वह अपनी पढ़ाई में अच्छा था, लेकिन हर समय असफलताओं का सामना करता रहता था। हर […]

बिनब्याही अपूर्णता

November 27, 2024 0

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• सुनो न!तुम्हारी पूर्णताभाती नहीँ मुझे;क्योँकि तुम मुझसेद्रुत गति मे चलायमान हो।हाँ, मै अपूर्ण हूँ।तुम मुग्ध हो, अपनी पूर्णता परऔर मुझे गर्व है, अपनी अपूर्णता पर;क्योँकि आज मुझेएहसास हो रहा है […]

अर्थव्याप्तिदोष का सम्मोहन

November 18, 2024 0

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय•••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• ज़िन्दगी मे अर्थ की परिव्याप्तिसुरसुरी-सी लगने लगी है।देह की खुरचनसायास-अनायास,केंचुल की भाँतिउतरती आ रही है।कालखण्डस्थितप्रज्ञ की भूमिका मेअनासक्त योगी-सदृश“एकोहम् सर्वेषाम्” को अभिमन्त्रित कर,लोकजीवन को जाग्रत् कर रहा है।प्रार्थना–स्वीकृति-अस्वीकृति की धुरी […]

‘टूटते सन्दर्भ’ का एक अंश

November 18, 2024 0

“वह हँसती नहीँ, हँसी पीती है। मेरी दार्शनिकता से उत्पन्न उसकी अन्तः हँसी मुझ पर प्रभावी होने लगी। विगत पूरे वर्ष का अंश तो वही है। मुझे रास आने लगा। हम प्राय: अपने निशि-दिवा के […]

शुष्क हुई संवेदना, मरता भाव-विभाव

November 9, 2024 0

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• एक–अत्याचारी देश मे, दिखते हैँ चहुँ ओर।उनके पापाचार का, कोई ओर-न-छोर।। दो–रक्त उबलता देखकर, उनका नित्य कुकृत्य।दिखते हैँ पथभ्रष्ट सब, दिखता हर दुष्कृत्य।। तीन–शुष्क हुई संवेदना, मरता भाव-विभाव।मन चेतन से […]

दृष्टि परे दर्शन हुआ, योग-क्षेम अभिशाप

November 7, 2024 0

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय•••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• एक–जीवन अब अनुवाद है, मूल रह गया भूत।भाव अर्थ से हीन है, कथ्य बना अवधूत।।दो–दृष्टि-परे दर्शन हुआ, योग-क्षेम अभिशाप।परे परा अपरा हुई, जल से जैसे भाप।।तीन–कुन्द प्रखरता ठोस है, प्रतिभा […]

जज़्बातों का समन्दर

November 5, 2024 0

राघवेन्द्र कुमार त्रिपाठी ‘राघव’– अगर जज़्बातों का ये समन्दर न होताआदमजादे भी यहाँ जानवर बन जाते।कोई भी किसी के लिए परेशान न होताकिसी भी काम के न होते रिश्ते-नाते।न दिल मे किसी के लिए नफ़रत […]

जाने क्योँ-कैसा प्रतिबन्ध!

November 5, 2024 0

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय•••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• पानी पर ठहरा सम्बन्ध,जाने कैसा क्योँ प्रतिबन्ध?होठोँ पर मृदु हास-रेखाएँ,हृदय दिखाता है अनुबन्ध।चिरसंचित अभिलाष खड़ा है,प्रश्न उठाता है सम्बन्ध।उम्र है घटती-कटुता बढ़ती,अनदेखी कर लेता अन्ध।अनाचार है आँख दिखाता,मुक्त दिख रहे […]

भारत-दुर्दशा का वर्तमान

November 5, 2024 0

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय•••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• छन्द :– चौपाईमंगल भवन अमंगल हारी। देश लुट रहा बारी-बारी।।जनता फिरती मारी-मारी। असर न होता अत्याचारी।।आपस मे है मारा-मारी। पापी दिखते सब पर भारी।।पाप घड़ा पापी भर आया। भगतोँ को […]

भाव-जगत् मे बस गये, सम्बन्धोँ के खेल

November 3, 2024 0

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय•••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• एक–कैसा भाई दूज है, लिये प्रथा को संग।प्रेम-नेह दिखता नहीँ, रिश्ते होते तंग।।दो–छिटक रहे भाई-बहन, भौतिकता ले साथ।रोता भाई दूज भी, झुका-झुकाकर माथ।।तीन–बचपन बूढ़ा हो रहा, लकुटी ही अब साथ।बिछड़ […]

संविधान विरुद्ध खड़े, लोकतन्त्र के अंग

November 2, 2024 0

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय•••••••••••••••••••••••••••••••••••••• एक–मनहूस तारीख़ हुई, मानो गूलर-फूल।न्यायशील दिखते कहाँ, आस रही है झूल।।दो–देखो! कैसे मौन हैँ, न्यायतन्त्र के लोग।चिन्दी-चिन्दी हो रही, इज़्ज़त लगती भोग।।तीन–पट्टी खोली आँख की, संविधान अब हाथ।दिखता न्याय सुदूर […]

संविधान अब गौण है, केवल व्यक्ति प्रधान

November 1, 2024 0

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय•••••••••••••••••••••••••••••••••••••• एक–जन का तेल निकाल कर, भरेँ दीप मे तेल।परवश कैसा राम है, खेल रहा है खेल।।दो–दृष्टि सयानी दिख रही, बढ़ा रही है प्रीति।घायल करती राज को, बना रही है नीति।।तीन–संविधान […]

Ode to Inner Light

October 31, 2024 0

Raghavendra Kumar Raghav– On the sacred festival of light, we come with open hearts, Seeking beauty’s true reflection, where the soul’s essence starts. Not in fleeting worldly forms, but in light that never fades, Shining bright, deep within—our […]

दीप

October 28, 2024 0

दीप जलते नहींजलाए जाते है।मोहब्बत की नहीं जातीनिभाई जाती है।खुशियां आती नहींलायी जाती है।अपने बनते नहींबनाए जाते है।कर्म दिखाए नहींकिए जाते है।हमसफर दिखाया नहींबनाया जाता है।सत्य समझाया नहींसमझा जाता है।श्री राम जन्म नहीं लेतेकर्मो से […]

तुम मात्र एक तार्किक हो

October 26, 2024 0

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• कहो!चित्त कोक्योँ ले गये संश्लिष्ट विचार-गह्वर मे?निर्द्वन्द्व करो अपने भाव को;शिथिल करो शब्द-बन्धन को;शब्द-शब्द होगा,करबद्ध मुद्रा मे;नतमस्तक हो,तुम्हारे आदेश की प्रतीक्षा मे।पात्रता ग्रहण करो;रिक्त रहकर,उद्विग्न रहोगे स्वयं से;अपरिपक्व विचारों से,फिर […]

माया-सम सब दिख रहे, अभिधा करती शोर।।

October 23, 2024 0

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय•••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• एक–संदेही इस जगत् मे, दिखते हैँ चहुँ ओर।समय दिखे शंकालु है, मोहग्रस्त है भोर।।दो–चतुर-सुजान सुभग यहाँ, कोई ओर-न-छोर।माया-सम सब दिख रहे, अभिधा करती शोर।।तीन–यही जगत् की रीति है, साधु बन […]

ब्रह्म सनातन एक है, जीव क्षणिक है रूप

October 22, 2024 0

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• एक–कोण दृष्टि का बदलकर, लक्ष्य करो संधान।आडम्बर को त्यागकर, कर लो ग्रहण अपान (आत्मज्ञान)।।दो–कौन सनातन है यहाँ, क्षणभंगुर है कौन?न्यायी दिखता कौन है, अधिनायक है कौन?तीन–ब्रह्म सनातन एक है, जीव […]

कटुता कण्टक-सा चुभे

October 21, 2024 0

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय•••••••••••••••••••••••••••••••••••••• एक–चिन्ता-चिन्तन शब्द हैँ, शब्द बने अविराम।शब्द-शब्द मन्थन करो, मानस हो अभिराम।।दो–शब्द-शब्द अश्लील है, शब्द बनाये श्लील।शब्द समादरयुक्त है, हरण है करता शील।।तीन–लोचन आलोचन लगे, दृष्टिबोध है मर्म।कटुता कण्टक-सा चुभे, औषध […]

विकल्परहित संकल्प

October 21, 2024 0

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय•••••••••••••••••••••••••••••••••••••• एक–आग ‘आग’ से कह रही, दु:ख से मत हो दूर।सुख तो औरों के लिए, दु:ख जीना भरपूर।।दो–तिनका-तिनका जोड़कर, महल बनाया एक।आधी घड़ी न सुख मिला, रहने लगे अनेक।।तीन–कष्ट मिटाओ लोक […]

दरोदीवार मे अपना हम नाम ढूँढ़ते हैँ

October 18, 2024 0

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय बेख़ुदी का हश्र कैसा, हम जाम ढूँढ़ते हैँ,ज़ख़्म बूढ़ा ही रहे, हम आराम ढूँढ़ते हैँ।चेहरोँ मे छिपा चेहरा, जाने बैठा है कहाँ,रावण के घर मे, हम ‘राम’ ढूँढ़ते हैँ।नख-शिख अत्याचार […]

आवर्त्तन और दरार

October 18, 2024 0

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय एक–रूप-रंग की हाट मे, भाँति-भाँति-तस्वीर।राँझा बिकते हैँ कहीँ, कहीँ बिक रहीँ हीर।।दो–धर्म-पंथ औ’ जाति की, बिगड़ गयी है रीति।ऐसे मे कैसे भला, गले मिलेगी प्रीति।।तीन–रुपया-रुतबा-रूपसी, बहुत भयंकर रोग।सत्ता-धर्म गले मिलेँ, […]

नज़्म : आदमियत का क्या हुआ

October 15, 2024 0

राघवेन्द्र कुमार ‘राघव’– किसी की तासीर है तबस्सुम,किसी की तबस्सुम को हम तरसते हैं।है बड़ा असरार ये,आख़िर ऐसा क्या है इस तबस्सुम में? देखकर जज़्ब उनका,मन मचलता परस्तिश को उनकी।दिल-ए-इंतिख़ाब हैं वो,इश्क-ए-इब्तिदा हुआ।उफ़्क पर जो […]

परमात्मा को पाने का पर्व है विजयादशमी

October 12, 2024 0

बुराई के अन्त का पर्व है विजयादशमी।मन के पापों का शमन है विजयादशमी।विजय-हेतु कौशल तथा मन की शक्ति सर्वोपरि है। स्वयं की जय से विजय का मार्ग है विजयादशमी।राम हैं पावन प्रकाश कालकूट विष रावण […]

जगदंबा-स्तुति

October 11, 2024 0

सदा प्रसन्ना मां जगदंबामम हृदय तुम वास करो।लेकर खड्ग त्रिशूल हाथ मेंमाँ शत्रुदल संहार करो।चंड-मुंड के मुंड धारियेमम संकट का भी हरण करो।तंत्र विद्या की प्रारंभा देवीशत्रु तंत्र मंत्र यंत्र का शमन करो।चौसठ योगिनी संगी […]

वक़्त के थपेड़े

October 9, 2024 0

वक़्त के थपेड़े यहाँ जीना सिखा देते हैं।वक़्त पर इंसान की पहचान करा देते हैं।दोग़लों को पहचानना आसान बहुत है।ज़रूरत के वक़्त ही ये लोग दगा देते हैं। गद्दारी आजकल रग-रग मे मानो भर गयी।बेहयाई […]

ठगी-ठगी, शह-मात रही

October 5, 2024 0

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय•••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••` चिन्दी-चिन्दी रातेँ पायीँ,फाँकोँ मे मुलाक़ात रही।मुरझायीँ पंखुरियाँ देखीँ,सहमी-सकुची बात रही।बेमुराद हो आँसू छलके,याद पुरानी घात रही।बूढ़े ज़ख़्म कुरेद रहे थे,बची-खुची बस रात रही।दौड़ा-धूपा; हाथ न आया,परवशता की लात रही।पेट था […]

मन हो जाये बादल-बादल

October 4, 2024 0

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय•••••••••••••••••••••••••••••••••••••• आसमान मे उड़ते बादल,रूप बदलकर छाते बादल।कभी दिखे हैँ-कभी छिपे हैँ,आँख-मिचौनी खेलेँ बादल।चेहरे उनके काले-भूरे,रंग बदलते रहते बादल।बरखा रानी रिमझिम नाचेँ,मनहर ताल लगाते बादल।दाँत दबाती क्रोध से वर्षा,आज्ञा पाने आते […]

का रे संघतिया!

October 1, 2024 0

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय•••••••••••••••••••••••••••••••••••• ठेहुनाव;केहुनाव;पहुँनाव।आ केकर-केकर झँकब,होने से हेने आव।तनी खइनी बनाव,आ हे चुनौटिया-उठाव।मल भा मीज,आ धीरे से फटक।जीभिया के उठाव,आ खइनिया दबाव।आ धीरे-धीरे भीतरा,रसवा के घुलाव।आ माजा ना मिले–त मुँहवा फुलाव। (सर्वाधिकार सुरक्षित– […]

वह खेल ही क्या, जिसमे हमारी जीत न हो

September 30, 2024 0

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय एक–तक़दीर लिखने का हुनर हमे है मालूम,सलाहीयत पर यक़ीँ करने को फ़ुर्सत ही नहीँ।दो–हम वो खिलाड़ी हैँ, जो हारना नहीँ जानेँ,वह खेल ही क्या, जिसमे हमारी जीत न हो।तीन–हमारा हक़ […]

सम्मोहन-पाश की व्यूह-रचना

September 22, 2024 0

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• ऐ हवा!मेरी देह पर तुम्हारा दृष्टि-अनुलेपनसम्मोहन के पाश मेआबद्ध कर रहा है।तुम्हारा संस्पर्श–एक अबूझ पहेली है,जो है और नहीँ भी।आंशिक छुवन का एहसास–एक मादक विष की तरहमन मे उतरता चला […]

कविता : तड़प

September 22, 2024 0

अश्वनी पटेल– खो गया था कहीं मैं एक मोड़ पर।चल पड़ा साथ एक अजनबी जोड़ कर।कुछ दूर चलकर देखे उसके नयन।लग रहा था मिला एक बहार-ए-चमन l थी कली एक खिली कुसुम की कोई।मैं था […]

भौतिक सत्ता

September 21, 2024 0

जिंदगी जोंक सीरक्त पान कर रही है।मौत के नगर मेंजिंदगी से खिलवाड़ कर रही है।काले उजले दिन मेंदेश का गणतंत्रसुखे पत्ते की तरहठिठुर कर अस्फुट होशिकायत कर रहा है।भौतिकता का कंकालमहानगर की दहलीज लांघकरविक्षुब्ध कर […]

उनको उनका लौटाना तुम

September 20, 2024 0

जिस द्वार हुए हो अपमानित,उस द्वार कभी मत जाना तुम।अपनी रूखी-सूखी खाकर,ख़ुद से ही लाज बचाना तुम।। कुछ आएँगे समझाने को,तुमको ही ग़लत बताने को।निज बातों में उलझाने को,ख़ुद को बेहतर दिखलाने को।। हो सके […]

युगदृष्टा, दार्शनिक, विचारक गुरुदेव रबीन्द्र नाथ टैगोर

September 13, 2024 0

अश्वनी पटेल, बालामऊ, हरदोई– चोट लगी थी मन पर उस क्षण,एक आह निकली थी गम्भीर।कुछ नहीं, बस संवेदनाएँ थीं,जिनको सोच वह हुआ अधीर।कितनी माओं और बहनो ने,बेटे-भाई खोये थे।पाला जिनको तन-मन-धन से,सपने बहुत संजोए थे।रक्त-रंजित […]

असंसदीय उत्तेजना

September 7, 2024 0

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय मुँह मारनेवाले मौक़ापरस्तमुँह का ढक्कन योँ खोले रखते हैँ,मानो हर सड़क और गली मे–लावारिस-से अड़े-पड़े-खड़े-औँधे पड़ेबजबजाते ‘सीवर’ होँ।उन्हेँ गिरने की चिन्ता नहीँ रहती;वे मौक़ा टटोलते रहते हैँ;गिराकर मुँह मारने मे […]

क्या यही होता है जीवन?

September 5, 2024 0

अश्वनी पटेल, बालामऊ, हरदोई– स्मरण हो रहा है उन विचारों का,जो जेहन मे उमड़े थे पहली बार।शायद तब मै बच्चा ही था,कुछ मायने नहीं रखता था जीत हो या हार।थी कुछ ऐसी कही-अनकही बातें, जिनमें […]

प्रेम सन्न्यासिओं के मन-मन्दिर का भाव है

September 4, 2024 0

राघवेन्द्र कुमार ‘राघव’– किसी के लिये अमूल्य है प्रेम।कोई है जो प्रेम की कीमत नहीँ समझता।कोई लुटता ही रहता है प्रेम मे।कोई लूटकर भी प्रेम से नहीँ भरता।क्या प्रेम कोई इच्छा या आवश्यकता है?क्यों हर […]

‘हमारे दरमियाँ’ पुस्तक गाँव की सोंधी महक लिए अनेक क्षेत्रों मे चर्चाओं का दौर शुरू करती है

August 31, 2024 0

डॉ राजीव कुमार रावत सर वायु सेना में मेरे सीनियर रहे हैं। वह वर्तमान में आईआईटी खड़कपुर में वरिष्ठ हिंदी अधिकारी के पद पर कार्यरत हैं। उनकी पहली पुस्तक ‘हमारे दरमियाँ ‘ अभी हाल ही […]

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