सत्ता की फ़सल
आरती जायसवाल (कथाकार, समीक्षक) सांप्रदायिकता की आग तेज हुईफिर लपटें उठीं,धू -धू कर जली मानवता,फिर हो गया सामान्य जन-जीवन अस्त -व्यस्त और त्रासदी पूर्णकुछ स्थानों परचीत्कार कर उठा ‘अधर्म’चिंघाड़ता हुआ लेने को ‘नरबलि’मृत देहों के […]
आरती जायसवाल (कथाकार, समीक्षक) सांप्रदायिकता की आग तेज हुईफिर लपटें उठीं,धू -धू कर जली मानवता,फिर हो गया सामान्य जन-जीवन अस्त -व्यस्त और त्रासदी पूर्णकुछ स्थानों परचीत्कार कर उठा ‘अधर्म’चिंघाड़ता हुआ लेने को ‘नरबलि’मृत देहों के […]
बीते हुए वक्त कभी लौट आनामुझे फिर सेहंसना खिलखिलाना है। बीते हुए वक्त कभी लौट आनामुझे फिर सेमस्ती भरे लम्हों को जीना है। बीते हुए वक्त कभी लौट आनामुझे फिरथक हारकर मां की गोद में […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय बज़्मे नशात१ की यह शान है कोठा,दौलत औ’ हुस्न का ईमान है कोठा।यों ही नहीं बनती रक़्क़ास२ जान लीजिए,लाचारी औ’ मज़्बूरी का नाम है कोठा।तवाइफ़ का जिस्म है रंगीनिये-शबाब,रंगीनिए हयात३ […]
है सावन आया, नई उमंगे लायाभूल कर सारे गिले सिकवेमौसम ने प्रकृति पर प्यार बरसाया हैमुरझा गए थे कभी चेहरेउलझ गए थे कभी वास्तेखिला कर चेहरे, सुलझा कर वास्तेसावन कुछ ऐसा झूम कर आया है,मौसम […]
Raghavendra Kumar Tripathi ‘Raghav’– In the land of India, a soul did rise, A young rebel with fire in his eyes. Chandrashekhar Azad was his name, But ‘Azad’ his spirit, forever aflame. Against the British, […]
◆ आत्मानुरोध― इस सर्जन मे कहीं भी किसी प्रकार की अशुद्धि-अनुपयुक्ति लक्षित हो तो सकारण संशोधित करें। ● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय•••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• एक–डाली कहती डाल से, कस लो मुझको आज।पेड़ सिसकता सोचता, गिरे न उनपर […]
आज ज़माना भी गज़ब ढा रहा हैमोबाइल तक ख़ुद को सीमित कर रहा हैघर में चार लोग, बैठे चार किनारेएक दूसरे को देखे भी ना..और चैट पर पूछ रहे इक दूजे का हाल,वक्त नहीं है […]
My special Poem— The Practicality of Knowledge, Devotion and Action in Hinduism Poem by Raghavendra Kumar Raghav —-Raghavendra Kumar In the realm of Hindu thought, behold,Three pillars stand, their wisdom untold.Knowledge, devotion, and action’s might,Guiding […]
कहते हैं जोतुम न कर पाओगेवही तो अबकरने की ठानी है।गिरी हूंमगर हारी नहीं,टूटी हूंमगर बिखरी नहीं,थकी हूंमगर हिम्मत हारी नहीं,राह में मुश्किलेंहजारों हैंमगर जो कि नहींथकी हूंमगर जीवन से हारी नहीं। तृषा चौधरीकांगड़ा, हिमाचल […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय एक–टूट रहे तटबन्ध हैं, जल का हाहाकार।प्रलय आँख मे नाचता, लिये मृत्यु आकार।।दो–चाहत पूरी कर रहा, ले निर्मम-सा रूप।जनता मरती देश मे, कितना निर्मम भूप।।तीन–हा धिक्-हा धिक्! कर रहा, क्रन्दन […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय एक–लाश तैरती हर तरफ़, शोक कर रहा ‘शोक’।जीवन बहता जा रहा, कोई रोक-न-टोक।।दो–परे शोक-संवेदना, मृत्यु करे आखेट।शासन निर्दय दिख रहा, आते लोग चपेट।।तीन–नेता कैसे देश मे, करते केवल भोग।मतलब केवल […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय एक–जीवन जलमय हो रहा, शासन है बेहोश।गरदन दाबे मौत है, जन-जन मे है रोष।।दो–सेना पथ पर दिख रही, नेता सब हैं मौन।फफक रहे हैं लोग सब, आँसू पोंछे कौन?तीन–गोरक्षक भूमिगत […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय एक–त्राहि-त्राहि जन कर रहे, मुखिया उड़ा विदेश।संकट मे जन-धन यहाँ, मुखिया बदला वेश।।दो–जल बढ़ता हर पल यहाँ, कोई नहीं हवाल।आशा पल-पल पल रही, कोई नहीं वबाल१।।तीन–इंच-इंच पानी बढ़े, आँखभरा है […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय एक–हर-हर, हर-हर हो रहा, ठहर गया है देश।जलधारा उछाल लिये, प्रश्न कर रही पेश।।दो–ताला जड़ा ज़बान पे, निर्दयता हर ओर।जनता करती त्राहि है, भय का ओर न छोर।।तीन–क्रन्दन-सिसकी हर तरफ़़, […]
हृदय को देती शक्ति, भक्ति और विश्वास,मन को देती स्थिरता, निडरता और उल्लास,भटकन दूर करे दिल की, दिलाए असीम का एहसास।देह को बनाए चुस्त, दुरुस्त और तंदुरुस्त,मन को बनाए शांत, सौम्य और संयमी,चलना जिस पर […]
मैंने हार मान ली, पर मेरे मां-बाप ने नहीं मानी लोग जो मर्जी कहें पर, मेरे मां-बाप मेरी हर मुश्किल में साथ हैं। पापा ने चलना सिखाया, मां ने हंसना सिखाया, मेरे मां-बाप ने मुझे […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय मस्त तराने गा-गा झूमे, कहनी कहती कुर्सी है, नाच-नचाती दुनिया को है, धुन मे रहती कुर्सी है। भाव उसका हरदम ऊपर, क्रय-विक्रय का खेल यहाँ, जेब दिखा हो जिसका भारी, […]
पूरे है वो लोग क्या ?जो अधूरी सी बातें करते हैंसमझदार है वो लोग क्या ?जो समझदार होने केबावजूद भी नासमझी सी करते हैं।शिक्षित है वो लोग क्या?जो अशिक्षितओं की तरहव्यवहार करते हैं।कामयाब है वो […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय एक–जीवन-मरण समान है, दोनो की गति एक।क्षमता जितनी हो सके, कर्म करो सब नेक।।दो–जन्म लिये किस-हेतु हो, ध्येय नहीं है भान?जीवन अति अनमोल है, करना इसका मान।।तीन–आह-जुड़ी संवेदना, कातर दृष्टि-प्रधान।जन्म-मृत्यु […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• एक–मेघदूत की नायिका, चितवन चारों ओर।उमड़-घुमड़ संदेश कह, गरज पड़े घनघोर।।दो–करवट बादल ले रहे, बिजली तड़के घोर।कनखी बरखा मारती, वन-वन नाचे मोर।।तीन–दादुर तत्पर मे दिखें, अवसर करते बात।ताल-तलैया जब भरें, […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय कल मुझसे,मेरी पीठ मिली थी।खोयी-खोयी-सी;रोयी-रोयी-सी;बेचैन निगाहों से,सन्नाटे को बुनती हुई।पूछना धर्म था; पूछ ही डाला :–कहो! कैसी हो?उसका दृष्टि-अनुलेपनमेरे वुजूद को घायल करता रहा।वह ताड़ती रह गयी,मेरे दु:ख-सुख की प्रतीति […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय••••••••••••••••••••••••••••••••••••• मै भारत का लोकतन्त्र हूँ,जिह्वा बनकर रह गया हूँ।मुझे,उबड़-खाबड़, बदबूदार दाँतों नेअपने पहरे मे बैठा रखा है।बायें सरकता हूँ तो संकट;दायें मचलता हूँ तो ख़तरा;ऊपर लपकता हूँ तो आफ़त;नीचे लर्ज़ता […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय अब मरघट से धुँआ नहीं निकलताचिट्-चिट् कर चिनगारी फेंकती आवाज़अब बेज़बाँ हो चुकी है।धरती अपने सीने मेराज़ दफ़्न करते-करते अशक्त हो चली है।उसे मालूम है,निस्सहाय हताहतों की संख्या।अपने और नितान्त […]
नहीं ये जानता कोई कैसा भगवान होता है? मगर सच है यही तो बस पिता भगवान होता है। हाल बेहाल होता है बेटे की ढाल होता है। औलाद के खातिर पिता पूरा संसार होता है। […]
तुम चेहरे कीमुस्कुराहट पर मत जाओबहुत गम होते हैंसीने में दफन।तुम झूठीवफाओं में मत आओबहुत ख़्वाब होते हैंआधे अधूरे से।तुम इन सिमटी हुईनिगाहों पर मत जाओबहुत कुछ बिखरा हुआ होता हैछुपी हुई निगाहें में।तुम टूटे […]
संँभाल लो ! घर संँवार लो !घर है तुम्हारा | बड़े नाजुक होते हैं दिल के रिश्ते,तुम इन्हें निभा लो!धीरे – धीरे बंद मुट्ठी में रेत की तरह फिसल जाएगा,मन में प्रायश्चित के सिवा कुछ […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय एक–यहाँ दिख रहे साधु-सा, वहाँ दिखें शैतान।देखो! नज़र बदल रहे, रह-रहकर हैवान।।दो–सब अपने को ही मिले, अजब-ग़ज़ब यह चाह।देखो! लोग बिलख रहे, अन्धी दिखती राह।।तीन–विष बोते हैं देश मे, बोल […]
चुनावी राग-रंग― एक शातिर देखो हर जगह, रहे लगाते दावँ ● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय एक–सारे बिल हैं खुल गये, उछल-कूद है रोज़।ज़ोर मारते हर जगह, घर-घर करते खोज।।दो―कल तक अता-पता नहीं, अब हैं चारों […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय एक–कैसे तुम श्री राम हो, उन्मादी के संग!..?भक्ति-भाव से दूर सब, गिरगिट-सा है रंग?दो–राम रमापति भूलकर, रक्त से रँगते भव।उन्मादी ललकारते, बने लावारिश शव।।तीन–मन्दिर-मस्जिद कुछ नहीं, साथ रहेगा कर्म।भले रगड़ […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय बूढ़ी जड़―जोड़ती आ रही है,एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को।यत्न करो,तुम्हारी जड़ का क्रमग्रन्थिल न हो।अनुभव का विस्तारमात्र प्रसार न बना रहे।उसका गाम्भीर्य ओढ़ो;परन्तु मन-भाव मेसंकुचन की पैठ न रहे।ढूँढ़ने […]
हजारों तंत्र हो मुझ मेंहजारों मंत्र हो मुझ मेंमैं फिर भी लीन रहू तुझ में।न ज्ञान का अहंकार हो मुझ मेंन आज्ञान का भंडार हो मुझ मेंमैं फिर भी लीन रहू तुझ में।योग का भंडार […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय एक―दिखें दोगले हर जगह, हरदम करते घात।दूरी कर लो दूर से, बने न कोई बात।।दो―दृढ़ता से बढ़ते चलो, पुरुष-अर्थ के साथ।ख़ुद मे तुम भरपूर हो, नहीं बढ़ाओ हाथ।।तीन―हर जगह चेहरे […]
कुछ ख्वाहिशें अधूरी हैतो रहने दो।मोहब्बत की तरफ पाव नहीं जातेतो रहने दो।अपनापन दिखा कर भीकोई अपना नहीं बनतातो रहने दो।मंदिरों मस्जिदों में घूम कर भीहृदय नेक पाक नहीं होतातो रहने दो।दिलों जान से मोहब्बत […]
पानी मीठा चाहिए, जीव-जगत सब कोय ।अति आनन्द प्रीति तिया, काया जबहिं भिगोय ।। पानी पी-पी जग जिये, जुग-जुग अकट प्रमान ।पानी मत बिथराइयो, रखियो याको मान ।। पानी बहता निर्झरा, ऋतम्भरा हरसाय ।सीतल पानी […]
माँ! ममतामयी आंचल मेंफिर से मुझे छुपा लोबहुत डर लगता है मुझेदुनिया के घने अंधकार में।माँ! फिर से अपने प्यार भरेअहसासों के दीपमुझ में आकर जला दो।माँ! खो न जाऊं कहींदुनिया की इस भीड़ मेंमाँ! […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय केवल धन्धा-केवल चन्दा,भक्ति-भाव है मन्दा।भक्त और भगवान् है कैसा,खेल खेलते गन्दा।सनातनी का खेल निराला,गले पड़ा ज्यों फन्दा।पकड़ गिराओ धर्मान्धों को!रगड़ो जैसा रन्दा।एक कबीर की और ज़रूरत,लाओ कहीं से बन्दा।(सर्वाधिकार सुरक्षित― […]
मैं सोचती हूंँ ,जन्मतिथि पर तुम्हें क्या उपहार दूंँ ,तुम स्वयं में चेतना हो। जीवन जीने की कला है तुममें,तुम्हें क्या सीख दूँ ,तुम स्वयं में प्रज्ञा हो। नित नवीन सद्विचार लाती हो ,तुम्हें क्या […]
जीवन मेरा वसन्तमस्त रहती हूंँ अपनी दुनिया में,हंसती हूंँ हसाती हूंँ औरों को गले लगाती हूंँजीवन मेरा वसन्त। कोयल की कूक, पपीहे की पीहू ,गीत गाती गुनगुनाती हूँ,जीवन मेरा वसन्त। भेदभाव दूर करती हूंँ,प्रेम की […]
मेरे चेहरे कीरौनक की वजह तुम हो।मेरे लबों परआई मुस्कुराहट की वजह तुम हो।मेरे दिल कीहसरत की वजह तुम हो।मेरे मन में आएएहसासों की वजह तुम हो।मेरे गालों में आईरंगत की वजह तुम हो।मेरे ह्रदय […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय कहीं उमंग-उत्साह नहीं है, सब दिखते हैं खोली मे,परिपाटी से अधिक नहीं कुछ, देख असर इस होली मे।महँगाई का असर है इतना, मीठा ‘मीठ’ नहीं लगता,महिमा है बाज़ार की प्यारे! […]
हजारों तंत्र हो मुझ मेंहजारों मंत्र हो मुझ मेंमैं फिर भी लीन रहू तुझ में।न ज्ञान का अहंकार हो मुझ मेंन आज्ञान का भंडार हो मुझ मेंमैं फिर भी लीन रहू तुझ में।योग का भंडार […]
हम अपनों से दूर हुएकैसी है मेरी मज़बूरी ?जिस माँ ने जनम दियावह माँ आज है अकेली। उसके प्यार के लिएहम भाईआपस में लड़ जाते थे , हम दोनों को झगड़ते देखमांँ कहती –तुम दोनों […]
बिखर चुका है बहुत कुछमगर कुछ यादेंसमेटना बाकी है अभी।बहुत गम है जिंदगी मेंमगर चेहरे परमुस्कुराहट बाकी है अभी।खत्म हो चला है भलेजीवन का सफरमगर फिर भीकुछ करने के इरादेबाकी है अभी।बहुत जान चुका हूंजीवन-मृत्यु […]
धूल में मिट्टी के कण की तरह थे, आसमान का तारा बना दिया। कितने प्यारे थे हमारे अध्यापक, हर काम में काबिल बना दिया। बहुत याद आओगे हमेशा, कौन समझाएगा हमें आप जैसा। हर काम […]
सजनी! तुमको दया ना आयी ।इतनी निष्ठुरता से देखा ।अविरल बही अश्रु सरि रेखा।अपनी त्रुटि खुद समझ न आयी ।दृशा – दशा पूरित हो आयीं ।।तब भी तुमको दया न आयी ।। पुनर्मिलन की आश […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ख़ैरातभरी झोली, कुछ लोग के लिए, शातिर दिमाग़-खोली, कुछ लोग के लिए। बन्दिश मे दिख रही, हर साँस अब यहाँ, दी जाती ‘ऑक्सीजन’, कुछ लोग के लिए। कैसे कह दें […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय बदन के खटते१ रहने पे, हरारत आ ही जाती है, लबों के मुसकराने पे, नज़ारत२ आ ही जाती है। देता ही रहा हर पल गवाही, उनकी फ़ित्रत का, तभी तो […]
★ आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय रिश्तों की अहम्मीयत जान जाइए,बुराई मे अच्छाई पहचान जाइए।निगाहें ग़र तलाशी लेने पे उतर आयें,ज़बाँ को तसल्ली दे मुसकान लाइए।नज़रें इनायत हों तो एक बात मै कहूँ,अपनी कथनी-करनी मे ईमान […]
सखी! हम काहू सो नाइ कही।जोई तुम कहेउ, वहै सब साँची,मनहद पार करी।प्रियतम पालि, दिया नहिं बारेन ,बरबसि रारि परी।।सखी! हम काहू सो नाइ कही।। जोई तुम कहेउ वहै, हम बाँची,बतरस-धार बही।सतरस पूरि कर्षिता-मुदिता,सरसति साज […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय घिसटते हुए टायर की तरहज़िदगी जीनेवालो!अपने भीतरभरी हवा की इज़्ज़त करना सीखो।फटे बाँस की तरहचरचपर चरचरमरमर करती ज़िन्दगी,एहसासात को छूती तो है,बूझती नहीं; ताड़ती नहीं।कारणो के पिटारे मे से,झाँक रहे […]
तेरे प्यार में सजना, तेरी सजनी संँवर रही। सात स्वरों से सजा है संगीत, सात फेरों से सजा है जीवन,सात जन्मों तक मिलें सजना तेरा प्यारतेरे प्यार में सजना, तेरी सजनी सज रही , तेरे […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय चलो!यहाँ से चलते हैं,दुर्गन्ध भी भयानक और घृणित आ रही है।लगता है,मानो कोई आदमख़ोर जानवर,मल-मूत्र मे नहाया हुआ,इधर से अभी-अभी गुज़रा हो;वह अपने हिंस्र नाख़ूनो से,हर मासूम गर्भ मे हाथ […]
सुन मेरे मन के परिंदेआगे ही तू बढ़ता चल।न सोच तू इन राहों काबस आगे ही निकलता चल।न सोच तू राहगीरों कावो भी खुद पंथ पे मिल जाएंगे।न सोच तू इन हवाओं काये भी एक […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय रूप-रंग सब बहुत सुहाया। मन से मन को भी अति भाया।।करम-राह भी अति कठिनाई। मंज़िल करमबीर ही पाई।सुनहुँ सुजान सुसील सनेहू। मान न मर्दन होवै देहू।।आधि-ब्याधि सब रूप समाना। विधि-विधान […]
वंदे न्यायभारतम्…!वंदे भारतम्…!सत्यं न्यायविधिप्रदम्सत्पथदर्शितम्…!! वसुधाकुटुम्बकंप्रियम्निष्पक्षनायकम्..!विश्वबंधुत्वघोषकम्सर्वजनसुखकरम्..!!वंदे न्यायभारतम्…!वंदे भारतम्..!! विद्याजीविकाप्रदम्सुविधादायकम्…!सृष्टिसंरक्षकारकम्जनहितसाधकम्…!!वंदे न्यायभारतम्…!वंदे भारतम्..!! राष्ट्रं सार्वभौमिकम्सर्वहितकारकम्…!सत्यसिद्धांतधारकम्न्यायधर्मानुगम्…!!वंदे न्यायभारतम्…!वंदे भारतम्..!!✍️??
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय एक–‘तन्त्र’ बपौती बन गया, ‘गण’ घायल हर ओर।‘लोक’ इशारे नाचता, सेंध लगाते चोर।।दो–‘तन्त्र’ ग़ुलामी जी रहा, ‘गण’ फुटबॉल-समान।जाहिल अनपढ़ कर रहे, हम सबका अपमान।।तीन–लोक-लाज को त्याग कर, लोकरहित है ‘तन्त्र’।अन्धा-बहरा […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय एक―दर्द दवा से दाबकर, कब तक लोगे काम।जीवन जंगल बन गया, दिखते नमकहराम।।दो―टन्-टन् टोना-टोटका, टप्-टप् टपके झूठ।सोचो! सच सोता नहीं, सोच-सोचकर रूठ।।तीन―माया-मोह विमुक्त हो, छल-छर१ से हो दूर।सत्य सदा संशयरहित, […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय एक–कहें देश की बेटियाँ, शासक धोखेबाज़।हाथी-जैसे दाँत हैं, उगल रहे हैं राज़।।दो–चुप्पी साधे दिख रहा, घर का चौकीदार।चोरों से है जा मिला, ले रूप ख़रीदार।।तीन–होता शोषण यौन का, सबको इसका […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय आइए! मेरी ‘वर्ल्ड-फ़ेमस’ दुकान मे तशरीफ़ लाइए।जनाब! मै प्यार बेचता हूँ।अनोखा प्यार और निराला प्यार :―किसिम-किसिम का प्यार;तरह-तरह का प्यार;भाँति-भाँति का प्यार;नाना प्रकार का प्यार;विविध प्रकार का प्यार;पृथक् प्रकार का […]
आ गई खुशियों की बहार,लोहड़ी मनाने को हो सब तैयार ।लोहड़ी है सबको भायी,घर घर खुशियां लायी।खुशी-खुशी लोहड़ी मनाते हैं,एक दूसरे को मिठाई खिलाते हैं।हर प्रकार के पकवान बनाते हैं,इस त्यौहार की शोभा बढ़ाते हैं।मूंगफली […]
हम गरीबों का मसीहा कौन है?चांँद से बातें करता हूंँ , सिर पे मांँ – बाप का हाथ नहीं,पर , छोटे भाई का साथ है ,अब खोने को कुछ बचा क्या है!अपना कोई ठिकाना नहीं […]
हालात मत पूछिएबदलते रहते हैं।समय मत पूछिएगुजरता रहता है।मोहब्बत मत कीजिएहोती रहती है।दिल्लगी मत कीजिएदिलदार औरो से भीदिल लगाते रहते हैं।परिस्थिति मत देखिएस्थिति बदलती रहती है।हमसफर जल्दीमत बनाइएहमराही बदलते रहते हैं। राजीव डोगरा (भाषा अध्यापक)राजकीय […]
याद आते हैं वह दिन ,जब हम साथ होते थे।लड़ते झगड़ते फिर मनाते ,वो दिन भी क्या खास होते थे।जो कभी हमें खास समझते हैं,वह अब अनजान बनकर फिरते हैं।अब कितनी बातें छुपाते हो ,जो […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय एक– ठिठुरन ठिठकी ठण्ढ मे, टूट देह की जोड़। माघ-पूस की शीत मे, धरती पड़े न गोड़१।। दो– हवा हवाई हाल है, ख़तरे मे मुसकान। जीव-जगत् जड़ दिख रहा, जाड़े […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय एक– दिल दिमाग़ से दूर है, मति-गति भी है दूर। बन्द दिखें आँखें खुलीं, अच्छे हमसे सूर।। दो– रूप रूपसी से कहे, रुतबा का नहिं जोड़। रूप-रंग१ रचना रचे, रूपक […]
जनवरी लाती है नव वर्ष ।दिसम्बर जाता है हर वर्ष ।नवल उत्साह, तरंग, उमंग,वर्ष भर चलते हैं संघर्ष ।। सुनहली प्रात, रुपहली शान ।प्रभाती सुमधुर पंछी गान ।विविध रंग पुष्प, वल्लरी-रास,प्रकृति अवलोकन देता हर्ष ।। […]
नये साल मेंएक नए युग काआगाज होगा।महाकाल महाकालीके भक्तों काजय-जयकार होगा।छाया था जोजीवन में घोर अंधकारउसमें भीप्रकाश होगा।हार चुके हैंजो हम दावउसमें भीजीत का आयाम होगा।करते हैं जोहमसे नफरतनए साल मेंउनको भीहमसे प्यार होगा। राजीव […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय मेरे विश्वसनीय एकवर्षीय सहयात्री!अपने बलिष्ठ कन्धों पर,तीन सौ पैंसठ दिवसीय अनियन्त्रित-नियन्त्रित भारप्रतिक्षण लादकर,अनवरत-अनथक यात्रा करते-करते,तुम अतीतोन्मुख होते जा रहे हो।त्वरित गति मे कृषकाय१ होते,तुम्हारे स्कन्धप्रान्त२,अब क्लान्त३ हो रहे हैं।तुम श्रान्त४ […]
प्रान्शुल त्रिपाठी, रीवा, मध्य प्रदेश चलो फिर से नए जोश नए उल्लास से नववर्ष मनाते हैं,रह गए थे जो सपने अधूरे अभी उन्हें अब फिर से सजाते हैं ।कौन अपना कौन पराया इस भेदभाव को […]
अखबार तो अखबार होता है। बीते दिन क्या हुआ कहां, क्या कल होने वाला।आज कहां पर कैम्प लगेगा, कौन है आने वाला।।अखबार में लिखी खबर पढ़के, एतबार होता है।अखबार तो अखबार होता है।। एक बार […]
मत वहन करो मेरे विचार कोमुझे भी नहीं चाहिएतुमसे अलंकार के भूषण।मत वहन करो मेरी वाणी कोमुझे भी नहीं चाहिएतुमसे छंदों के बंधन।मत वहन करो मेरे अंतर्द्वंद कोमुझे भी नहीं चाहिएतुमसे परिछंदों के द्वंद।मत वहन […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय जीभर आँखें खोलो! देखो इन नामर्द दरवाज़ों को; सिटकिनियों के इशारे पर नाचते आ रहे हैं। भीतर का माहौल अघोषित आपातकालीन इन्तज़ामात१ के हवाले है। हवा बेचैन है; दरवाज़े को […]
इस भागदौड़ की जिंदगी में किसी के पास वक्त नहीं ,कुछ अपनों के लिए समय निकालें ,वरना ,जिंदगी यूँ ही निकलती जा रही ,हम अपनों के साथ वक्त नहीं बिता पा रहे हैं ,परिवार के […]
दिन छोटे रात लम्बी होने लगीगुनगुनी धूप छत पे उतरने लगी।बढने लगी हाँ ठिठुरन बढने लगी। आ गई ठण्ड रजाई ले लीजिए,दूध के संग मलाई ले लीजिए।बाजरे की रोटी; बेसन की करी,घी-मक्खन की तराई ले […]
फिर एक बार दिसंबर जा रहा है माहे जनवरी आ रही है,बहुत खुश दिख रहे हो क्या सुकून कि घड़ी आ रही है,ये तो बताओ दिन तारीख साल के सिवा कुछ और भी बदलेगा,या जो […]
माँ तू मेरे जीवन की वो बुनियाद हैजिसके बिना मेरा कोई अस्तित्व नहींमेरे बिना बोले मेरे चेहरे सेमेरे दिल की हर इक वो बात बूझ लेती होजिसे मैं बोल नहीं पातापरछाई की तरह चलती है […]
बारिश की वो पहली बूंदे कलियों कीपलकों पर बैठकर टिमटिमाई होंगी,बहती हुई बयारों से लिपटकर सर्दनन्हीं शबनम छुपकर के नहाई होगी। दरीचों से निकलकर के महीन बूंदेंफिर प्रांगण मे चुपके से गिरी होंगी,कमरे के नर्म-नर्म […]
मुझे आक्रोश है आज भीउन लोगों से जिन्होंनेमेरा साथ तब छोड़ाजब मुझे सबसे ज्यादा जरूरत थी। मुझे आक्रोश है आज भीउन लोगो से जिन्होंनेमेरी मोहब्बत को तब ठुकरयाजब मुझे किसी के प्यार की जरूरत थी। […]
बाबूजी! कहांँ चलना है?आ जाइए ! मेरे रिक्शे में बैठिए!आप घबराइए नहीं मैं आराम से चलूंँगा ,मुझे कहीं गड्ढा या ब्रेकर मिलेगामैं रिक्शा की गति धीरे कर लूँगा। अम्मा आओ!पहले बैग हमको थमा करआराम से […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय मेरी नामर्दगी, मर्दों की टोली का नेतृत्व कर रही है। भोले-भाले ज़बाँ पर लगे तालों की चाबियाँ, मुखिया की जेब मे हैं। वह ललकारता है :– हैसियत हो तो जेब […]
बड़े बुजुर्गों से मिलता आशीर्वादबेटी तुम हो! माँ सीता! जैसी;त्याग समर्पण की देवी, साक्षात् लक्ष्मी ,जिस घर में जाओगी बिटिया!वह घर ख़ुशियों से भर जाएगा ,मांँ सीता के जैसे ही ; तुममें प्रेम है,धैर्यता ,गंभीरता […]
मेरे प्यारे बच्चों सुनो!बड़े भाग्य से मानुष तन पाया ,आओ , इस जीवन को सार्थक कर लें ,किस उद्देश्य यह जीवन मिला ,आओ , हम इसको जाने ,एक – एक पल बड़ा है मूल्यवान ,रात्रि […]
आकांक्षा मिश्रा, उत्तर प्रदेश अनन्त प्रतीक्षा बादतुम्हें मैंने पायाएक बार न कोई सवालन कोई जानने की जिज्ञासा मेरे हृदय में कुछ पीड़ाउमड़ रही थीतुमसे शिकायत करकेजी हल्का करना चाह रही थीऐसा न हुआमन की चिंताओं […]
हे! जलजीवनतुम मस्त रहती हो अपनी दुनिया मेंना तुममें भेदभाव की भावनातुम प्रेममयी होतालाब, नदियांँ, सागर की तुम रानी होअहं नहीं तुमको अपनी सुंदरता पर।रंग-विरंगी दिखती होतुम तो मेरे मन को भाती हो,जल से करती […]
हमारी सूझबूझ हमारे जीवन को सफल बनाती है,सफलता मिलें जिंदगी में,कभी-कभी मुझे शतरंज की चाल चलनी पड़ती है। मैं सोच समझकर निर्णय लेती हूँ,नित कदम आगे बढ़ाती हूँ,कठिन परिस्थितियों में भी! समस्या का समाधान करती […]