जवानी जो आई बचपन की हुड़दंगी चली गई

September 8, 2018 0

डॉ. रूपेश जैन ‘राहत‘ जवानी जो आई बचपन की हुड़दंगी चली गई दफ़्तरी से हुए वाबस्ता तो आवारगी चली गई । शौक़ अब रहे न कोई ज़िंदगी की भागदौड़ में दुनियाँ के दस्तूर में मिरि कुशादगी चली गई […]

भजन : कन्हैया बस यही विनती मेरी स्वीकार कर लेना

September 6, 2018 0

जगन्नाथ शुक्ल…✍ (इलाहाबाद) कन्हैया बस यही विनती मेरी स्वीकार कर लेना, मेरी डगमग-सी नैया को ये दरिया पार कर देना। सबकी बिगड़ी बनाते हो , सभी को राहें दिखाते हो। कहीं गोपी   सङ्ग   लीला, कहीं  […]

गिरते मन को उठाना सिखाया है जिसने

September 5, 2018 0

जगन्नाथ शुक्ल…✍ (इलाहाबाद) गिरते मन को उठाना सिखाया है जिसने, घोर  तम  में दीये को  जलाया  है जिसने। उस   गुरु   की  हृदय  से इबादत करूँ मैं, भटके क़दमों को राहों में लाया है जिसने।। **** […]

मैंने तो सिर्फ आपसे प्यार करना चाहा था 

September 3, 2018 0

डॉ. रूपेश जैन मैंने तो सिर्फ आपसे प्यार करना चाहा था ख़ाहिश-ए-ख़लीक़ इज़हार करना चाहा था । धुएँ सी उड़ा दी आरज़ू पल में यार ने मिरि तिरा इस्तिक़बाल शानदार करना चाहा था । भले लोगो की बातें समझ न आईं वक़्त पे मैंने तो हर लम्हा जानदार करना चाहा था । तिरे काम आ सकूँ इरादा था बस इतना सा तअल्लुक़ आपसे आबदार करना चाहा था । इंतिज़ार क्यूँ करें फ़स्ल-ए-बहाराँ सोचकर चमन ये ‘राहत’ खुशबूदार करना चाहा था ।

राष्ट्रसंत मुनि तरुण सागर महाराज को समर्पित

September 1, 2018 0

कवि राजेश पुरोहित महावीर के सिद्धांतों को जिसने जग में फैलाया। दिगम्बर रह कर जीवन में सच्चा संत कहलाया।। तन पर न कोई वस्त्र रखा रखी धर्म की लाज सदा। मुनि तरुण सागर ने अमृतवाणी […]

पत्थर से जूझते अमलतास लिखता हूँ

August 31, 2018 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय   सदियों से भटकती इक तलाश लिखता हूँ , हवा,पानी,आँधी और बतास लिखता हूँ। सूख रही ताल-तलय्या दूभर है अब पानी, इस काइनात१ की अब लिखता हूँ हमक़दम दग़ा दे गया कुछ […]

फ़ब्तियाँ शहर-भर की झेलियेगा बड़ी नफ़ासत से

August 30, 2018 0

डॉ. रूपेश जैन ‘राहत” इंसानियत से प्यार जब दीन-ओ-जान हो जायेगा मुज़्तरिब हाल में हाथ थामना ईमान हो जायेगा रस्म है, ज़िंदगी करवटें बदलती रही इब्तिदा से शिद्दत से जिया जो मालिक मेहरबान हो जायेगा ख़ुद से मुलाक़ात […]

दिन हो, रात हो अब युवा हिन्द के करते आराम नहीं 

August 29, 2018 0

डॉ. रूपेश जैन ‘राहत” दिन हो, रात हो अब युवा हिन्द के करते आराम नहीं समाज बदल रहा है युवा, व्याकुलता का अब काम नहीं भारत माता की वेदी पर निज प्राणों का उपहार लाये हैं शक्ति भुजा में, ज्ञान गौरव जगाने भारत के युवा आये हैं नित नए प्रयासों से समाज को आगे ले जा रहे है देखो युवा क्या क्या नये उद्यम ला रहे है बिन्नी के साथ ‘फ्लिपकार्ट’ आया देश में नया रोजगार लाया कुणाल और रोहित की ‘स्नैपडील’ कंस्यूमर को हो रहा गुड फील देश की बेटियाँ कहाँ पीछे रहीं राधिका की ‘शॉप-क्लूज़’ आ गयी हुनर नहीं बर्बाद होता अब तहखानों में जीवन रागनियाँ मचल रही नव-गानों में समझ चुके हैं बिना प्रयास पुरुषार्थ क्षय है आगे बढ़ चले अब, भारत माता की जय है तप्त मरु को हरित कर देने की आस लगाये हैं युवा सुख-सुविधाओं की नए परम्परा लाये है भाविश का ‘ओला’ समय से घर पहुँचता शशांक का ‘प्रैक्टो’ डॉक्टर से मिलवाता दीपिंदर का ‘जोमाटो’ खाना खिलवाता समर का ‘जुगनू’ ऑटोरिक्शा दिलवाता विजय का ‘पेटीऍम’ ट्रांजेक्शन की जान सौरभ, अलबिंदर का ‘ग्रोफर्स’ खरीदारों की शान शिरीष आपटे की जल प्रणाली देश के काम आ रही बीएस मुकुंद की ‘रीन्यूइट’ सस्ते कंप्यूटर बना रही बिनालक्ष्मी नेप्रम ‘वुमेन गन सर्वाइवर नेटवर्क’ चला रहीं सची सिंह रेलवे स्टेशन पर लावारिसों […]

घोर तिमिर में उम्मीद की किरण है जीवित

August 29, 2018 0

डॉ. रूपेश जैन ‘राहत” भावनाओं का निर्मल सलिल हृदय से गुज़रते ही दर्द की आग में उबल पड़ता है और निष्क्रिय मस्तिष्क फिर वापस पीछे धकेलते हुए शरीर निष्प्राण सम कर देता है हर डगर यूँ तो कठिन […]

आँखों का पानी मर रहा आँखों के सामने

August 27, 2018 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय   उठती है हर लहर आँखों के सामने , गिरती है हर लहर आँखों के सामने। सभ्यता की अगुवाई बेहयाई कर रही, आँखों का पानी मर रहा आँखों के सामने। पाक़ीज़गी से […]

मदद

August 26, 2018 0

कवि राजेश पुरोहित इस राखी पर भैया सुनो मुझे उपहार नहीं चाहिए बस एक मदद चाहिए भैया दरिन्दों से बचाना रोज पढ़ती अखबार तो दिल दहल जाता है मेरा दहशत के मारे डर जाती कभी […]

इंसाँ झूठे होते हैं  

August 22, 2018 0

डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ इंसाँ झूठे होते हैं इंसाँ का दर्द झूठा नहीं होता इन होंठों पर भी हंसी होती गर अपना कोई रूठा नहीं होता। मैं जानता हूं कि आंखों में बसे रुख़ को मिटाया नहीं जाता, यादों में समाये अपनों को भुलाया नहीं जाता। रह–रहकर याद आती है अपनों की ये ग़म छुपाया नहीं जाता, सपनों में डूबी पलकों की कतारों को यूं उठाया नहीं जाता। इंसाँ झूठे होते हैं इंसाँ का दर्द झूठा नहीं होता इन होंठों पर भी हंसी होती गर अपना कोई रूठा नहीं होता।

बूढ़े दरख़्त

August 21, 2018 0

डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ बूढ़े दरख़्त पहले से ज़्यादा हवादार हो गये इश्क़ में हम पहले से ज़्यादा वफ़ादार हो गये । उनसे दिल की बात कहने का हुनर सीख लिया लब-ए-इज़हार पहले से ज़्यादा असरदार हो गये […]

एक युग ठहर गया, राष्ट्रपंथ के पथिक तू भला किधर गया

August 17, 2018 0

युगपुरुष को सादर श्रद्धांजलि डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी साँसो का बंधन तोड़ , यादों की गठरी छोड़ , राष्ट्रपंथ के पथिक , तू भला किधर गया ? एक युग ठहर गया ………… वह थे अजातशत्रु, […]

क्रान्ति को जन्म दे, ऐसी ‘जननी’ हमें चाहिए

August 15, 2018 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय सुगबुगाहट हो तो, अब आग उठनी चाहिए, हो कहीं भी आग तो, आग लगनी चाहिए। बहुत सोये हो तुम! अब जग जाने को सोचो, उठाओ अब मशाल, लपट उठनी चाहिए। बूढ़ा भारत […]

सत्ता चरित्र है बड़ा विचित्र

August 15, 2018 0

दीप कुमार तिवारी, करौंदी कला, सुलतानपुर 7537807761 सत्ता चरित्र है बड़ा विचित्र सत्ता चरित्र, उजले चेहरे धुंधले होते हम आम सुधी जन, लाख जतन कर सच्चाई को समझ ना पाते हाथ रगड़ते फिर पछताते ।। […]

गिरती है सीमा पर लाशें

August 14, 2018 0

 प्रदीप कुमार तिवारी, करौंदी कला, सुलतानपुर 7537807761 गिरती है सीमा पर लाशें चैन से हम तुम सोतें हैं। भूख से व्याकुल बच्चे उस दिन, सैनिक के घर रोते हैं।। हम शहीद कह के उनको, काम […]

सवर्णों देश खाली करो, तुम दबंग हो

August 14, 2018 0

सुधीर अवस्थी ‘परदेशी’ (पत्रकार, बघौली, हरदोई) ऊँश्री गुरूवे नमः गुरू सर्वोपरि 15 अगस्त 2018 स्वतन्त्रता दिवस अमर रहे ! राष्ट्रीय पर्व के अवसर मौलिक मनभावों के पुष्प आदर श्रद्धा से सादर समर्पित हैं। (1) देश […]

छोटे से दिमाग़ में बसा ली है दुनियाँ

August 13, 2018 0

डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ छोटे से दिमाग़ में बसा ली है दुनियाँ चारों और कौन देखता है चौंतीस हो गयीं बर्बाद मुजफ्फरपुर कौन देखता है ।   उन्नाओ, सूरत, मणिपुर, दिल्ली कौ नसा हिस्सा बचा मेरे हिन्दुस्तान अब रोना आता है मुझको बच्चियाँ लाचार, कौन देखता है ।   जब तक बीते न ख़ुद पे बड़े व्यस्त हैं हम चलो प्रार्थना ही करलें पुकारें बेटियाँ कौन देखता है ।  

अब रोना आता है मुझको, बच्चियाँ लाचार, कौन देखता है

August 10, 2018 0

डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ छोटे से दिमाग़ में बसा ली है दुनियाँ चारों और कौन देखता है चौतीस हो गयीं बर्बाद मुजफ्फरपुर कौन देखता है ।   उन्नाव, सूरत, मणिपुर, दिल्ली कौनसा हिस्सा बचा मेरे हिन्दुस्तान अब रोना आता है मुझको बच्चियाँ लाचार, कौन देखता है ।   जब तक बीते न ख़ुद पे बड़े व्यस्त हैं हम चलो प्रार्थना ही करलें पुकारें बेटियाँ कौन देखता है  ।

चैन से जीना सीख लिया

August 9, 2018 0

डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ गले लगते दोस्त बोला क्या छोड़ दिया चैन से जीना सीख लिया सारा दिन फेसबुक पर रहना छोड़ दिया चैन से जीना सीख लिया । व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी हर रोज नए पचड़े सर दर्द […]

वक़्त का मिज़ाज बहुत गरम है यहाँ

August 7, 2018 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय किसी की बात पर न जाइए हुज़ूर ! किसी की बात पर न आइए हुज़ूर ! दीगर बात है कोई बात ही नहीं, भरा हो पेट तो मत खाइए हुज़ूर ! ज़ख़्मों […]

कुछ ख़्वाब बुन लेना

August 6, 2018 0

 डॉ रूपेश जैन ‘राहत’, ज्ञानबाग़ कॉलोनी, हैदराबाद कुछ ख़्वाब बुन लेना जीना आसान हो जायेगा दिल की सुनलेना मिज़ाज शादमान हो जायेगा मुद्दत लगती है दिलकश फ़साना बन जाने को हिम्मत रख वक़्त पे इश्क़ मेहरबान हो जायेगा टूटना और फिर बिखर जाना आदत है शीशे की हो मुस्तक़िल अंदाज़ ज़माना क़द्रदान हो जायेगा लर्ज़िश-ए-ख़याल में ज़र्द किस काम का है बशर जानें तो हुनर तिरा मुल्क़ निगहबान हो जायेगा मंज़िल-ए-इश्क़ में बाकीं हैं इम्तिहान और अभी ब-नामें मुहब्बत ‘राहत’ बेख़ौफ़ क़ुर्बान हो जायेगा ॥  

अनाहूत अतिथि

August 6, 2018 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय (प्रख्यात भाषाविद्-समीक्षक) डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय वक़्त-बेवक़्त की स्याह परछाइयाँ चुपके से दाख़िल होती हैं मेरे अँधेरे घर में। घर के भार से लहूलुहान नीवँ कब दम तोड़ देगी, इसे वक़्त भी नहीं […]

मैं क्या मेरी आरज़ू क्या

August 5, 2018 0

‘डॉ रूपेश जैन ‘राहत’, ज्ञानबाग़ कॉलोनी, हैदराबाद मैं क्या मिरी आरज़ू क्या लाखों टूट गए यहाँ तू क्या तिरी जुस्तजू क्या लाखों छूट गए यहाँ । चश्म-ए-हैराँ देख हाल पूँछ लेते हैं लोग मिरा क़रीबी […]

दलित’ शब्द की आड़ में बँटने लगा समाज

August 3, 2018 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय बीज घृणा का हर तरफ़, उगने लगी खटास। हाथ प्रेम ने झटक लिये, दूर हो गयी आस।। गोरखधन्धा दिख रहा, खेल निराले खेल। बाहर से दुश्मन लगें, अन्दर से है मेल।। राजनीति […]

पुष्पों का सौभाग्य कहाँ मैं काँटों की अभिलाषा हूँ

August 1, 2018 0

************************************** जगन्नाथ शुक्ल…✍ (इलाहाबाद) अभिनन्दन की आस लिए मैं जीवन जीता जाता हूँ। कर्मयोग का साधक मैं नित भगवत्- गीता गाता हूँ।। अभिनन्दन की……………………….………….. भेद-भाव के इस कानन में स्वाभिमान का प्रहरी हूँ, प्रेम-भाव में […]

नीयत-नीति की सचाई को क्यों धोते हो?

July 31, 2018 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय सवाल तुमसे, बीमार बीज क्यों बोते हो? जवाब देते ही अतीत को तुम रोते क्यों हो? मज़ा तब है, जब पर्वाज़ में बलन्दी हो, जागते हो कथनी में और करनी में सोते […]

बँटवारा

July 30, 2018 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय विश्वास की डोर थामे सरक रहा था लक्ष्य की ओर— तन-मन में आशंकाओं की झंझावातें समेटे। डोर के मध्य-बिन्दु के स्पर्श की अनुभूति बाहर से भीतर तक सिहरन भरती जा रही थी। […]

सीना है तेरे सामने, पहले वार करके देख!

July 26, 2018 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ख़ुशियाँ हुईं बरबाद, मुझे कोई ग़म नहीं, जानता था, तुम सबमें, है कोई कम नहीं। इत्तिफ़ाक़ था उस रोज़, मिल रहे थे सब गले, पीठ पे निशाना, लगानेवालों में हम नहीं। सीना […]

लाचारी-मज्बूरी का नाम है कोठा

July 24, 2018 0

 डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय बज़्मे-महफ़िल की शान है कोठा, दौलत और हुस्न का ईमान है कोठा। यों ही नहीं बनती रक़्क़ाशा जान लीजिए, लाचारी-मज्बूरी का नाम है कोठा। तवायफ़ का जिस्म है रंगीनिये-शवाब, रंगीनिये-हयात की पहचान […]

‘धर्म’ और ‘मज़हब’ के दो विद्रूप चेहरे

July 23, 2018 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय सृष्टि का जो अंश पल रहा है तुम्हारी कोख में उसे न तो ‘राम’ की माला पहनाना और न बाँधना ‘रहीम’ की ताबीज़। उसे रहने देना सिर्फ़ उस इंसान की सन्तान, जिसका […]

बूढ़ी हुईं हाथों की लकीरें सब

July 22, 2018 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय शाम ढली दीये को जलने दो, नींद में सपनों को पलने दो। प्यास बढ़ती है तो बढ़ जाए, बर्फ़ को पानी में गलने दो। दम न तोड़ ले ख़्वाहिश कहीं, उसको अब […]

सिर झुकाना आ जाये 

July 22, 2018 0

डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ ज्ञानबाग़ कॉलोनी, हैदराबाद नज़ाकत-ए-जानाँ1 देखकर सुकून-ए-बे-कराँ2 आ जाये चाहता हूँ बेबाक इश्क़ मिरे बे-सोज़3 ज़माना आ जाये मुज़्मर4 तेरी अच्छाई हम-नफ़्स मुझमे, क़िस्मत मिरी लिखे जब तारीख़े-मुहब्बत5 तो हमारा फ़साना आ जाये माना हरहाल मुस्कुराते रहना […]

ग़ज़ल: उम्र भर सवालों में उलझते रहे

July 21, 2018 0

डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’, ज्ञानबाग़ कॉलोनी, हैदराबाद उम्र भर सवालों में उलझते रहे, स्नेह के स्पर्श को तरसते रहे फिर भी सुकूँ दे जाती हैं तन्हाईयाँ आख़िर किश्तोंमें हँसते रहे । आँखों में मौजूद शर्म […]

ग़ज़ल: क्या रखा है तेरी याद में

July 20, 2018 0

डॉ. रूपेश जैन ‘राहत” क्या रखा है तेरी याद में उम्र भर बे-सुकून क्यों जीते रहें उम्र भर दिल-लगाया-ओ-इश्क़-आजमाया तमन्ना क्यों सताती रहे उम्र भर हँसता हूँ ख़्याल पे कि तुम मेरे हो ग़ैरों को क्यों तड़पते रहें […]

पाने की चाह

July 17, 2018 0

 डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ पाने की चाह में खोने का डर सताता है बिना कुछ पाये ही दिल सहम जाता है फ़ितरत में जुड़ा है ये डर जाना सहम जाना रुका था न रुकेगा इंसाँ […]

सोच रहा हूँ

July 17, 2018 0

डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ एक दिन मेरे दोस्त को, मैं लगा गुमसुम बोला वो, क्या सोच रहे हो तुम बातें बहुत सी हैं सोच रहा हूँ, क्या सोचूँ, बोला मैं।   अलग-अलग हैं कितनी बातें […]

कैसी हो गयी है जिन्दगी

July 16, 2018 0

 डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ ना कुछ सोचो ना कुछ करो, क्योंकि चाय के प्यालों से होठों का फासला हो गयी है जिंदगी। भूख से बिलखती रूहों को मत देखो शान-औ-शौकत के भोजों१  में खो गयी है जिंदगी। बस सहारा ढूढ़ते, सड़क पे फट गए जूतों से क्या सुबह शाम बदलती गाड़ियों का कारवाँ हो गयी है जिंदगी। तन पे फटे हुए कपडे मत देखो नए तंग मिनी स्कर्ट सी छोटी हो गयी है जिंदगी। पानी की तड़प भूल कर महंगीं शराब की बोतलों में खो गयी है जिंदगी। फुटपाथ पे सोती हजारों निगाहों की कसक छोड़ के इक तन्हा बदन लिए, हजारों कमरों में सो गयी है जिंदगी। हजारों सवाल खामोश खड़े; बस सुलगती सिगरेट के धुएं सी हो गयी है जिंदगी। शब्दार्थ: १. भोजों:- दावतों

संस्पर्श और संघर्षण मेरी देह के आचरण की पट-कथा लिख रहे हैं

July 16, 2018 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय-  एक —–पाप-बोध—- पाप का कण-कण मेरी जिह्वा से टकराता है और ले जाता है– एक ऐसे गह्वर में, जहाँ पुण्य का प्रताप आन्दोलित हो रहा है और मेरा पाप सिर चढ़ कर […]

तमन्नाओं पे शर्मिंदा 

July 15, 2018 0

डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ अपनी तमन्नाओं पे शर्मिंदा क्यूँ हुआ जाये एक हम ही नहीं जिनके ख़्वाब टूटे हैं इस दौर से गुजरे हैं ये जान-ओ-दिल संगीन माहौल में जख़्म सम्हाल रखे हैं नजर उठाई बेचैनी शर्मा के मुस्कुरा गयी ख़्बाब कुछ हसीन दिल से लगा रखे  हैं दियार-ए-सहर१ में दर्द-शनास२ हूँ तो क्या बेरब्त उम्मीदों में ग़मज़दा और भी हैं अहद-ए-वफ़ा३ करके ‘राहत’ जुबां चुप है वर्ना आरजुओं के ऐवां४ और भी है शब्दार्थ: १. दियार-ए-सहर – सुबह की दुनियाँ २. दर्द-शनास – दर्द समझने बाला ३. अहद-ए-वफ़ा – प्रेम प्रतिज्ञा ४. ऐवां – महल

तरस जाओगे दो गज़ कफ़न के लिए

July 15, 2018 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय अब ख़ुद को लुटा दो, वतन के लिए, अब ख़ुद को खिला दो, चमन के लिए। ये आसां नहीं, जितना समझते हो तुम, तरस जाओगे दो गज़, कफ़न के लिए। बेशक, ज़माना […]

कुछ कर सकने की औक़ात नहीं, तो चुप बैठो

July 12, 2018 0

पेशे ख़िदमत हैं, चन्द अश्आर डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय- एक : तुम्हारी क्या बिसात, जो मुझे ललकारोगे? शब्द-तीर चलने पर, शेर भी दहल जाते हैं। दो : कुछ कर सकने की औक़ात नहीं, तो चुप बैठो, […]

अश्रुओं की व्यथा-कथा गीली वसुधा के वक्षस्थल पर…

July 10, 2018 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय भूख से बिलबिलाती आँतें; चीथड़ों में लिपटी-चिपटी अपनी पथराई आँखें पालती; टुकुर-टुकुर ताकती आँखों से झपटने की तैयारी करती मेले-झमेले की गवाह बनती; आस-विश्वास की फटही झोली लिये तमन्नाओं-अरमानों की लाश ढोती […]

एक अभिव्यक्ति : आईना थमाकर, उन्हें मैं आ गया

July 9, 2018 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय सिर पर कफ़न, बाँध कर आ गया, सीने पर पत्थर, दबाकर आ गया। शिकवा, शिकायत, गिला भी नहीं, अफ़साना अब जलाकर आ गया। मुफ़्लिस कैसे, कह दिया उसने? ख़ज़ाना दिखाकर, उसे आ […]

मैं प्रेम पथिक आवारा भँवरा, काँटों से भी प्यार करूँ

July 5, 2018 0

जगन्नाथ शुक्ल…✍ (इलाहाबाद) मैं प्रेम पथिक आवारा भँवरा, काँटों से भी प्यार करूँ, अधर लिखें चुम्बन की पाती, नयनों  से संवाद करूँ। ऋतु वसंत की मादकता हो, या पावस के भारी दिन, उर में बजती  नित […]

अगराइ गइल मनवाँ

July 5, 2018 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय बउराइ गइल मनवाँ, अझुराइ गइल मनवाँ। कबो घाम कबो छाहीं, खउराइ गइल मनवाँ। झमझमाझम बूनी, सझुराइ गइल मनवाँ। सोझा तहरा होखते, भहराइ गइल मनवाँ। आ ओकरा चिंहुकला से अगराइ गइल मनवाँ। (सर्वाधिकार […]

कैसे रामभक्त हैं, कुर्सी से सटने लगे!

July 4, 2018 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय बातों-ही-बातों में, ‘आदर्श’ अब बँटने लगे, जनाब को देखो, मुद्दों से, कैसे हैं हटने लगे! राम तो राजसिंहासन, त्याग कर आगे बढ़े, कैसे रामभक्त हैं, जो कुर्सी से सटने लगे! आश्वासन देते […]

रंग-बदरंग

July 3, 2018 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय एक : भाषा बदरंग शैली मलंग, प्रस्तुति बहकने लगी। दो : आँधी-तूफ़ान कहीं कोई अप्रिय घटना नहीं; असहयोग आन्दोलन है। तीन : कथ्य निहत्था तथ्य बेसुरे हँसुए के ब्याह में खुरपे का […]

एक अभिव्यक्ति : इल्ज़ाम सिर पर है मेरे, क़ातिल नहीं, फ़रार हूँ

July 2, 2018 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय- जो उजड़ गया वह दयार हूँ, जो बिछड़ गया वह प्यार हूँ। कुछ याद आये तो कहो, जो बिसर गया वह क़रार हूँ। इल्ज़ाम सिर पर है मेरे, क़ातिल नहीं, फ़रार हूँ। […]

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय की जन्मतिथि’ के अवसर समर्पित हैं उन्हीं की ये पंक्तियाँ——

July 1, 2018 0

आज एक जुलाई है आषाढ़-मास है। कवि-कलाधर, कवि-कुसुमाकर, कवि-सम्राट कालिदास का ‘मेघदूत’ जीवन्त हो उठता है। पावस-ऋतु का आगमन और सम्प्रति, वर्षा की मूसलाधार प्रश्नों-प्रतिप्रश्नों के गह्वर में छोड़ आती हैं। अन्तहीन-सी बूँदें ग्रीष्म की […]

ग़र चाहत है खुशियाँ बरसे

July 1, 2018 0

©जगन्नाथ शुक्ल….✍ (इलाहाबाद) किस हक़ से कहते हो कश्मीर हमारा है,                    खुद के हाथों भारत माँ का शीश उतारा है। ग़र चाहत है खुशियाँ बरसें लहराये केसर घाटी में,             ३७०धारा ख़तम करो,धरती ने आज […]

एतिबार करना मत, झूठी हैं कुर्सियाँ

June 30, 2018 0

  डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय कुर्सी है माई-बाप, अवसर हैं कुर्सियाँ, कुर्सी है छल-छद्म, हिंसक हैं कुर्सियाँ। जिस राह पे चलो, ख़ूब देख-भाल कर, क़ानून को भी आईना, दिखातीं कुर्सियाँ। ग़रीब का चूल्हा है, उधारी में […]

अपने को बुद्धिजीवी माननेवालो!

June 30, 2018 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय बेशक, तुम्हारे चिन्तन चुराये हुए हैं। किराये की कोख से जन्मे या फिर परखनली में उपजे तुम्हारे वे शब्द हैं, जिन्हें पक्षाघात ने जकड़ लिया है। कोई थिरकन नहीं? प्रतिक्रिया-रहित संवेदना-शून्य तुम्हारा […]

ज़िन्दगी थी ‘गीत’, ‘इतिहास’ बनकर खो गयी

June 29, 2018 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय रात घिरती रही, दीप जलता रहा। साज-श्रृंगार+ करती रही ज़िन्दग़ी, रूप भरती-सँवरती रही ज़िन्दग़ी। बेख़बर वक़्त की स्याह परछाइयाँ, उम्र चढ़ती-उतरती रही ज़िन्दग़ी। साध के फूल कुँभला गये द्वार पर, प्यास की […]

प्यारे झरने

June 28, 2018 0

रे रे झरने, तेरा निनाद ! सुनकर बज उठता ह्रदय-नाद । अन्तस् में भरता, आह्लाद । सानन्द दृशा, लगतीं भरने । रे रे झरने ! प्यारे झरने ।। तेरा प्रलाप, कल-कल कुल-कुल, हर धार चपल, […]

एक अभिव्यक्ति : नत-अवनत मुद्रा में, वात्स्यायन की सम्पन्न दीक्षा

June 27, 2018 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय निभृत-निलय में वितान तानता मन, निश्शब्द-मूक याचना– सम्पृक्त उर्वशी-मेनका का तन। अनाघ्रात पुष्प-सा– सर्वांग सौन्दर्यस्वामिनी-द्वय की कान्ति, समग्र संसार-संसूचित– कमनीय कामिनी के क्लान्त कपोलों की भ्रान्ति। रूप, रस, गन्ध स्पर्श का आकर्षण, […]

एक अभिव्यक्ति : सपनों के सारे ख़रीदार हो गये

June 27, 2018 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय एक : देखते-ही-देखते, हम बाज़ार हो गये, सपनों के सारे यहाँ, ख़रीदार हो गये। गरदन झटक पंछी-मानिंद, उड़ते रहे जो, बेशक, वही अब हमारे, तलबगार हो गये। दो : ज़िन्दगी से छेड़ख़ानी […]

जन-गण-मन का अभिमान है ‘हिन्दी’

June 27, 2018 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय समग्र भारत का परिधान है हिन्दी, राष्ट्रीय आन-बान औ’ शान है हिन्दी। भाषाओं में है शीर्ष स्थान पर स्थित, जीवन-मरण का आख्यान है हिन्दी। आओ! करें नमन अपनी राजभाषा को, हमारे आचरण […]

हर चौराहे पर प्रश्न लटकते रहे

June 26, 2018 0

एक अभिव्यक्ति डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय महसूस तो अब होता है बहुत, ज़िन्दगी को है उलझाया बहुत। पाया कब और खोता रहा कहाँ, इन प्रश्नों को है सुलझाया बहुत। हर चौराहे पर प्रश्न लटकते रहे, लोकसत्ता […]

कविता : अन्तर्यात्रा

June 21, 2018 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय एक : शुष्क पड़ी संवेदना, घायल रक्त-सम्बन्ध। अजब खेल है मोह का, कैसा यह अनुबन्ध? दो : मेरा-तेरा किस लिए, माया से अब डोल। गठरी दाबे काँख में, द्वार हृदय का खोल।। […]

आवर्त्तन और दरार

June 20, 2018 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय एक : कल तक था जो जगद्गुरु, भ्रष्ट बन गया देश। दिखते सब बहुरुपिये, तरह-तरह के वेश।। दो : कुम्भकर्णी सब नींद में, नहीं किसी को होश। बाँट देश को सब रहे, […]

योग क्या है ?

June 20, 2018 0

कवि राजेश पुरोहित (राजस्थान) योग आत्मा से परमात्मा का मिलन निर्मलता स्वच्छता का संदेश मानसिक शांति का उपाय तन बने सुदृढ़ मन मे जगे आत्मविश्वास नई उमंग नई चेतना नई स्फूर्ति नए उल्लास का उदय […]

कविता : पिता दिवस पर अपने पिता को समर्पित

June 18, 2018 0

जयति जैन “नूतन”, भोपाल (युवा लेखिका , सामाजिक चिंतक) पिता ही तो थे वो जिन्होनें हर ख्वाहिश पूरी की थी कोई क्या समझ सकेगा उस स्नेह से भरे अगाध प्रेम को । वर्षों तक पसीने […]

एक गीत : ये दिल मत तोड़ना पगली,जो धड़के तेरे सहारे ही

June 18, 2018 0

जगन्नाथ शुक्ल…✍ (इलाहाबाद) चले  आये  थके-हारे ,इन  जज़्बातों  के सहारे ही, ये दिल मत तोड़ना पगली,जो धड़के तेरे सहारे ही। इसे मत भूल जाना तुम,इसका अपमान मत करना, बड़ा  मासूम-सा ये दिल, इसे  मजबूर  मत करना। […]

“विशुद्ध वंदना” : परम पूज्य आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज के चरणों में समर्पित

June 17, 2018 0

डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ वेष दिगम्बर धारी मुनिवर करुणा अब जगाएँगे पार करो खेवैया नहीं तो हम भव में ठहर जाएँगे । भक्ति भाव से आपको पुकारें हे! विशुद्ध महासंत कृपा प्रकटाओ अपनी नहीं तो […]

अजीब सी बस्ती

June 9, 2018 0

  राघवेन्द्र कुमार “राघव”- अन्त:विचारों में उलझा न जाने कब मैं, एक अजीब सी बस्ती में आ गया । बस्ती बड़ी ही खुशनुमा और रंगीन थी । किन्तु वहां की हवा में अनजान सी उदासी […]

क्या कहूँ तुम्हें?

June 6, 2018 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय इक हूक-सी उठी है अब क्या कहूँ तुम्हें? ज़ख़्मी तन-बदन है अब क्या कहूँ तुम्हें! हर रात मुझसे रूठी दिन भी उदास है, क़दम भी बहके-बहके अब क्या कहूँ तुम्हें? इक अनकही […]

‘ आजादी ‘

June 1, 2018 0

आशीष सागर (युवा क्रान्तिकारी समाजसेवी और पत्रकार)-  है प्रीति जहाँ की रीत सदा मै बात वही झुठलाता हूँ, भारत का रहने वाला हूँ पत्नी ‘ लाश उठाता हूँ । हो…हो…हो !..होहोहो । पहले गोरे थे […]

मजदूर की जिंदगी

May 27, 2018 0

राघवेन्द्र कुमार ‘राघव’-  धरती का सीना फाड़ अन्न हम सब उपजाते हैं | मेहनतकश मज़दूर मगर हम भूखे ही मर जाते हैं |   धन की चमक के आगे हम कहीं ठहर न पाते हैं […]

चेहरा पे चेहरे अब तो न लगाइए हुज़ूर!

May 23, 2018 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय हिचकी का सबब क्या है, बताइए हुज़ूर! परेशाँ हाले दिल को, अब सुनाइए हुज़ूर! कब तक भरमाइएगा, बाज़ीगरी दिखा के, चेहरा पे चेहरे अब तो न, लगाइए हुज़ूर! लोग आपकी हक़ीक़त से, […]

एक अभिव्यक्ति : आँखों में उग आये बबूल के काँटे

May 15, 2018 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय अब हथेली पर सूरज उगाता हूँ मैं, अपनी आँखों में चन्दा बसाता हूँ मैं। सीने में दहकता है आग का गोला, भूख लगने पर उसको चबाता हूँ मैं। आँखों में उग आये […]

मां सर्वोपरि

May 15, 2018 0

सुधीर अवस्थी परदेशी मां लिखूं तेरे बारे में क्या, वाक्य बनते हैं नहीं। गद्य-पद्य कहूं क्या मैं, आंसू थमते हैं नहीं।। प्रेम तेरा प्यारा इतना, तुमसा नहिं कोई और है। हूं अंधेरी रात मैया, तू […]

माँ! कुछ तो बोलो!

May 15, 2018 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय कौन-सा अपराध! कैसी गुस्ताख़ी! मैं तो था, मात्र मांस का एक लोथड़ा। शक़्ल अख़्तियार करने से पहले ही मेरे वजूद को मिटा डाला? तुम ममत्व और अपनत्व के द्वन्द्व में उलझी रही, […]

बदलता समय

May 14, 2018 0

राघवेन्द्र कुमार ‘राघव’- अब तो अपनी शख़्सियत ही इम्तेहान लेती है । हर दिन कुछ न कुछ नयी बात होती है । ज़ेहन में ख़यालात की आंधी बढ़ती चली आती है । विचारों के द्वंद […]

मानवता है मर गयी, नहीं हृदय में मर्म

May 13, 2018 0

शोकपूर्ण अभिव्यक्ति :———— डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय- मनसा-वाचा-कर्मणा, सौ में शून्य पाय। बटन दबाना सोचकर, जाये मुँह की खाय।। बात मन की बिसर गया, तन में खोजे प्रीत। क़िला हवा में बन रहा, बालू की है […]

सयाली : अभिनेता फ़िल्म कम राजनीति में ज्यादा अच्छा अभिनय करते

May 12, 2018 0

कवि राजेश पुरोहित अभिनेता फ़िल्म कम राजनीति में ज्यादा अच्छा अभिनय करते  जय जय भारत जान से प्यारा देश हमारा भारत  प्यार ढाई अक्षर का सुंदर नाम रखो याद सदा  तिरंगा दिल में रहता है […]

एक गीत

May 11, 2018 0

उस उपवन को जल देकर ,वृथा समय बरबाद न कर । जिस उपवन में केवल काँटे वाले पेड़ पनपते हों ।। जहाँ अँधेरो की पूजा हो ,दीपक का उपहास बने । सारे श्रोता पटु वक्ता […]

मानवता बैठी चिग्घार रही

May 9, 2018 0

जगन्नाथ शुक्ल (इलाहाबाद) सिद्धान्तों की  शिला पड़ी, निर्वीर्य मनुज धिक्कार रही। काई लगी पीठिका में , हठ की नागिन बैठी फुफकार रही। दंश  झेलता  है समाज , औ  नित  राष्ट्र  बहाता  अश्रुधार, मानव  तेरी  चञ्चलता  […]

मेरे हिस्से इतवार कब आयेगा ? ——–

May 9, 2018 0

—– जयति जैन “नूतन” —– युवा लेखिका, सामाज़िक चिन्तक मैं बीमार हूँ लेकिन मैं किसी से कह नहीं सकती कि मैं बीमार हूँ । शरीर थकावट से चूर है सुकून बहुत दूर है लेकिन मैं […]

क्या रखा है निर्वीर्य सभाओं में

May 9, 2018 0

जगन्नाथ शुक्ल (इलाहाबाद) क्या  रखा    है   वेद   ऋचाओं में, सब     छिपा   है  रक्त शिराओं में। बाँहें    फड़कें ,  भुज   दण्ड   उठे, क्या रखा है, कृत्रिम  आभाओं में। क्या रखा………………………. स्पन्दित   हृदय   भी   सिहर उठे, दोलायमान     […]

अब कब तक रामराज के ख़्वाबों को पालोगे?

April 29, 2018 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय चैनो सुकूं हो मुल्क में, कुछ सोचिए हुज़ूर! ग़द्दार हैं सब दिख रहे, कुछ सोचिए हुज़ूर। सरहद पे गोली खा रहे, फ़ौजी को देखिए, भाषणबाज़ी से क्या होगा, कुछ सोचिए हुज़ूर। सौ […]

ज़ेह्न में वह घूमता सवाल की तरह

April 28, 2018 0

– डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय वह बिछड़ता है, कमाल की तरह, हवा हो जाता है, रुमाल की तरह। कहाँ से लाऊँ लौटाने की तरक़ीब, ज़ेह्न में वह घूमता सवाल की तरह। अच्छा है वह कहीं और […]

भाषाओं की बिन्दी है

April 25, 2018 0

जगन्नाथ शुक्ल (इलाहाबाद) मञ्च नहीं तो रञ्च नहीं है, संग मातु ग़र हिन्दी है। पुण्यप्रसूना विलसित दूना , भाषाओं की बिन्दी है।। मञ्च नहीं तो रञ्च……………………..………।।१।। शुभ्र धवलता अतुलित ममता, समता और सुनीता है। भाग्य […]

समय पूर्व पक जाओगे

April 24, 2018 0

जगन्नाथ शुक्ल (इलाहाबाद) अधनंगे को नंगा करके ,पहना दो दया का चोला, आत्मबल न जगा सके,उठाए एहसानों का झोला। ऐसा कोई एक न रखो,जिसमें हो दृढ़ता औ साहस, जिससे सदा ही खेल चले, जिसमें भरा […]

एक अभिव्यक्ति : हर किसी पे भरोसा तुम जताया न करो

April 18, 2018 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय हर नज़र से नज़रें तुम मिलाया न करो, हर शख़्स से निगाहें खिलाया न करो। कितने एहतियात से तुम्हें सँभाले रखा है, हर किसी पे भरोसा तुम जताया न करो। बेहद ज़ालिम […]

कहाँ सो रहा शौर्य है, सीना दे जो चीर?

April 15, 2018 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय एक : ज़बान पर अंकुश नहीं, कैसे हैं ये लोग! प्रेमरोग से विकट है, नेता का संयोग।। दो : नेता-रोग है प्लेग, घर-घर घुसणम होय। देश को चाटें घुन-सा, जन-जन अब है […]

एक अभिव्यक्ति : उसकी चुप्पी क्यों तह होकर रह जाती है चादर में?

April 15, 2018 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय उसकी हक़ीक़त सिमट कर क्यों रह जाती है, चादर में, अँगड़ाई लेकर वह क्यों सिमट जाता है, चादर में। ऐ हवा! तू उस तक जाकर मेरा यह सवाल करना, उसकी चुप्पी क्यों […]

आसिफ़ा और आदमखोर

April 13, 2018 0

-अमित धर्मसिंह उसने अभी दुनिया को देखना शुरू किया था, समझना नहीं, अगर वह दुनिया को ज़रा भी समझती तो वह समझ जाती बलात्कारियों की चाल, उनकी भाषा और पहनावे से पहचान जाती उनके धर्म […]

एक अभिव्यक्ति : जागर्ति और सुसुप्ति

April 13, 2018 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय इलाहाबाद के सघन पदातिक पथ पर विश्रान्त-क्लान्त शयन करती प्रौढ़ा, आजीविका-साधन से समन्वय-सामंजस्य स्थापित करती; अद्भुत एकान्वित और पार्थक्य के आचरण की सभ्यता प्रदर्शित करती; अवचेतन से साक्षात् करती, मानो सांसारिकता से […]

कुछ अंतर्मन की बातें

April 12, 2018 0

रचनाकार-पवन कश्यप  गीतों ने की आज गर्जना कब तुम हमको गाओगे, अंदर मेरा दम घुटता,कब मुखमण्डल पर लाओगे । कुछ कहने में अनायास ये होठ कांपने लगते है, कुछ अंतस ने हिम्मत की तो शब्द […]

मेरे पास शब्द है तुम्हें जानने के लिए

April 10, 2018 0

आकांक्षा मिश्रा- उसने कहा मेरे पास शब्द है तुम्हें जानने के लिए इतने शब्द हालात सम्भालने के काम आ सके क्या कहूँ ? अभी-अभी हृदय की पीड़ा बढ़ रही तुम अभी मौन हो ये मन […]

उल्लू सीधा हुआ हमारा, अपने घर सब जाओ

April 7, 2018 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय- नाचो गाओ ढोल बजाओ, खाओ और खिलाओ। लोकतन्त्र की क़ब्र खुद रही, सब मिल जश्न मनाओ। सब मिल जश्न मनाओ प्यारे! डूब सुरा में जाओ, नंगों की पा नंगी संगत, सब नंगे […]

एक अभिव्यक्ति : मेरे सिर पर तना अम्बर, मुझे धरती पे रहने दो

April 5, 2018 0

जगन्नाथ शुक्ल (इलाहाबाद) चलने दो नियति का चाबुक, मुझे निज  कर्म   करने   दो। मेरे   हिय  में  चला    खंज़र, मुझे  तुम   धैर्य  धरने    दो। कोई ना-क़ाबिल कहे मुझको, उसके आँखों की परख होगी। मेरे   सिर     पर   […]

स्वतन्त्र मुक्तक माला : तुम्हारा सानिध्य है कविते

April 5, 2018 0

जगन्नाथ शुक्ल, (इलाहाबाद) 【१】बड़े एहसान हैं मुझ पे ,जो तुम्हारा सानिध्य है कविते!         बरक़त से भरी ज़िन्दगी, हृदयतल से वन्द्य है रचिते!        अहर्निश कल्पना करता , उकेरूँ अक़्स शब्दों से,        भरी हैं […]

कविता : माँ

April 3, 2018 0

जगन्नाथ शुक्ल (इलाहाबाद) उदर में नव मास रख के, जग के सारे कष्ट सहती। खुश  रहे   औलाद  मेरी, बस यही अरमान रखती। झुलसती दिन -रात है जो, उलझनों  के  साथ  जीती। पर न कह सकती […]

एक अभिव्यक्ति : चादर की सलवटें अब बेबाक होने को हैं

March 31, 2018 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय हमारी बात हम तक रहे तो बेहतर है, हमारा साथ हम तक रहे तो बेहतर है। चादर देखकर हम पाँव हैं पसारा करते, हमारा ख़्वाब हम तक रहे तो बेहतर है। जनाब! […]

अश्रुधार जब बहता होगा

March 26, 2018 0

जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद अश्रुधार जब बहता होगा,गालों से कुछ कहता होगा। आँखों से बिछुड़न के कारण,बड़ा दर्द वो सहता होगा।। हृदय प्रकम्पित,अवरुद्ध गला, रग में होती होगी सिहरन, क्या जैसे यह टपक रहा, वैसे  ही […]

कविता : आओ राम हृदयमंदिर में, कब से बाट निहार रहे

March 25, 2018 0

डॉ0 श्वेता सिंह गौर- आओ राम हृदयमंदिर में, कब से बाट निहार रहे, विनती सुनो हमारी भगवन प्यासे प्राण पुकार रहे, तुम बिन नहिं कोउ संगी-साथी तात मात-पितु भ्रात तुम्हीं, हम हैं तुम्हारे ही हे […]

कविता : दुःख का अहसास बड़ा सुख से

March 24, 2018 0

मीतू मिश्रा, हरदोई – दुःख का अहसास बड़ा सुख से सुख में भी संग संग बहता है। सुख पल भर ही हम जीते हैं जीवन भर दुःख को ढोते हैं आंखें हम दम बह उठती […]

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